शिमला: हिमाचल प्रदेश में अधिकांश जनता खेती-बागवानी और पशुपालन पर निर्भर है. कोरोना संकट के बावजूद इस सेक्टर ने हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूती से संभाला है. आर्थिक सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि हिमाचल प्रदेश 2021-22 में स्टेट जीडीपी 1,75,173 करोड़ रुपए रहने के आसार हैं. जीडीपी में 8.3 फीसदी बढ़ोतरी का अनुमान है.
कृषि सेक्टर (Agriculture Sector Himachal Pradesh) ने हिमाचल की अर्थव्यवस्था को सहारा दिया है. हिमाचल में बागवानी सेक्टर भी शानदार ग्रोथ दर्ज कर रहा है. अब बागवानी सेक्टर कृषि सेक्टर का हिस्सा नहीं है, बल्कि उत्पादन के बढ़ते आंकड़ों से ये स्वतंत्र सेक्टर बन गया है. कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी से ही प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ती है.
खेती में नए प्रयोग से हिमाचल में कुछ दशकों से बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन भी रिकार्ड स्तर पर हो रहा है. हिमाचल में 2020-21 में 18.67 लाख टन सब्जी का उत्पादन हुआ था. इसी तरह 2021-22 में भी ये उत्पादन साढ़े अठारह लाख टन सब्जियों का उत्पादन होने के आसार हैं. उल्लेखनीय है कि अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्र में कृषि, बागवानी, पशुधन व मत्स्य पालन आदि आते हैं.
हिमाचल की अर्थव्यवस्था को इन्हीं ने सहारा दिया हुआ है. बागवानी क्षेत्र अब हिमाचल प्रदेश में कृषि का सब-सेक्टर नहीं रहा है. कारण ये है कि बागवानी ने मूल्य वर्धन में कृषि को भी पीछे छोड़ दिया है. आंकड़ों पर गौर करें तो जीडीपी में कृषि व पशुपालन ने 9930 करोड़ रुपए का योगदान दिया है. हिमाचल प्रदेश में दस लाख किसान व बागवान परिवार हैं.
इस समय 9.37 लाख किसानों को केंद्र की तरफ से किसान सम्मान निधि मिल रही है. हिमाचल के किसानों को अब तक 1532 करोड़ रुपए किसान सम्मान निधि के तौर पर मिल चुके हैं. इससे कोरोना काल में किसानों को सहारा मिला था. हिमाचल के लिहाज से देखा जाए को यहां की जमीन नकदी फसलों के लिए बेहतर है. हिमाचल प्रदेश में प्रति वर्ष सेब उत्पादन भी बेहतर रहता है.
यदि कृषि उत्पादन की बात की जाए तो हिमाचल प्रदेश में 2021-22 में खाद्यान उत्पादन का लक्ष्य 16.35 लाख मीट्रिक टन है. खरीफ सीजन में ये 9.21 लाख टन व रबी सीजन में 7.54 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य है. यदि हिमाचल में खाद्यान उत्पादन बेहतर रहता है तो अर्थव्यवस्था को गति मिलती है.
दिसंबर 2020 से मार्च 2021 तक मौसम के प्रतिकूल प्रभाव के कारण खाद्यान उत्पादन प्रभावित हुआ था. आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश में 2020-21 में आलू का उत्पादन 1.96 लाख मीट्रिक टन रहा है. वहीं, 2019-20 में यह 1.97 लाख मीट्रिक टन था. हिमाचल का आलू देश और विदेश में लोकप्रिय है. चिप्स बनाने के लिए भी ये उपयुक्त है. हालांकि आलू उत्पादन के साथ ही किसान बेमौसमी सब्जियों की तरफ अधिक आकर्षित हुए हैं और नकदी फसलों से किसानों की आर्थिकी में बदलाव आया है.
इसी तरह बागवानी सेक्टर ने भी अर्थव्यवस्था को सहारा दिया है. हिमाचल प्रदेश में सेब सहित अन्य फलों का उत्पादन करीब सात लाख टन का आंकड़ा छूता है. हिमाचल में कुल फलों के उत्पादन में 85 फीसदी हिस्सा सेब का है. राज्य में एक लाख पंद्रह हजार हैक्टेयर भूमि में सेब उत्पादन होता है. इसके अलावा फूलों की खेती और खुंब उत्पादन के कारण भी हिमाचल का किसान समृद्ध हुआ है. हिमाचल में 18 हजार मीट्रिक टन से अधिक खुंब पैदा किया गया. मधुमक्खी पालन करने वाले किसानों ने भी दिसंबर 2021 तक प्रदेश में 1566 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन किया.
हिमाचल प्रदेश में 2020-21 में 15.76 लाख टन दूध का उत्पादन हुआ था. इसके अलावा 1482 टन ऊन का भी उत्पादन हुआ था. वहीं, वर्ष 2021-21 में दूध उत्पादन बढक़र 16.54 लाख टन हो जाएगा. इस तरह हिमाचल के किसानों-बागवानों और पशुपालकों सहित फूल-शहद उत्पादन में जुटे ग्रामीणों ने अर्थव्यवस्था को संबल दिया है.
हिमाचल सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार प्रदीप चौहान बताते हैं कि राज्य का खेती और बागवानी सेक्टर अर्थव्यवस्था को सहारा देता है. कृषि व बागवानी में उत्पादन बढ़ा है. जीडीपी के सुधरने का बड़ा कारण खेती और बागवानी उत्पादन में बढ़ोतरी है. इससे प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ती है.
हिमाचल किसान सभा के राज्य अध्यक्ष कुलदीप सिंह तंवर का कहना है कि राज्य के किसान मेहनत से काम करते हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने यहां के किसानों की स्थानीय उत्पादों के एमएसपी में बढ़ोतरी की मांग पूरी नहीं की है. इसके अलावा प्रदेश का किसान बंदरों व जंगली जानवरों द्वारा फसल उजाड़ने से परेशान है.
केंद्र सरकार ने बंदरों के निर्यात पर सत्तर के दशक से प्रतिबंध लगाया है. हिमाचल में बंदरों व लंगूरों की बढ़ती संख्या के कारण वे खेती को उजाड़ते हैं. डॉ. तंवर का कहना है कि किसानों की एमएसपी की मांग पूरी होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि प्रदेश में पहली बार धान की खरीद शुरू की गई है. ये अच्छा कदम है.
माकपा के विधायक राकेश सिंघा (CPI(M) MLA Rakesh Singha) का कहना है कि इस बार रिकार्ड सेब उत्पादन के कारण काफी सेब कोल्ड स्टोर में पड़ा हुआ है. वहीं, विदेश से आने वाले सस्ते सेब के कारण हिमाचल के बागवानों को नुकसान उठाना पड़ता है. सेब पर आयात शुल्क सौ फीसदी करने की मांग लंबे अरसे से की जा रही है. इसी तरह हिमाचल प्रदेश में बागवानों के हित के लिए और अधिक फ्रूट प्रोसेसिंग यूनिट खोली जानी चाहिए. समय पर किसानों और बागवानों को खाद, यूरिया व पोटाश मिलना चाहिए.
वहीं, कृषि व पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कंवर का कहना है कि राज्य सरकार की किसानों के लिए चलाई जा रही योजनाओं से उन्हें लाभ हुआ है. सिंचाई से कृषि को बल, सोलर फैंसिंग स्कीम, प्राकृतिक खेती-खुशहाल किसान योजनाओं का लाभ प्रत्यक्ष दिख रहा है. इसके अलावा पशुपालन क्षेत्र में कई योजनाएं चलाई जा रही हैं.
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