मुंबई : गो फर्स्ट की सेवाएं बंद होने से भारतीय एविएशन सेक्टर में उथल-पुथल दिखायी देने लगा है. मई महीने की शुरुआत में एक अच्छी खासी निजी एयरलाइन को अचानक बंद करने का फैसला किया गया है, जिससे गो फर्स्ट एक दशक में बंद होने वाली देश की 11वीं कंपनी बन गई. वाडिया समूह के नेतृत्व वाली गो फर्स्ट ने खुद को दिवालिया घोषित करने के लिए एनएलसीटी में स्वैच्छिक दिवाला समाधान याचिका दायर की है. इससे हमारे देश के एयरलाइंस उद्योग को करारा झटका लगा है.
दरअसल गो फर्स्ट ने अपनी इस हालत के लिए अमेरिकी जेट इंजन निर्माता कंपनी प्रैट एंड व्हिटनी को जिम्मेदार बताया है. एयरलाइन ने कंपनी पर आरोप लगाया कि समय पर इंजनों की डिलीवरी न करने के चलते गो फर्स्ट को मई 2023 में अपनी आधे से ज्यादा लगभग 40 फीसदी फ्लाइट्स को कैंसिल करना पड़ा. जिसका सीधा असर एयरलाइन के आमदनी पर पड़ा है. इसके बाद एयरलाइन ने खुद को दिवाला घोषित करने के लिए एनएलसीटी में याचिका दायर की है. जिस पर डीजीसीए ने कंपनी के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी किया था.
नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इंजन की समस्याओं से जूझ रहे गो फर्स्ट के प्रति सहानुभूति जताते हुए यह आश्वासन दिया और कहा कि सरकार हर संभव मदद कर रही है. सिंधिया ने यात्रियों को असुविधा से बचने के लिए गो फर्स्ट से वैकल्पिक यात्रा व्यवस्था करने का भी आह्वान किया.
गो फर्स्ट के अनुसार आईबीसी के तहत आवेदन पीडब्ल्यू द्वारा आपूर्ति किए गए विफल इंजनों की लगातार बढ़ती संख्या के बाद आया, इसके कारण इसके 61-मजबूत एयरबस ए-320 नियो विमानों में से लगभग 25, या इसके बेड़े का लगभग 40 फीसदी 30 अप्रैल, 2023 तक ग्राउंडिंग हो गया.
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Go First ने एक बयान में कहा कि दोषपूर्ण पीडब्ल्यू इंजनों के कारण ग्राउंडिंग की समस्या बढ़ रही थी. यह समस्या दिसंबर 2019 में 7 फीसदी थी, जो दिसंबर 2020 में बढ़कर 31 प्रतिशत और दिसंबर 2022 में 50 प्रतिशत हो गई थी. इससे गो फर्स्ट को लगभग 10,800 करोड़ रुपये का भारी नुकसान उठाना पड़ा और यहां तक कि पीडब्लू से मुआवजे के रूप में 8000 करोड़ रुपये की मांग की गई थी.
इसके अलावा, गो फर्स्ट ने भी पिछले कुछ वर्षों में अपने पट्टेदारों को 5,657 करोड़ रुपये का भुगतान किया था. इसमें गैर-परिचालन वाले ग्राउंडेड विमानों के लिए लीज रेंट के रूप में 1,600 करोड़ रुपये शामिल थे.
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एक उड्डयन अधिकारी ने कहा कि एनसीएलटी द्वारा Go First एप्लिकेशन को संसाधित करने के बाद, यह एक अंतरिम रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को कार्यभार संभालने के लिए नियुक्त कर सकता है. ताकि इसे फिर से शुरू करने का मौका मिले. हालांकि गो फर्स्ट के प्रवर्तकों ने तीन वर्षों में लगभग 3,200 करोड़ रुपये का निवेश किया है. इस तरह से कुल मिलाकर लगभग 6,500 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है. सरकार की आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी से समर्थन के बाद भी यह ठीक नहीं हो सका.
17 साल से सेवा दे रही गो फर्स्ट एयरलाइन ने एनसीएलटी से दायर याचिका में पट्टेदारों को उसके विमान वापस लेने से रोकने, डीजीसीए द्वारा किसी भी प्रतिकूल कार्रवाई करने से बचने, आवश्यक वस्तुओं की आपूर्तिकतार्ओं के संदर्भ में कई अंतरिम निर्देश भी मांगे हैं.
गौरतलब है कि गो फर्स्ट 29 घरेलू और 10 अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डों के लिए 32 से अधिक उड़ानें संचालित करता था. नवंबर 2005 में 'गोएयर' के रूप में इसके संचालन की शुरुआत हुयी थी. इसके बाद गो फर्स्ट का ग्राफ धीरे-धीरे बढ़ता गया और यह देश का पांचवां सबसे बड़ा निजी वाहक बन गया था. दिसंबर 2020 से पीडब्लू 'इंजन की परेशानी' शुरू होने के कारण इसका संचालन को प्रभावित हुआ और इसी साल मई में उसे बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा. हालांकि इसके मालिक ने लोगों को पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि वे इस उद्यम को पुनर्जीवित करने की कोशिश करेंगे और इसे किसी और को नहीं बेचेंगे. कंपनी खुद को इस परेशानी से बाहर निकलने के इच्छुक है.
(आईएएनएस)
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