कितने प्रकार की होती है कांवड़ और क्या हैं इसके नियम, जानिये कैसे करते हैं यात्रा - What are rules of Kanwar Yatra
इन दिनों कांवड़ यात्रा चल रही है. बड़ी संख्या में कांवड़िये गंगाजल लेने के लिए हरिद्वार,ऋषिकेश, गंगोत्री पहुंच रहे हैं. शिवभक्ति में डूबे कांवड़िये बम बोल के जयकारों के साथ आगे बढ़ रहे हैं. रास्तों पर अलग-अलग तरह की कांवड़ दिखाई दे रही है. जिससे लोगों में कांवड़ को लेकर उत्सुकता बनी हुई है. हर कोई कांवड़ के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहता है.
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देहरादून(उत्तराखंड): धर्मनगरी हरिद्वार इन दिनों कांवड़ के रंगों में रंगी है. हरिद्वार में चारों ओर बम बम भोले के जयकारे गूंज रहे हैं. भोलेनाथ को मनाने के लिए शिव भक्त मिलों दूर से चलकर हरिद्वार पहुंच रहे हैं. श्रावण का महीना औघड़दानी शिव का सबसे प्रिय महीना है. इस महीने में भोले नाथ बहुत प्रसन्न रहते हैं. वे अपने भक्तों पर कृपा करते हैं. इसी कारण सावन मास में लाखों-करोड़ों शिव भक्त अपने भोले भंडारी को खुश करने के लिए पदयात्रा करते हैं. इसे 'कांवड़ यात्रा' कहा जाता है.
देश के विभिन्न मंदिरों, शिवालयों में इस समय कांवड़ यात्रा करने वाले भक्त पहुंच रहे हैं. कांवड़ यात्रा को देश की सबसे बड़ी पदयात्रा भी कहा जा सकता है. उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा आदि राज्यों में कांवड़ यात्रा अधिक प्रचलित है. विशेष रूप से उत्तराखंड में ब्रह्मकुंड से जल लेकर भगवान शिव को समर्पित करने का विशेष महत्व माना जाता है. आपके आस-पास से गुजरने वाले शिवभक्त अलग-अलग तरीकों से कावड़ ले जाते हैं. इनकी महत्ता भी अलग-अलग होती है.
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सामान्य कांवड़: सामान्य कांवड़ में शिव भक्त किसी भी जगह जल भरने के बाद रुक सकते हैं. वे विश्राम भी कर सकते हैं. इसके लिए शिव भक्तों को किसी भी नदी से जल लेकर उसे कंधे पर लेकर जाना पड़ता है. सामान्य कांवड़ ले जाने वाले भक्त अपनी कांवड़ को कहीं भी रख सकते हैं. मगर इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है कि जहां पर वह रुके हैं, जहां अन्न, जल ग्रहण कर रहे हैं, वह जगह शुद्ध हो. सामान्य कांवड़ सालों से चली आ रही है. भक्त अपनी कांवड़ को अपनी इच्छा और सामर्थ्य के अनुसार भगवान शिव को समर्पित करते हैं.
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दांडी कांवड़: दांडी कांवड़ लेने जाने वाले शिवभक्त अपने कंधों पर वजन लेकर यात्रा करते हैं. इसमें एक लंबा बंदूक के समान डांडा होता है. जिसे भक्त कंधे पर बांधकर ले जाता है. इससे भक्त का मानसिक, शारीरिक, और सहनशक्ति का परीक्षण होता है. दांडी कांवड़ लेने वाले भक्त को धैर्य, त्याग, और समर्पण की भावना का अनुभव होता है.
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खड़ी कावड़: कुछ भक्त खड़ी कावड़ लेकर यात्रा करते हैं. ये कांवड़ संकेत करती हैं कि वे अपने पैरों पर खड़े होकर शिव की पूजा करने के लिए तत्पर हैं. ये यात्रा शारीरिक और मानसिक तनाव को दूर करने, स्वयं को परिश्रम से संयमित करने और ध्यान में स्थिरता को विकसित करने का एक तरीका है.
