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ऊना में फार्मेसी दुकान आवंटन मामला: High Court ने कहा- गैर फार्मासिस्ट को देकर जीवन खतरे में डाला - कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमथ

रोगी कल्याण समिति क्षेत्रीय अस्पताल ऊना में सन 2017 में एक फार्मेसी की दुकान के आवंटन मामले में हाईकोर्ट ने कहा कि फार्मेसी की दुकान का टेंडर एक गैर-फार्मासिस्ट को देने के कार्य ने जनता के जीवन को खतरे में डाल दिया. न्यायालय ने यह भी देखा कि वित्तीय अनियमितता भी की गई.

आवंटन मामला
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Published : Aug 19, 2021, 9:37 PM IST

शिमला: वित्तीय अनियमितताएं और उनके द्वारा किए गए ऐसे सभी कृत्यों के लिए, जिनमें विश्वास भंग से संबंधित अपराध और भारतीय दंड संहिता की अन्य संबंधित धाराएं शामिल हैं. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमथ और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने ऊना डिस्ट्रिक्ट केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स एलायंस (यूडीसीडीए), (हिमाचल प्रदेश सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स एलायंस की एक इकाई) द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किए.

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि वर्ष 2017 में रोगी कल्याण समिति क्षेत्रीय अस्पताल ऊना ने नोटिस प्रकाशित कर बोलियां मंगाकर क्षेत्रीय अस्पताल ऊना के परिसर में एक फार्मेसी की दुकान को एक लाख रुपये मासिक किराए पर आवंटित किया. तीन साल बाद 10 प्रतिशत वृद्धि के साथ एक लाख और दो लाख रुपये की सुरक्षा राशि जमा की जानी थी,लेकिन तीन साल बाद 18 मार्च 2020 को दुकान का आवंटन 9800 रुपए के मासिक किराए पर किया गया. एक ऐसे व्यक्ति को आवंटन हुआ है जो कि फार्मासिस्ट भी नहीं है.

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि उन्होंने इस संबंध में माननीय मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश, सचिव (स्वास्थ्य), हिमाचल प्रदेश सरकार और निदेशक स्वास्थ्य सेवा, हिमाचल प्रदेश को प्रतिवेदन भेजा था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई. उन्होंने आरोप लगाया है कि निविदा के बिना कोई नोटिस जारी किए या किसी समाचार पत्र या सोशल मीडिया में प्रकाशित किए बिना प्रदान किया गया है. उन्होंने दिनांक 18.03.2020 के पत्र के माध्यम से किए गए आवंटन को रद्द करने के लिए आधिकारिक उत्तरदाताओं को आवंटन के लिए उचित प्रक्रिया का पालन करने के निर्देश के साथ न्यायालय से प्रार्थना की.

न्यायालय ने पाया कि इतने उच्च मूल्य की निविदा के लिए प्रकाशन को उचित कवरेज दिया जाना चाहिए थी, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भाग लेने वाले बोलीदाता सरकार को उच्चतम दर की पेशकश करते, लेकिन उत्तरदाताओं ने जानबूझकर प्रक्रिया से परहेज किया. कोर्ट ने आगे कहा कि फार्मेसी की दुकान का टेंडर एक गैर-फार्मासिस्ट को देने के कार्य ने जनता के जीवन को खतरे में डाल दिया. न्यायालय ने यह भी देखा कि वित्तीय अनियमितता भी की गई, क्योंकि पिछले दौर में प्राप्त संपत्ति का किराया पहले तीन वर्षों के लिए 1,00,000 रुपये प्रति माह था और इस बार यह राशि के 9800 प्रति माह, बिना किसी सुरक्षा राशि जमा के और केवल तीन महीने के किराए के अग्रिम की मांग की गई है.

अदालत ने कहा कि यह न केवल उनके द्वारा की गई एक त्रुटि है, बल्कि एक वित्तीय अनियमितता और एक प्रक्रियात्मक उल्लंघन का एक जानबूझकर किया गया कार्य है, जिसके कारण न्याय का हनन हुआ है. याचिका को स्वीकार करते हुए, अदालत ने निविदा के आवंटन को रद्द कर दिया और प्रतिवादी मुनीश कुमार को 20 अगस्त को या उससे पहले उपायुक्त ऊना को खाली कब्जा सौंपने का निर्देश दिया.

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि जब तक जांच और आपराधिक कार्रवाई पूरी नहीं हो जाती तब तक प्रतिवादी, यानी चिकित्सा अधीक्षक-सह- सदस्य सचिव, रोगी कल्याण समिति, ऊना और मुख्य चिकित्सा अधिकारी-सह-सदस्य, रोगी कल्याण समिति, ऊना किसी भी तरह से किसी भी वित्तीय मामले से नहीं निपटेंगे. इन उत्तरदाताओं के कामकाज का संचालन उपायुक्त ऊना द्वारा किया जाएगा. कोर्ट ने राज्य सरकार को 23 अगस्त तक अनुपालना रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया.

