मुंबई: कोरोना वायर महामारी से उत्पन्न हालात में वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष धन की समस्या खड़ी होने का खतरा दिख रहा है. विदेशी करेंसी बाजार में डॉलर स्वैप (अदला-बदली) का प्रमिमय या ब्याज इस समय ऐतिहासिक ऊंचायी पर है. बासेल (स्विट्जरलैंड) स्थित केंद्रीय बैंकों के बैंक-बैंक ऑफ इंटरनेश्नल सेटलमेंट (बीआईएस) ने एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गयी है.
रपट के अनुसार डॉलर स्वैप दर का बढ़ा इस बात का संकेत है कि सरकारें, कंपनियां तथा निवेशक विनिमय दर में उतार चढ़ाव के जोखिम से बचाव को इस समय ज्यादा जरूरी मान रही हैं. डॉलर स्वैप दर बढ़ने का मतलब है कि भविष्य में डालर और मजबूत होने के अनुमान पर सौदे किए जा रहे हैं.
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कोरोना वायरस महामारी के कारण भविष्य की तिथि पर डालर डिलीवरी प्राप्त करने के अनुबंधों का प्रमियम (ब्याज) अच्छा खासा बढ़ गया है. इसको देखते हुए अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने मजबूरन विदेशी मुद्रा अदला-बदली को लेकर कम-से-कम पांच केंद्रीय बैंकों के साथ डालर की अदला बदली की व्यवस्था स्थापित की.
दुनिया भर के देश महामारी की रोकथाम के लिये किये जा रहे उपायों को लेकर कोष जुटाने पर गौर कर रहे हैं. इस महामारी के कारण दुनिया भर में जहां एक लाख से अधिक लोगों की मौत हो गयी वहीं लाखों लोग संक्रमित हैं.
बीआईएस ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विदेशी मुद्रा में डॉलर के वित्त पोषण की लागत तेजी से बढ़ी है. यह महामारी के कारण मांग और आपूर्ति के साथ कंपनियों तथा पोर्टफोलियो निवेशकों के मुद्रा हेजिंग को प्रतिबिंबित करता है. मुद्रा हेजिंग से आशय मुद्रा विनिमय दर में अप्रत्याशित या अपेक्षित बदलाव से सुरक्षा हासिल करना है.
बीआईएस के पास उपलब्ध ओवर द काउंटर डेरिवेटिव्स (दो पक्षों के बीच प्रत्यक्ष तौर पर होने वाला अनुबंध) आंकड़े के अनुसार जून 2019 के अंत में बकाया विदेशी कर्ज 86,000 अरब डॉलर था. इसमें लगभग तीन चौथाई विदेशी मुद्रा अदला-बदली के अनुबंधों की हिस्सेदारी थी.
रपट के अनुसार इसमें कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है कि दो मुद्राओं की अदला-बदली के इन सौदों एक मुद्रा डॉलर (89 प्रतिशत) रही है. रिपोर्ट के अनुसार 86,000 अरब डॉलर के वैश्विक कर्ज में से 89 प्रतिशत डॉलर है. इसका मतलब है कि डॉलर अदला-बदली की लागत बढ़ने पर सरकारों, कंपनियों तथा अन्य कर्जदाताओं पर ब्याज का बोझ उसी अनुपात में बढ़ेगा.
इसमें कहा गया है कि इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये वित्तीय समस्याएं बढ़ सकती है क्योंकि डॉलर अदला-बदली मूल्य बढ़ने से उन देशों पर बोझ बढ़ता है जिनके साथ अमेरिकी फेडरल रिजर्व (केंद्रीय बैंक) की मुद्रा अदला-बदली व्यवस्था नहीं है.
अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने यूरोपीय सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ जापान, बैंक ऑफ इंग्लैंड, स्विस नेश्नल बैंक और बैंक ऑफ कनाडा के साथ 15 मार्च को विदेशी मुद्रा अदला-बदली व्यवस्था शुरू की. इन सबके बावजूद नीतिगत चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि डॉलर वित्त पोषण बाजार मजबूत बना रहे. रिपोर्ट के मुताबिक महामारी शुरू होने के साथ डॉलर वित्त पोषण लागत तेजी से बढ़ी है और लगभग 2008 के संकट के दौरान के स्तर पर पहुंच गयी है.
(पीटीआई-भाषा)