डाक कांवड़: डाक कांवड़ लेने वाले भक्त एक यात्रा के दौरान जल नहीं छूते हैं. इसके लिए वे अपने दोनों हाथों में कावड़ बांधकर यात्रा करते हैं. साथ ही इस कांवड़ को ले जाने वाले भक्त कहीं रुकते नहीं हैं. वे भागते भागते ही अपने गांव के शिवालयों तक पहुंचते हैं. यह कांवड़ उनकी सामर्थ्य और त्याग की प्रतीक होती है. इसके लिए उन्हें त्याग करते हुए कई किलोमीटर तक की यात्रा करनी पड़ती है.
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इस तरह, चार प्रकार की कांवड़ अलग-अलग भक्तों की आवश्यकताओं और योग्यताओं को प्रतिष्ठित करती है. इसके अलावा भी कुछ कांवड़ का महत्त्व बताया गया है
सफेद कांवड़: यह कांवड़ विशेष भक्तों द्वारा प्रयास किए जाने वाले साधारण लंबे लकड़ी के डंडे पर आधारित होता है. इसको सादरी वस्त्र में बांधकर भक्त उठाता है.
रूई चढ़ाई कांवड़: इस प्रकार की कावड़ में डंडे की ऊपरी सतह पर रूंई की विशेष पट्टियां चढ़ाई जाती हैं. यह रूंई चढ़ाने की परंपरा विशेष धार्मिक महत्व रखती है.
पालकी कावड़: इस प्रकार की कावड़ में एक पालकी उठाई जाती है. जिसमें गंगा जल रखा जाता है. यह भक्त द्वारा प्रदक्षिणा करते समय उठाई जाती है.
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मन्दिर कांवड़: इस प्रकार की कांवड़ में छोटे लंबे डंडे पर मन्दिर या शिवलिंग की प्रतिमा स्थापित की जाती है. भक्त इसे गंगा जल से धोकर और पूजा करके ले जाते हैं. ये उपर्युक्त कांवड़ प्रकार अधिक प्रचलित हैं. इसके अलावा भी कुछ प्रकार के कावड़ हो सकते हैं, जो भिन्न-भिन्न प्रदेशों और स्थानों पर आधारित होते हैं. इनमें स्थूलकावड़, कंधीकावड़, नागकावड़, सिन्धू कावड़, पंचमुखी कावड़, त्रिशूलकावड़, रामकावड़, शंकरकावड़ आदि शामिल हैं. ये कांवड़ प्रकार भक्तों के आदर्शों, परंपराओं और भाग्य के अनुसार विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चुने जाते हैं.
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क्या है कांवड़ यात्रा का महत्व: कांवड़ यात्रा भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह यात्रा मुख्य रूप से ग्रीष्म ऋतु में भगवान शिव की पूजा और उनके आशीर्वाद के लिए की जाती है. यह यात्रा हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की दूसरी तारीख से शुरू होती है. दूसरी तारीख को समाप्त होती है. इसका आयोजन प्रायः हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ शहरों में किया जाता है. कांवड़ यात्रा का इतिहास धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है. संदर्भों के अनुसार, इस यात्रा का शुरूआत महादेव के द्वारा की गई थी. भगवान शिव ने समुद्र मंथन के समय विष अमृत को प्राप्त करने के लिए भूमि पर गंगा जी को धारण किया था. जब उन्हें अमृत को सुरक्षित रखने के लिए कांवड़ों की आवश्यकता महसूस हुई, तो उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा कि वे अमृत लाकर उसे गंगा जी के पास चढ़ा दें. इस प्रकार, भगवान शिव के आदेशानुसार, उनके अनुयाय अमृत लाने के लिए यात्रा पर निकले. कांवड़ यात्रा के दौरान, यात्री भगवान शिव के नाम के चरणों में जल लेते हैं. उन्हें अपने मंदिरों में ले जाते हैं. इस यात्रा में यात्री ध्यान, तपस्या, व्रत और सेवा के माध्यम से अपनी आत्मा को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं.
यह यात्रा विशेष रूप से युवाओं द्वारा की जाती है, जो अपने श्रद्धा और निष्ठा को दिखाने के लिए इसमें भाग लेते हैं. कांवड़ यात्रा का इतिहास बहुत पुराना है. इसे सनातन धर्म के महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक अध्यात्म का हिस्सा माना जाता है. इस यात्रा के दौरान समाज के विभिन्न वर्गों के लोग एकजुट होते हैं. भगवान शिव की भक्ति में लीन होते हैं. यह यात्रा धार्मिक और सामाजिक महत्वपूर्ण है और लाखों लोगों द्वारा पूरी की जाती है.