ये भी पढ़ें:SHIMLA: पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र होगा शिमला का ऐतिहासिक Bantony Castle

शिमला: वित्तीय अनियमितताएं और उनके द्वारा किए गए ऐसे सभी कृत्यों के लिए, जिनमें विश्वास भंग से संबंधित अपराध और भारतीय दंड संहिता की अन्य संबंधित धाराएं शामिल हैं. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमथ और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने ऊना डिस्ट्रिक्ट केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स एलायंस (यूडीसीडीए), (हिमाचल प्रदेश सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स एलायंस की एक इकाई) द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किए.

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि वर्ष 2017 में रोगी कल्याण समिति क्षेत्रीय अस्पताल ऊना ने नोटिस प्रकाशित कर बोलियां मंगाकर क्षेत्रीय अस्पताल ऊना के परिसर में एक फार्मेसी की दुकान को एक लाख रुपये मासिक किराए पर आवंटित किया. तीन साल बाद 10 प्रतिशत वृद्धि के साथ एक लाख और दो लाख रुपये की सुरक्षा राशि जमा की जानी थी,लेकिन तीन साल बाद 18 मार्च 2020 को दुकान का आवंटन 9800 रुपए के मासिक किराए पर किया गया. एक ऐसे व्यक्ति को आवंटन हुआ है जो कि फार्मासिस्ट भी नहीं है.

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि उन्होंने इस संबंध में माननीय मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश, सचिव (स्वास्थ्य), हिमाचल प्रदेश सरकार और निदेशक स्वास्थ्य सेवा, हिमाचल प्रदेश को प्रतिवेदन भेजा था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई. उन्होंने आरोप लगाया है कि निविदा के बिना कोई नोटिस जारी किए या किसी समाचार पत्र या सोशल मीडिया में प्रकाशित किए बिना प्रदान किया गया है. उन्होंने दिनांक 18.03.2020 के पत्र के माध्यम से किए गए आवंटन को रद्द करने के लिए आधिकारिक उत्तरदाताओं को आवंटन के लिए उचित प्रक्रिया का पालन करने के निर्देश के साथ न्यायालय से प्रार्थना की.

न्यायालय ने पाया कि इतने उच्च मूल्य की निविदा के लिए प्रकाशन को उचित कवरेज दिया जाना चाहिए थी, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भाग लेने वाले बोलीदाता सरकार को उच्चतम दर की पेशकश करते, लेकिन उत्तरदाताओं ने जानबूझकर प्रक्रिया से परहेज किया. कोर्ट ने आगे कहा कि फार्मेसी की दुकान का टेंडर एक गैर-फार्मासिस्ट को देने के कार्य ने जनता के जीवन को खतरे में डाल दिया. न्यायालय ने यह भी देखा कि वित्तीय अनियमितता भी की गई, क्योंकि पिछले दौर में प्राप्त संपत्ति का किराया पहले तीन वर्षों के लिए 1,00,000 रुपये प्रति माह था और इस बार यह राशि के 9800 प्रति माह, बिना किसी सुरक्षा राशि जमा के और केवल तीन महीने के किराए के अग्रिम की मांग की गई है.

अदालत ने कहा कि यह न केवल उनके द्वारा की गई एक त्रुटि है, बल्कि एक वित्तीय अनियमितता और एक प्रक्रियात्मक उल्लंघन का एक जानबूझकर किया गया कार्य है, जिसके कारण न्याय का हनन हुआ है. याचिका को स्वीकार करते हुए, अदालत ने निविदा के आवंटन को रद्द कर दिया और प्रतिवादी मुनीश कुमार को 20 अगस्त को या उससे पहले उपायुक्त ऊना को खाली कब्जा सौंपने का निर्देश दिया.

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि जब तक जांच और आपराधिक कार्रवाई पूरी नहीं हो जाती तब तक प्रतिवादी, यानी चिकित्सा अधीक्षक-सह- सदस्य सचिव, रोगी कल्याण समिति, ऊना और मुख्य चिकित्सा अधिकारी-सह-सदस्य, रोगी कल्याण समिति, ऊना किसी भी तरह से किसी भी वित्तीय मामले से नहीं निपटेंगे. इन उत्तरदाताओं के कामकाज का संचालन उपायुक्त ऊना द्वारा किया जाएगा. कोर्ट ने राज्य सरकार को 23 अगस्त तक अनुपालना रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया.

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