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झारखंड में अमेरिकी नागरिक का हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार, 10 दिन पहले कर ली थी आत्महत्या - रांची समाचार

रिम्स के शवगृह में रेफ्रीजिरेशन सिस्टम पूरी तहर से चौपट हो चुका है. यही वजह है कि अमेरिकी नागरिक मार्कस एंड्रयू लेदरडेल का पार्थिव शरीर दस दिनों में ही पूरी तरह से डिकंपोज हो गया. उनके करीबी मित्र कैलाश यादव उनकी अंतिम इच्छा पूरी करते हुए हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार कर दिया.

US citizen Marcus Andrew Leather Dale
मार्कस एंड्रयू लेदरडेल (फाइल फोटो)
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Published : May 3, 2022, 8:48 PM IST

रांची: झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स ने झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था को राष्ट्रीय नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मसार कर दिया है. 3 मई को जब कैलाश यादव अपने तीस साल पुराने अमेरीकी मित्र मार्कस एंड्रयू लेदरडेल का पार्थिव शरीर लेने रिम्स के मॉर्चरी में पहुंचे तो डेडबॉडी देखकर उनका कलेजा फट गया. उन्होंने जब ताबूत को खोला तो अपने मित्र के शव को सड़ी गली हालत में पाया. फिर भी दिल पर पत्थर रखकर उन्होंने अपने क्रिश्चियन अमेरीकी मित्र की अंतिम इच्छा पूरी करते हुए, हिन्दू रीति रिवाज से हरमू के मुक्ति धाम में दाह संस्कार कराया.

ये भी पढ़ें: रिम्स शवगृह का रेफ्रिजरेशन खराब, दस दिनों से सड़ रहा अमेरिकी नागरिक का शव

कैलाश यादव ने ईटीवी भारत से कहा कि किसी के भी पार्थिव शरीर के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए. रिम्स जैसे अस्पताल के मॉर्चरी का रेफ्रीजिरेशन सिस्टम पूरी तरह फेल है. इसी वजह से मार्कस की डेडबॉडी सड़ने लगी. जबकि महज दस दिन पहले यानी 23 अप्रैल को मार्कस एंड्रयू लेदरडेल का पार्थिव शरीर रिम्स के मॉर्चरी में रखा गया था. कैलाश यादव ने बताया कि अमेरीका में रह रही मार्कस की पूर्व पत्नी ने अमेरीकी काउंसलेट और एंबेसी के जरिए लीगल गार्जियन बताते हुए एनओसी भिजवाया था. फिर भी यहां के सिस्टम ने डेडबॉडी देने में दस दिन लगा दिए. इस बीच कुछ दिन पहले कैलाश यादव मॉर्चरी गए थे. वहां की हालत देखकर उन्होंने अपने मित्र के शव को सुरक्षित रखने के लिए बर्फ खरीदने के मद में एक कर्मी को पैसे भी दिए थे.

देखें वीडियो

दरअसल, मार्कस एंड्रयू लेदरडेल मूल रूप से कनाडा के रहने वाले थे. उन्होने अमेरीका में पढ़ाई की थी. 70 साल के मार्कस पेशे से एक फोटोग्राफर थे. उन्होंने एक से बढ़कर ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें निकाली हैं. वह बनारस, छत्तीसगढ़ और झारखंड में आकर फोटोग्राफी करते थे. उनकी शादी अमेरीकी नागरिक कलैडिया से हुई थी, लेकिन बाद में तलाक हो गया था. इस बीच तीस साल पहले वह रांची के मैक्लूसकीगंज में आए थे. इसी दौरान उनकी मित्रता वहां के स्थानीय निवासी कैलाश यादव से हुई थी. तब से जो संबंध बना वह मरते दम तक कायम रहा.

कोरोना काल में पिछले साल नवंबर में ही मार्कस एंड्रयू लेदरडेल मैक्लूसकीगंज आए थे. वह अपने मित्र के झारखंड बाग नाम के घर में रुके थे. उसी कैंपस में उन्होंने रील से तस्वीर निकालने के लिए डार्क रूम बना रखा था. उनके बेहद करीबी रहे मैक्लुस्कीगंज के संदीप राजदान ने बताया कि वह बेहद मिलनसार थे. उनके बेटे के जन्मदिन पर घर भी आए थे. उन्होंने बेटे को ब्लैक एंड व्हाइट पोस्टकार्ड तस्वीर भी दी थी. लेकिन 23 अप्रैल को अचानक उन्होंने अपने डार्क रूम में आत्महत्या कर ली. क्या राज्य का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल एक पार्थिव शरीर को भी सुरक्षित रखने की स्थिति में नहीं है. इस बारे में प्रतिक्रिया लेने के लिए रिम्स के निदेशक और अधीक्षक से कई बार संपर्क किया गया लेकिन किसी ने फोन तक रिसिव नहीं किया.

