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देउबा होंगे नेपाल के नए पीएम, सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिनिधि सभा को किया बहाल

नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर प्रतिनिधि सभा को बहाल कर दिया है. साथ ही अदालत ने राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को नया प्रधानमंत्री नियुक्त करने का निर्देश दिया है. केपी शर्मा ओली की जगह अब शेर बहादुर देउबा नेपाल के नए प्रधानमंत्री होंगे.

शेर बहादुर देउबा
शेर बहादुर देउबा
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Published : Jul 12, 2021, 2:59 PM IST

Updated : Jul 12, 2021, 5:20 PM IST

काठमांडू : नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा (Sher Bahadur Deuba) को मंगलवार तक प्रधानमंत्री नियुक्त करने का आदेश दिया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने भंग प्रतिनिधि सभा (House of Representatives) को करीब पांच महीने में दूसरी बार बहाल कर दिया है और 18 जुलाई को सदन का नया सत्र बुलाने का आदेश दिया है.

मध्यावधि चुनाव की तैयारी कर रहे मौजूदा प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (K P Sharma Oli) के लिए बड़ा झटका है, जो सदन में विश्वास मत हारने के बाद अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. 74 वर्षीय देउबा चार बार नेपाल के प्रधानमंत्री का पद संभाल चुके हैं.

सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सोमवार को यह आदेश भी दिया कि दो दिन के अंदर नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाए.

मुख्य न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा (Chief Justice Cholendra Shumsher Rana) की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले हफ्ते इस मामले में सुनवाई पूरी की थी. पीठ में उच्चतम न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश- दीपक कुमार करकी, मीरा खडका, ईश्वर प्रसाद खातीवाड़ा और डॉ. आनंद मोहन भट्टाराई शामिल हैं.

पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी (President Bidya Devi Bhandari) का प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सिफारिश पर निचले सदन (प्रतिनिधि सभा) को भंग करने का फैसला असंवैधानिक था. पीठ ने मंगलवार तक देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का आदेश जारी किया.

ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूएमएल के अलावा प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस फैसले का स्वागत किया है.

नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली की अनुशंसा पर 275 सदस्यीय निचले सदन को 22 मई को पांच महीने में दूसरी बार भंग कर दिया था और 12 व 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव की घोषणा की थी.

यह भी पढ़ें- नेपाल में अनिश्चतता के बीच आम चुनाव की तैयारियां शुरू

चुनावों को लेकर अनिश्चितता के बीच निर्वाचन आयोग ने पिछले हफ्ते मध्यावधि चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा की थी. नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन द्वारा दायर याचिका समेत करीब 30 याचिकाएं राष्ट्रपति द्वारा सदन को भंग किए जाने के खिलाफ दायर की गई थीं.

यह दूसरी बार है जब शीर्ष अदालत ने ओली के कार्यकाल में सदन को बहाल करने के पक्ष में फैसला दिया है. इससे पहले 20 दिसंबर, 2020 को ओली ने सदन को भंग कर दिया था और सुप्रीम कोर्ट ने इसे 25 फरवरी, 2021 को बहाल कर दिया था.

विश्वास मत हासिल करने में विफल रहे ओली
10 मई को विश्वास मत हासिल करने में विफल रहने के बाद, प्रधानमंत्री ओली को संविधान के अनुच्छेद 76 (3) के अनुसार सदन में सबसे बड़ी पार्टी के संसदीय दल के नेता के रूप में उनकी क्षमता में फिर से नियुक्त किया गया था.

हालांकि, ओली ने अनुच्छेद 76(4) के अनुसार सदन से विश्वास मत प्राप्त नहीं करने का विकल्प चुना और राष्ट्रपति भंडारी को अनुच्छेद 75 (5) के अनुसार एक नई सरकार की प्रक्रिया शुरू करने की सिफारिश की.

यह भी पढ़ें- नेपाल के उच्चतम न्यायालय ने प्रतिनिधि सभा भंग करने के मामले में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को नोटिस भेजा

राष्ट्रपति भंडारी ने 20 मई को सदन के सदस्यों से शाम 5 बजे तक नई सरकार के लिए अपना दावा पेश करने को कहा. देउबा और ओली ने प्रधानमंत्री पद का दावा पेश किया था. देउबा ने 146 सांसदों के समर्थन का दावा किया, जबकि ओली ने कहा कि उनके पास 153 सांसदों का समर्थन है.

हालांकि, राष्ट्रपति भंडारी ने दोनों दावों को खारिज कर दिया और मंत्रिपरिषद की बैठक की सिफारिश के अनुसार 22 मई को सदन को भंग कर दिया था. प्रतिनिधि सभा को भंग करने के खिलाफ विपक्षी गठबंधन की याचिका सहित करीब 30 रिट याचिकाएं दायर की गई थीं.

