नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक बार केजरीवाल सरकार को झटका दिया है. कोर्ट ने राजधानी के प्राइवेट स्कूलों में रिजर्व कोटे के तहत एडमिशन में आधार की अनिवार्यता को खत्म कर दिया है. साथ ही एकल पीठ के फैसले का बरकरार रखा है. दिल्ली सरकार ने निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस), वंचित समूह (डीजी) और विशेष आवश्यकता वाले (सीडब्ल्यूएसएन) श्रेणियों के तहत होने वाले एडमिशन में आधार कार्ड को अनिवार्य किया था. जिसे हाईकोर्ट की एकल पीठ ने रद्द कर दिया था. इसके बाद सरकार डबल बैंच में गई थी, जहां से भी झटका मिला है.
गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने कहा कि किसी बच्चे की संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी प्राप्त करने से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके निजता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है. कोर्ट की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को ही मान्य रखा. कोर्ट की नजर में एकल न्यायाधीश का निर्णय पूरी तरह से केएस पुट्टास्वामी (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप है. न्यायालय ने यह भी कहा कि एकल न्यायाधीश ने अभी तक मामले पर अंतिम विचार नहीं किया है. इसलिए यह राय दी गई कि मामले में सरकार की अपील में कोई योग्यता नहीं थी और इसे खारिज कर दिया गया.
बच्चों को नहीं किया जाएगा मजबूर: न्यायमूर्ति भंभानी ने 27 जुलाई 2023 के अपने आदेश में 12 जुलाई, 2022 और 2 फरवरी, 2023 के परिपत्रों के संचालन पर रोक लगा दी थी. परिपत्रों को चुनौती देने वाली याचिका पांच वर्षीय बच्चे के पिता द्वारा दायर की गई थी. एकल-न्यायाधीश ने कहा कि किसी बच्चे को आधार कार्ड रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. यदि वे अपना आधार प्रस्तुत करके पहचान स्थापित करने में विफल रहते हैं तो भी उन्हें किसी भी सब्सिडी या लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है.
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सरकार ने दिए ये तर्क: दिल्ली सरकार ने इस आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि एकल न्यायाधीश विवादित परिपत्रों के पीछे के इरादे और उद्देश्यों को पर्याप्त रूप से समझने में विफल रहे हैं और आधार कार्ड या आधार संख्या की आवश्यकता एक व्यावहारिक उद्देश्य को पूरा करती है क्योंकि इसका उद्देश्य डुप्लिकेट आवेदनों को खत्म करना है.
सरकार ने तर्क दिया कि निजी, गैर सहायता प्राप्त, मान्यता प्राप्त स्कूलों में प्रवेश स्तर की कक्षाओं में ईडब्ल्यूएस/डीजी श्रेणी के लिए प्रवेश प्रक्रिया को आधुनिक बनाने के लिए डिज़ाइन की गई एक नीतिगत पहल थी. यह फर्जी पहचान के आधार पर फर्जी आवेदनों और प्रवेशों के खिलाफ सुरक्षा के रूप में कार्य करता है. सरकार ने आगे कहा कि उसका आवेदकों की गोपनीयता या सुरक्षा से समझौता करने का कोई इरादा नहीं है और वह सीधे आधार डेटाबेस तक नहीं पहुंच रही है. इन दलीलों के बाद भी खंडपीठ ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और अपील खारिज कर दी.
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