हैदराबाद : लोक सभा ने इस हफ्ते की शुरुआत में ऋणशोधन क्षमता एवं दिवालियापन नियमावली यानी दि इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2020 को मंजूरी दे दी. यह विधेयक उन कंपनियों को बचाने की कोशिश करता है, जो वैश्विक महामारी कोविड-19 के प्रतिकूल आर्थिक प्रभाव के कारण कठिनाई का सामना कर रहे हैं. विधेयक में नए संशोधन का प्रारंभिक मकसद कॉर्पोरेट इनसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोसेस (सीआईआरपी) की शुरुआत को रोकने के लिए इसके अधिनियम की धारा सात, नौ और दस को अस्थाई रूप से स्थगित करना था, ताकि कोविड -19 से प्रभावित कंपनियां कठिनाई से उबर सकें. लोक सभा में बहस के दौरान भी अन्य ऋण वसूली और समाधान प्रक्रियाओं जैसे लोक अदालतों, ऋण वसूली न्यायाधिकरणों और वित्तीय परिसंपत्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा ब्याज अधिनियम, 2002 (एसएआरएफएईएसआई) (Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act, 2002 (SARFAESI) या सरफेसी अधिनियम के तहत कार्यवाही के मुकाबले इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) के प्रदर्शन की एक तस्वीर पेश हुई.
विपक्षी सदस्यों की ओर से उठाए गए सवालों के जवाब में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि औसतन 42.5 फीसद रिकवरी दर के साथ आईबीसी का प्रदर्शन कर्ज वसूली के अन्य तरीकों जैसे लोक अदालतों, ऋण वसूली न्यायाधिकरणों और एसएआरएफएईएसआई अधिनियम के तहत अदालती कार्यवाही से कहीं बेहतर था.
स्ट्राइक रेट: लोक अदालत बनाम डीआरटी बनाम सरफेसी बनाम आईबीसी
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के स्तर से साझा किए गए नवीनतम आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, आईबीसी के तहत समाधान (रिजॉल्यूशन) प्रक्रिया में लोक अदालत, ऋण वसूली न्यायाधिकरण और वित्तीय अस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण (एसएआरएफएईएसआई) अधिनियम मामलों के तहत शुरू की गई वसूली के तरीकों की तुलना में रिकवरी की दर सबसे अधिक है.
वित्त वर्ष 2018-19 के तत्कालिक संख्या के अनुसार 40 लाख से अधिक मामलों को लोक अदालतों में भेजा गया और 2,816 करोड़ रुपये की राशि वसूल की गई, जिसमें रिकवरी दर महज 5.3 फीसद थी. ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) (Debt Recovery Tribunals (DRTs) के पास 2.52 लाख से अधिक मामलों को भेजा गया और 10 हजार 574 करोड़ रुपये की राशि बरामद की गई. केवल 3.5 फीसद की वसूली हुई. एसएआरएफएईएसआई के पास मामलों की संख्या 2.48 लाख से अधिक थी, जिसमें से 2.89 लाख करोड़ रुपये की राशि शामिल थी. इसमें से 41 हजार 876 करोड़ रुपये की राशि वसूल हुई. वसूली दर केवल 14.5 फीसद रही. निर्मला सीतारमण ने कहा कि आईबीसी की औसतन वसूली दर 42.5 फीसद है.
आईबीसी ने समाधान का समय घटाकर किया एक चौथाई
वित्तीय संकट या परिसमापन विवाद के समाधान के लिए अदालती मामले वर्षों तक चलते हैं. इसके विपरीत इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकिंग कोड (आईबीसी) में न केवल समयबद्ध समाधान का प्रावधान है, बल्कि यह अक्सर समय के भीतर संकट का समाधान करने में सक्षम होता है. आईबीसी कानून के अनुसार, संकट के लिए समाधान प्रक्रिया 180 दिनों के भीतर पूरी होनी चाहिए. यह और 90 दिनों तक के लिए बढ़ाई जा सकती है पर किसी भी स्थिति में इसे 330 दिनों के भीतर पूरा किया जाना चाहिए. जिसमें अदालती मामलों में लगने वाला समय भी शामिल है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोक सभा को बताया कि अदालती मुकदमेबाजी में लगने वाले समय को छोड़कर आईबीसी समाधान के लिए लिया गया औसत समय 380 दिनों का था, जबकि अदालत के मामलों में एक वित्तीय मामले को सुलझाने में औसतन चार साल से अधिक का समय लगता था.
आईबीसी की रिकवरी दर सबसे अधिक
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से लोक सभा में साझा किए गए नवीनतम आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, आईबीसी के तहत एक कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोसेस (सीआईआरपी) बीआरटी और एसएआरएफएईएसआई जैसे अन्य तरीकों की तुलना में वर्ष 2019 में 70 फीसद से अधिक की रिकवरी दर को छू गया है. निर्मला सीतारमण ने लोक सभा को बताया कि 2016 में हमारी रिकवरी दर 26 फीसद थी. वर्ष 2017 में इस कानून के आने के एक वर्ष के भीतर यह 26.4 फीसद थी. 2018 में यह 26.5 फीसद थी और 2019 में यह 71.6 फीसद हो गई थी, यही कारण है कि हमारी रैंकिंग (व्यापार रैंकिंग में आसानी) में सुधार हुआ.
आईबीसी डिफंक्ट कंपनियों को पुनर्जीवित करने में रहा सफल
आईबीसी कानून के प्रदर्शन के बारे में बात करते हुए वित्त मंत्री ने निचले सदन को सूचित किया कि इस कानून ने जुलाई 2020 तक लगभग 258 कंपनियों को बचाया है. सीतारमण ने कहा कि जिन कंपनियों को बचाया गया उनमें से एक-तिहाई पूरी तरह से बीमार थीं या डीफंक्ट (निष्क्रीय) भी थीं. यहां तक कि डिफंक्ट कंपनियों को भी बचाया जा चुका है. वित्त मंत्री ने कहा कि आईबीसी के तहत समाधान प्रक्रिया के परिणामस्वरूप अब तक 965 कंपनियों का परिसमापन हुआ, जब परिसमापन की प्रक्रिया शुरू हुई तो इनमें से लगभग तीन-चौथाई कंपनियां या तो बीमार थीं या डिफंक्ट थीं.
निर्मला सीतारमण ने कहा कि जिन कंपनियों को बचाया गया उनकी संपत्ति का मूल्य 96 हजार करोड़ रुपये था, जबकि फर्मों के परिसमापन के लिए जब सीआईआरपी में शामिल किया गया था तो संपत्ति का मूल्य 38 हजार करोड़ रुपये निर्धारित किया था. उन्होंने कहा कि मूल्य के संदर्भ में कहें तो कुल मिलाकर पुरानी संपत्ति के 72 फीसद को बचाया गया है.