सुप्रीम कोर्ट ने कैबिनेट में फेरबदल को किया था रद्द
नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने 22 जून को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को झटका देते हुए कैबिनेट फेरबदल को रद्द कर दिया था और ओली के कैबिनेट के 20 मंत्रियों को उनके पद से मुक्त कर दिया था. ओली ने 4 जून और 10 जून को मंत्रिमंडल का विस्तार किया था और 20 नए चेहरे जोड़े थे.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा था कि कोई कार्यवाहक प्रधानमंत्री चुनाव की घोषणा के बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल नहीं कर सकता. यह संविधान की भावना के खिलाफ जाता है. इसके साथ ही ओली के मंत्रिमंडल का आकार 25 से घटाकर पांच कर दिया गया था.

काठमांडू : नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा (Sher Bahadur Deuba) को मंगलवार तक प्रधानमंत्री नियुक्त करने का आदेश दिया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने भंग प्रतिनिधि सभा (House of Representatives) को करीब पांच महीने में दूसरी बार बहाल कर दिया है और 18 जुलाई को सदन का नया सत्र बुलाने का आदेश दिया है.

मध्यावधि चुनाव की तैयारी कर रहे मौजूदा प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (K P Sharma Oli) के लिए बड़ा झटका है, जो सदन में विश्वास मत हारने के बाद अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. 74 वर्षीय देउबा चार बार नेपाल के प्रधानमंत्री का पद संभाल चुके हैं.

सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सोमवार को यह आदेश भी दिया कि दो दिन के अंदर नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाए.

मुख्य न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा (Chief Justice Cholendra Shumsher Rana) की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले हफ्ते इस मामले में सुनवाई पूरी की थी. पीठ में उच्चतम न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश- दीपक कुमार करकी, मीरा खडका, ईश्वर प्रसाद खातीवाड़ा और डॉ. आनंद मोहन भट्टाराई शामिल हैं.

पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी (President Bidya Devi Bhandari) का प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सिफारिश पर निचले सदन (प्रतिनिधि सभा) को भंग करने का फैसला असंवैधानिक था. पीठ ने मंगलवार तक देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का आदेश जारी किया.

ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूएमएल के अलावा प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस फैसले का स्वागत किया है.

नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली की अनुशंसा पर 275 सदस्यीय निचले सदन को 22 मई को पांच महीने में दूसरी बार भंग कर दिया था और 12 व 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव की घोषणा की थी.

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चुनावों को लेकर अनिश्चितता के बीच निर्वाचन आयोग ने पिछले हफ्ते मध्यावधि चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा की थी. नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन द्वारा दायर याचिका समेत करीब 30 याचिकाएं राष्ट्रपति द्वारा सदन को भंग किए जाने के खिलाफ दायर की गई थीं.

यह दूसरी बार है जब शीर्ष अदालत ने ओली के कार्यकाल में सदन को बहाल करने के पक्ष में फैसला दिया है. इससे पहले 20 दिसंबर, 2020 को ओली ने सदन को भंग कर दिया था और सुप्रीम कोर्ट ने इसे 25 फरवरी, 2021 को बहाल कर दिया था.

विश्वास मत हासिल करने में विफल रहे ओली
10 मई को विश्वास मत हासिल करने में विफल रहने के बाद, प्रधानमंत्री ओली को संविधान के अनुच्छेद 76 (3) के अनुसार सदन में सबसे बड़ी पार्टी के संसदीय दल के नेता के रूप में उनकी क्षमता में फिर से नियुक्त किया गया था.

हालांकि, ओली ने अनुच्छेद 76(4) के अनुसार सदन से विश्वास मत प्राप्त नहीं करने का विकल्प चुना और राष्ट्रपति भंडारी को अनुच्छेद 75 (5) के अनुसार एक नई सरकार की प्रक्रिया शुरू करने की सिफारिश की.

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राष्ट्रपति भंडारी ने 20 मई को सदन के सदस्यों से शाम 5 बजे तक नई सरकार के लिए अपना दावा पेश करने को कहा. देउबा और ओली ने प्रधानमंत्री पद का दावा पेश किया था. देउबा ने 146 सांसदों के समर्थन का दावा किया, जबकि ओली ने कहा कि उनके पास 153 सांसदों का समर्थन है.

हालांकि, राष्ट्रपति भंडारी ने दोनों दावों को खारिज कर दिया और मंत्रिपरिषद की बैठक की सिफारिश के अनुसार 22 मई को सदन को भंग कर दिया था. प्रतिनिधि सभा को भंग करने के खिलाफ विपक्षी गठबंधन की याचिका सहित करीब 30 रिट याचिकाएं दायर की गई थीं.

सुप्रीम कोर्ट ने कैबिनेट में फेरबदल को किया था रद्द
नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने 22 जून को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को झटका देते हुए कैबिनेट फेरबदल को रद्द कर दिया था और ओली के कैबिनेट के 20 मंत्रियों को उनके पद से मुक्त कर दिया था. ओली ने 4 जून और 10 जून को मंत्रिमंडल का विस्तार किया था और 20 नए चेहरे जोड़े थे.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा था कि कोई कार्यवाहक प्रधानमंत्री चुनाव की घोषणा के बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल नहीं कर सकता. यह संविधान की भावना के खिलाफ जाता है. इसके साथ ही ओली के मंत्रिमंडल का आकार 25 से घटाकर पांच कर दिया गया था.

Last Updated : Jul 12, 2021, 5:20 PM IST
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