रांची: झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स ने झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था को राष्ट्रीय नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मसार कर दिया है. 3 मई को जब कैलाश यादव अपने तीस साल पुराने अमेरीकी मित्र मार्कस एंड्रयू लेदरडेल का पार्थिव शरीर लेने रिम्स के मॉर्चरी में पहुंचे तो डेडबॉडी देखकर उनका कलेजा फट गया. उन्होंने जब ताबूत को खोला तो अपने मित्र के शव को सड़ी गली हालत में पाया. फिर भी दिल पर पत्थर रखकर उन्होंने अपने क्रिश्चियन अमेरीकी मित्र की अंतिम इच्छा पूरी करते हुए, हिन्दू रीति रिवाज से हरमू के मुक्ति धाम में दाह संस्कार कराया.

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कैलाश यादव ने ईटीवी भारत से कहा कि किसी के भी पार्थिव शरीर के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए. रिम्स जैसे अस्पताल के मॉर्चरी का रेफ्रीजिरेशन सिस्टम पूरी तरह फेल है. इसी वजह से मार्कस की डेडबॉडी सड़ने लगी. जबकि महज दस दिन पहले यानी 23 अप्रैल को मार्कस एंड्रयू लेदरडेल का पार्थिव शरीर रिम्स के मॉर्चरी में रखा गया था. कैलाश यादव ने बताया कि अमेरीका में रह रही मार्कस की पूर्व पत्नी ने अमेरीकी काउंसलेट और एंबेसी के जरिए लीगल गार्जियन बताते हुए एनओसी भिजवाया था. फिर भी यहां के सिस्टम ने डेडबॉडी देने में दस दिन लगा दिए. इस बीच कुछ दिन पहले कैलाश यादव मॉर्चरी गए थे. वहां की हालत देखकर उन्होंने अपने मित्र के शव को सुरक्षित रखने के लिए बर्फ खरीदने के मद में एक कर्मी को पैसे भी दिए थे.

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दरअसल, मार्कस एंड्रयू लेदरडेल मूल रूप से कनाडा के रहने वाले थे. उन्होने अमेरीका में पढ़ाई की थी. 70 साल के मार्कस पेशे से एक फोटोग्राफर थे. उन्होंने एक से बढ़कर ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें निकाली हैं. वह बनारस, छत्तीसगढ़ और झारखंड में आकर फोटोग्राफी करते थे. उनकी शादी अमेरीकी नागरिक कलैडिया से हुई थी, लेकिन बाद में तलाक हो गया था. इस बीच तीस साल पहले वह रांची के मैक्लूसकीगंज में आए थे. इसी दौरान उनकी मित्रता वहां के स्थानीय निवासी कैलाश यादव से हुई थी. तब से जो संबंध बना वह मरते दम तक कायम रहा.

कोरोना काल में पिछले साल नवंबर में ही मार्कस एंड्रयू लेदरडेल मैक्लूसकीगंज आए थे. वह अपने मित्र के झारखंड बाग नाम के घर में रुके थे. उसी कैंपस में उन्होंने रील से तस्वीर निकालने के लिए डार्क रूम बना रखा था. उनके बेहद करीबी रहे मैक्लुस्कीगंज के संदीप राजदान ने बताया कि वह बेहद मिलनसार थे. उनके बेटे के जन्मदिन पर घर भी आए थे. उन्होंने बेटे को ब्लैक एंड व्हाइट पोस्टकार्ड तस्वीर भी दी थी. लेकिन 23 अप्रैल को अचानक उन्होंने अपने डार्क रूम में आत्महत्या कर ली. क्या राज्य का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल एक पार्थिव शरीर को भी सुरक्षित रखने की स्थिति में नहीं है. इस बारे में प्रतिक्रिया लेने के लिए रिम्स के निदेशक और अधीक्षक से कई बार संपर्क किया गया लेकिन किसी ने फोन तक रिसिव नहीं किया.

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