सोनीपत: देश के सभी सहकारी बैकों को आरबीआई की निगरानी में लाने के प्रस्ताव को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. अब सभी सहकारी और बहु राज्य सहकारी बैंकों को रिजर्व बैंक की देखरेख में लाया जाएगा. इस पर सरकार का तर्क है कि सरकारी बैंकों के जमा कर्ताओं को संतुष्टि और सुरक्षा देना है. आरबीआई की शक्तियां जैसे ही अनुसूचित बैंकों पर लागू होती हैं, वैसे ही सहकारी बैंकों पर लागू होंगी.
देश में 1482 सहकारी बैंक और 58 बहु राज्य सहकारी बैंक हैं. जो आरबीआई के अंडर काम करेंगी. इस पर लोगों को कहना है कि सहकारी बैंकों के आरबीआई के अंडर जाने पर बैंकों को जरूर फायदा होगा. इससे बैंकों की घाटे की समस्या दूर हो जाएगी, लेकिन ये बैंक उद्देश्य से भटक जाएगी. इसका असर किसान पर भी पड़ेगा.
किसानों की बढ़ सकती है समस्या
वहीं किसान नेता सरकार के इस फैसले से नाखुश दिख रहे हैं. किसान नेता राजेश दहिया का कहना है कि आरबीआई जिस तरह से सहकारी बैंकों को अंडर लेने जा रही है. इससे किसानों को बड़ा नुकसान होगा. क्योंकि किसान की पेमेंट तो लेट मिलती है. फिर भी उन्हें कोई ब्याज नहीं मिलता. साथ ही किसानों को हर काम के लिए ज्यादा डॉक्यूमेंट्स तैयार करने होंगे. इससे किसानों को काफी दिक्कत होगी. आरबीआई की बेतुकी गाइडलाइन किसानों के ऊपर थोपी जाएंगी. इससे किसान को कुछ भी फायदा मिलने वाला नहीं है.
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बैंककर्मी भी होंगे परेशान
सहकारी बैंक के डायरेक्टर वीरेंद्र दहिया के मुताबिक आरबीआई के अंडर सहकारी बैंक आने के बाद कर्मचारियों को भी इसका नुकसान होगा. क्योंकि अभी तो बोर्ड ऑफ डायरेक्टर कर्मचारियों की बात सुन लेते हैं, लेकिन फिर ऐसा नहीं होगा. सरकार की ओर से उठाए गए इस कदम से किसान और आम लोग चिंतित जरूर हैं. क्योंकि सहकारी बैंक का मकसद लोगों की सहभागिता को बढ़ाना है. अगर आरबीआई के अंडर लाया जाता है तो इसका काम करने का तरीका बदल जाएगा, लेकिन ये कितना कारगर होगा ये तो आगे आने वाला वक्त ही बताएगा.