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भारतीय सोच की परिचायक है राष्ट्रीय शिक्षा नीति: राज्यपाल राजेंद्र अर्लेकर - Governor of Himachal Pradesh

धर्मशाला में स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय में 'शिक्षा का भारतीय स्वरूप' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रदेश के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में हमें मूल रूप से किस दिशा में आगे बढ़ना है, इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है.

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Published : Oct 13, 2021, 5:01 PM IST

धर्मशाला: सेंट्रल यूनिवर्सिटी में 'शिक्षा का भारतीय स्वरूप' विषय पर बुधवार को संगोष्ठी आयोजित की गई थी. जिसकी अध्यक्षता प्रदेश के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने की. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) भारतीय सोच, संस्कृति, इतिहास और मूल्य को आगे बढ़ाने वाली है, जिसमें हम सब को योगदान देना है ताकि यह राष्ट्र पुनः विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठापित हो सके.

उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में हमें मूल रूप से किस दिशा में आगे बढ़ना है, इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है. भारतीय सोच हमें दुनिया में अलग पहचान देती है ’कन्या पूजन’ तथा ’अंतरराष्ट्रीय कन्या शिशु दिवस’ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यही सोच औपचारिकता से ज्यादा हमें वास्तविकता की ओर ले जाती है. आज की शिक्षा हमें हमारी संस्कृति, परंपरा और जमीन से नहीं जोड़ पाई है. हमारी सोच पढ़-लिख का हमें भारत की मिट्टी में काम करने के लिये आगे नहीं लाती है, सिर्फ नौकरी मांगने के लिए प्रेरित करती है. इसलिए आज यह तय करने की आवश्यकता है कि हमें नौकरी देने वाला बनना है या नौकरी मांगने वाला.

वीडियो.

राज्यपाल ने कहा कि मैकाले की गुलाम बनाने की शिक्षा नीति से क्या हम बाहर निकल पाएंगे. इससे बाहर निकलने में सिर्फ नई शिक्षा नीति हमारी मदद कर सकती है. इस नीति में शिक्षण संस्थानों के विकास, हमारी संस्कृति के विचारों का प्रावधान और हमारी संस्कृति, भाषा का ध्यान रखा गया है. 1947 में हमें राजनीतिक आजादी तो मिली, लेकिन अंग्रेजों की दी हुई सोच से आजाद नहीं हो पाए.

भारत तिब्बत सहयोग मंच के राष्ट्रीय संयोजक एंव राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार ने कहा कि दुनिया ने मॉडल ऑफ कलेक्टिविटी दी, जबकि हमारी संस्कृति ने इंटेग्रिटी का मॉडल दिया. हमारी सोच में देश प्रेम प्रथम होना चाहिए. देश की आजादी के लिये जितने भी संघर्ष हुए वह एक ही नारे पर लड़े गए कि 'अंग्रेजों भारत छोड़ो'. आजादी के नारे रोटी, कपड़ा, मकान के नारों पर केंद्रित नहीं थे. विकास को हम जीडीपी से नहीं बल्कि ग्रॉस हैप्पीनेस से मापते थे और हमारे लिये विकास का मॉडल भवन निर्माण नहीं बल्कि हैप्पीनेस था.

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रो. नागेश ठाकुर ने कहा कि हर राष्ट्र की अपनी संस्कृति, परम्पराएं व आत्मा होती है. उसी प्रकार हर राष्ट्र की अपनी शिक्षा नीति भी होती है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति पूरे राष्ट्र की शिक्षा नीति है यह एक क्रांतिकारी कदम है जब 185 वर्षों के बाद भारत में भारतीय परंपरा, संस्कृति पर आधारित शिक्षा नीति बनाई है. उन्होंने इसके विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की. इससे पूर्व, केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो एसपी बंसल ने राज्यपाल को सम्मानित किया. इस अवसर पर केंद्रीय विश्वविद्यालय के संशोधित लोगो और जैविक विज्ञान संकाय की शोध पत्रिका का विमोचन भी किया गया.

