नई दिल्ली : एनसीआरबी की रिपोर्ट (NCRB Report) के अनुसार, साल 2021 में कृषि क्षेत्र से संबद्ध 10,881 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें से 5,318 किसान और 5,563 खेत मजदूर थे. 5,318 किसान में से 5107 पुरुष और 211 महिलाएं थीं. 5,563 खेत मजदूरों में से 5,121 पुरुष तथा 442 महिलाएं थीं. आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, त्रिपुरा, मणिपुर, अरूणाचल प्रदेश, उत्तराखंड, चंडीगढ़, लक्षद्वीप और पुडुचेरी जैसे कुछ राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में किसी किसान या खेत मजदूर ने आत्महत्या (Farmers suicide cases) नहीं की. किसानों के आत्महत्या के बढ़ते मामलों पर ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों ने चिंता जतायी है. नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में पांच सितम्बर को मजदूरों, किसानों और खेत मजदूरों की बैठक बुलाई गई है. इस बैठक में किसानों के मामलों पर चर्चा की जाएगी.
अखिल भारतीय किसान सभा (All India Kisan Sabha) के महासचिव हन्नान मुल्ला ने कहा, "हम लंबे समय से इस मुद्दे को उठा रहे हैं, लेकिन सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. किसान आंदोलन के दौरान भी हमने लगातार कहा कि किसानों को लाभकारी मूल्य नहीं मिल रहा है, जो लागत से अधिक होना चाहिए. जब उन्हें पर्याप्त रिटर्न नहीं मिलता है, तो उन्हें नुकसान होता है और इस वजह से उन्हें स्थानीय साहूकारों से ऋण लेना पड़ता है.
उन्होंने कहा, "दरअसल, कुछ ही किसानों को बैंकिंग प्रणाली से ऋण प्राप्त करने का मौका मिलता है. अधिकतम ऋण केवल कृषि व्यवसाय क्षेत्र में जाता है. स्थानीय साहूकारों द्वारा लिया जाने वाला ब्याज आम तौर पर बहुत अधिक होता है और किसान उन्हें वापस भुगतान करने में असमर्थ रहते हैं. उस पर प्राकृतिक आपदाएं कभी-कभी किसानों के संकट को बढ़ा देती हैं, जिससे उनकी फसल नष्ट हो जाती है और उस स्थिति में किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं. इसलिए हम बार-बार यह मुद्दा उठाते हैं कि उनकी उपज को एमएसपी पर खरीदा जाना चाहिए जिसे कृषि वैज्ञानिक डॉ स्वामीनाथन ने सिफारिश की थी."