नई दिल्ली: अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के महासचिव कुशल दास ने आई-लीग क्लबों के साथ जारी विवाद पर अखिरकार अपनी चुप्पी तोड़ दी है.
आई-लीग क्लबों ने महासंघ के साथ जारी विवाद के कारण हाल में हुए सुपर कप में भी भाग नहीं लिया और दास क्लबों के इस रवैए से दुखी हैं.
मीडिया से बातचीत में दास ने कहा,"कुछ क्लब हैं जो विभिन्न प्रकार की बातें करके लगातार महासंघ के काम में बाधा डालते हैं. ये स्वीकार्य नहीं है. विश्व में कोई महासंघ इस प्रकार की चीजों को बर्दाश्त नहीं करेगा."
दास ने कहा,"क्लब अपने सुझाव देने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन वे महासंघ को हानि नहीं पहुंचा सकते. इस तरह के बयान देना स्वीकार्य नहीं है कि एआईएफएफ बिक गई है और भेदभाव करती है. इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए."
आई-लीग क्लबों ने मार्च में भुवनेश्वर में हुए सुपर कप में खेलने से इनकार कर दिया था ताकि भारतीय फुटबॉल के भविष्य के रोडमैप को तय करने के लिए एआईएफएफ अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल के साथ तत्काल बैठक की जा सके. हालांकि, पटेल के अप्रैल में बैठक का आश्वासन देने के बाद भी क्लब मैदान पर नहीं लौटे. कुछ क्लबों ने आरोप लगाया कि महासंघ उनके हितों के खिलाफ काम कर रहा है.
आपको बता दें मामले को अब अनुशासन समिति के पास भेज दिया गया है, जो 27 और 28 अप्रैल को दिल्ली में बैठक कर इस मुद्दे पर फैसला करेगी.
दास ने कहा,"महासंघ और उसके मार्केटिंग पार्टनर के साथ इस मामले पर चर्चा करने के लिए एक साथ आने के बजाय उन्होंने (क्लबों) एआईएफएफ के खिलाफ विद्रोह करने का प्रयास किया है. इससे कोई मदद नहीं मिलेगी. वे अध्यक्ष से मिलना चाहते थे और अध्यक्ष हमेशा कहते हैं कि वो क्लबों से मिलेंगे. वास्तव में वो व्यस्त थे और यात्रा कर रहे थे. उन्होंने कहा था कि वो 10 से 15 अप्रैल के बीच उनसे मिलेंगे. अब वो इस बात से नाराज हैं कि क्लबों ने उनके आश्वासन के बावजूद बगावत की और सुपर कप नहीं खेले. फुटबॉल नहीं खेलना कोई हल नहीं है. वो बेतुकी बात है."
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उन्होंने कहा,"नकारात्मकता पैदा करके वे खुद के पैर पर गोली मार रहे हैं. भारतीय फुटबॉल को अभी लंबा सफर तय करना है और सभी हितधारकों को इसे आगे बढ़ाने के लिए मिलकर काम करना होगा. क्लबों को धैर्य रखना होगा."
उन्होंने माना कि एआईएफएफ ने जो मॉडल अपनाया है उसके तहत देश में एक टॉप लीग होगी आईएसएल और फिर बाकी दूसरे स्तर की एक लीग होगी.
दास ने कहा,"एक शीर्ष लीग होनी है. उसके बाद सेकेंड टियर होगी. कुछ आई-लीग क्लब कह रहे हैं कि उन्हें खत्म किया जा रहा है, लेकिन इसमें कोई सच्चाई नहीं है. जब राष्ट्रीय टीम के सभी खिलाड़ी आईएसएल में खेल रहे हैं. आई-लीग क्लब भी खिलाड़ियों को विकसित कर रहे हैं. जॉबी जस्टिन और (माइकल) सूसाईराज इसके प्रमुख उदाहरण हैं. वे अब आईएसएल में चले गए हैं. क्लबों के पास इन खिलाड़ियों को विकसित करके लाभ अर्जित करने की गुंजाइश है. चार-पांच साल में करार से जुड़े दायित्वों के (आईएसएल में) खत्म हो जाने के बाद रेलिगेशन/प्रमोशन हो सकती है."
उन्होंने कहा,"हमारे पास अभी ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि जब कोई टीम रेलिगेट हो जाए तो उसे पैराशूट पेमेंट दी जाए, जैसा कि प्रमुख यूरोपीय लीगों में होता है. भारत में क्लबों के स्पॉन्सर होते है, उनके पास निश्चित मात्रा में निवेश होता है, लेकिन यदि उन्हें रेलिगेट कर दिया जाए तो स्पॉन्सर भाग जाएंगे. बदलाव लाने से पहले हमें उस अवस्था तक पहुंचना होगा."