ये भी पढ़ें: मंडी के विकास को देखते हुए जनता बीजेपी के साथ, ब्रिगेडियर खुशाल सिंह बनेंगे सांसद: गोविंद ठाकुर

धर्मशाला: सेंट्रल यूनिवर्सिटी में 'शिक्षा का भारतीय स्वरूप' विषय पर बुधवार को संगोष्ठी आयोजित की गई थी. जिसकी अध्यक्षता प्रदेश के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने की. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) भारतीय सोच, संस्कृति, इतिहास और मूल्य को आगे बढ़ाने वाली है, जिसमें हम सब को योगदान देना है ताकि यह राष्ट्र पुनः विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठापित हो सके.

उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में हमें मूल रूप से किस दिशा में आगे बढ़ना है, इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है. भारतीय सोच हमें दुनिया में अलग पहचान देती है ’कन्या पूजन’ तथा ’अंतरराष्ट्रीय कन्या शिशु दिवस’ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यही सोच औपचारिकता से ज्यादा हमें वास्तविकता की ओर ले जाती है. आज की शिक्षा हमें हमारी संस्कृति, परंपरा और जमीन से नहीं जोड़ पाई है. हमारी सोच पढ़-लिख का हमें भारत की मिट्टी में काम करने के लिये आगे नहीं लाती है, सिर्फ नौकरी मांगने के लिए प्रेरित करती है. इसलिए आज यह तय करने की आवश्यकता है कि हमें नौकरी देने वाला बनना है या नौकरी मांगने वाला.

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राज्यपाल ने कहा कि मैकाले की गुलाम बनाने की शिक्षा नीति से क्या हम बाहर निकल पाएंगे. इससे बाहर निकलने में सिर्फ नई शिक्षा नीति हमारी मदद कर सकती है. इस नीति में शिक्षण संस्थानों के विकास, हमारी संस्कृति के विचारों का प्रावधान और हमारी संस्कृति, भाषा का ध्यान रखा गया है. 1947 में हमें राजनीतिक आजादी तो मिली, लेकिन अंग्रेजों की दी हुई सोच से आजाद नहीं हो पाए.

भारत तिब्बत सहयोग मंच के राष्ट्रीय संयोजक एंव राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार ने कहा कि दुनिया ने मॉडल ऑफ कलेक्टिविटी दी, जबकि हमारी संस्कृति ने इंटेग्रिटी का मॉडल दिया. हमारी सोच में देश प्रेम प्रथम होना चाहिए. देश की आजादी के लिये जितने भी संघर्ष हुए वह एक ही नारे पर लड़े गए कि 'अंग्रेजों भारत छोड़ो'. आजादी के नारे रोटी, कपड़ा, मकान के नारों पर केंद्रित नहीं थे. विकास को हम जीडीपी से नहीं बल्कि ग्रॉस हैप्पीनेस से मापते थे और हमारे लिये विकास का मॉडल भवन निर्माण नहीं बल्कि हैप्पीनेस था.

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रो. नागेश ठाकुर ने कहा कि हर राष्ट्र की अपनी संस्कृति, परम्पराएं व आत्मा होती है. उसी प्रकार हर राष्ट्र की अपनी शिक्षा नीति भी होती है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति पूरे राष्ट्र की शिक्षा नीति है यह एक क्रांतिकारी कदम है जब 185 वर्षों के बाद भारत में भारतीय परंपरा, संस्कृति पर आधारित शिक्षा नीति बनाई है. उन्होंने इसके विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की. इससे पूर्व, केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो एसपी बंसल ने राज्यपाल को सम्मानित किया. इस अवसर पर केंद्रीय विश्वविद्यालय के संशोधित लोगो और जैविक विज्ञान संकाय की शोध पत्रिका का विमोचन भी किया गया.

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