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आखिर क्या है लुच्ची? मंडी शिवरात्रि मेले में दूर-दूर से खाने आते हैं लोग - mandi local news

इस आर्टिकल के माध्यम से आज आपको एक ऐसी स्पेशल डिश के बारे में बताएंगे जो मंडी में शिवरात्रि के दौरान ही मिलती है. हालांकि यह मंडी जिले का कोई पारंपरिक व्यंजन नहीं है. इस रेसिपी को मंडी का राजपरिवार पश्चिम बंगाल से लेकर आया था, लेकिन आज यह डिश इतनी ज्यादा फेमस हो चुकी है कि लोग शिवरात्रि मेले में आकर इसका स्वाद चखना नहीं भूलते.

Luchi food stall at Mandi
क्या है लुच्ची
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Published : Mar 11, 2022, 5:26 PM IST

मंडी: भारत एक विविधताओं का देश है. यही कारण है कि यहां पर बसने वाले लोगों का पहनावा-खानपान व संस्कृति भी अलग है. पहाड़ी राज्य हिमाचल की बात की जाए तो यहां मेलों और त्योहारों का खान-पान के साथ विशेष नाता रहा है. यहां के मेलों और त्योहारों में आपको कुछ ऐसे व्यंजन खाने को मिलते हैं जो शायद वर्ष भर मिल पाना संभव नहीं होता. इन्हीं में से एक है लुच्ची.

हालांकि लुच्ची हिमाचल प्रदेश या फिर मंडी जिले का कोई पारंपरिक व्यंजन नहीं है. इस रेसिपी को मंडी का राजपरिवार पश्चिम बंगाल से लेकर आया था. लेकिन आज यह लुच्ची इतनी ज्यादा फेमस हो चुकी है कि लोग शिवरात्रि मेले में आकर इसका स्वाद चखना नहीं भूलते. ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि लुच्ची को खाने का मौका सिर्फ शिवरात्रि के (Luchi food stall at Mandi) मेले में ही मिलता है. जबकि वर्ष भर न तो कोई इसे बनाता है और न ही खाता है. कोटली निवासी कृष्ण ठाकुर और बिलासपुर निवासी राजकुमार ने बताया कि वे जब भी मेले में आते हैं तो लुच्ची जरूर खाते हैं, क्योंकि यह सिर्फ शिवरात्रि मेले में ही मिलती है.

मंडी शिवरात्रि मेले में लुच्ची की भारी डिमांड.
ऐसे बनती है लुच्ची- बता दें कि लुच्ची को मैदे से बनाया जाता है. आप इसे एक तरह की रुमाली रोटी भी कह सकते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि इसे वनस्पति घी में तलकर बनाया जाता है. शिवरात्रि मेले के दौरान शहर भर में आपको लुच्ची के स्टॉल (Luchi food stall at Mandi) बड़ी संख्या में मिल जाएंगे. लुच्ची विक्रेता ललिता ठाकुर ने बताया कि लोग लुच्ची का स्वाद चखने के लिए दूर-दूर से आते हैं और खाने के साथ ही पैक करके भी ले जाते हैं. उन्होंने बताया कि हर वर्ष लुच्ची का मेले के दौरान अच्छा कारोबार हो जाता है.

इतिहासकार धर्मपाल बताते हैं कि लुच्ची का मंडी के पारंपरिक व्यंजनों से कोई नाता नहीं है, लेकिन आज यह लोगों के स्वाद की पसंद बन चुकी है. बंगाल में लुच्ची और हलवे को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है लेकिन मंडी में इसे नॉन वैज के साथ खाने का प्रचलन काफी बढ़ गया है. इस पकवान को राज परिवार के लोग लेकर आए थे जिनका बंगाल के साथ नाता रहा है.

ये भी पढ़ें: हिमाचल का सिड्डू: घर पर ऐसे बनाएं ये टेस्टी और हेल्दी पकवान

मंडी: भारत एक विविधताओं का देश है. यही कारण है कि यहां पर बसने वाले लोगों का पहनावा-खानपान व संस्कृति भी अलग है. पहाड़ी राज्य हिमाचल की बात की जाए तो यहां मेलों और त्योहारों का खान-पान के साथ विशेष नाता रहा है. यहां के मेलों और त्योहारों में आपको कुछ ऐसे व्यंजन खाने को मिलते हैं जो शायद वर्ष भर मिल पाना संभव नहीं होता. इन्हीं में से एक है लुच्ची.

हालांकि लुच्ची हिमाचल प्रदेश या फिर मंडी जिले का कोई पारंपरिक व्यंजन नहीं है. इस रेसिपी को मंडी का राजपरिवार पश्चिम बंगाल से लेकर आया था. लेकिन आज यह लुच्ची इतनी ज्यादा फेमस हो चुकी है कि लोग शिवरात्रि मेले में आकर इसका स्वाद चखना नहीं भूलते. ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि लुच्ची को खाने का मौका सिर्फ शिवरात्रि के (Luchi food stall at Mandi) मेले में ही मिलता है. जबकि वर्ष भर न तो कोई इसे बनाता है और न ही खाता है. कोटली निवासी कृष्ण ठाकुर और बिलासपुर निवासी राजकुमार ने बताया कि वे जब भी मेले में आते हैं तो लुच्ची जरूर खाते हैं, क्योंकि यह सिर्फ शिवरात्रि मेले में ही मिलती है.

मंडी शिवरात्रि मेले में लुच्ची की भारी डिमांड.
ऐसे बनती है लुच्ची- बता दें कि लुच्ची को मैदे से बनाया जाता है. आप इसे एक तरह की रुमाली रोटी भी कह सकते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि इसे वनस्पति घी में तलकर बनाया जाता है. शिवरात्रि मेले के दौरान शहर भर में आपको लुच्ची के स्टॉल (Luchi food stall at Mandi) बड़ी संख्या में मिल जाएंगे. लुच्ची विक्रेता ललिता ठाकुर ने बताया कि लोग लुच्ची का स्वाद चखने के लिए दूर-दूर से आते हैं और खाने के साथ ही पैक करके भी ले जाते हैं. उन्होंने बताया कि हर वर्ष लुच्ची का मेले के दौरान अच्छा कारोबार हो जाता है.

इतिहासकार धर्मपाल बताते हैं कि लुच्ची का मंडी के पारंपरिक व्यंजनों से कोई नाता नहीं है, लेकिन आज यह लोगों के स्वाद की पसंद बन चुकी है. बंगाल में लुच्ची और हलवे को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है लेकिन मंडी में इसे नॉन वैज के साथ खाने का प्रचलन काफी बढ़ गया है. इस पकवान को राज परिवार के लोग लेकर आए थे जिनका बंगाल के साथ नाता रहा है.

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