अहमदाबाद : मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने हाल ही में सूरत के 8 थाना क्षेत्रों में अशांत क्षेत्र अधिनियम की अवधि को 5 वर्षों के लिए और बढ़ा दिया है. इसकी पृष्ठभूमि में गुजरात में 1969 और 1985-86 में सांप्रदायिक दंगे हैं.
अहमदाबाद में सबसे अधिक सांप्रदायिक दंगों के कारण हिंदू परिवार अपने घरों को शहरी क्षेत्रों से बाहर सुरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरित कर दिया. साथ ही अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने शहरी क्षेत्र में मकान खरीद लिए और वहीं रहने लगे. राज्य सरकार ने दंगा प्रभावित क्षेत्रों में संपत्तियों की बिक्री और खरीद को रोकने के उद्देश्य से 1991 में अशांत क्षेत्र अधिनियम पेश किया था. समय-समय पर कई इलाकों को आवश्यकतानुसार इस अधिनियम के दायरे में लाया गया. वर्तमान में अधिक नए क्षेत्रों को शामिल किया गया है.
दरअसल, अशांत क्षेत्र अधिनियम अशांत क्षेत्रों में शांति सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया. जहां सांप्रदायिक दंगे हुए थे. साथ ही उत्पीड़न को रोकने के लिए, डराने-धमकाने और नागरिकों की शांति और सुरक्षा को खतरे में डालने के लिए संपत्ति की जब्ती को रोकने के लिए यह अधिनियम लाया गया. संपत्ति के हस्तांतरण को नियंत्रित करने वाला कानून जो किसी विशेष समुदाय की जनसंख्या में वृद्धि नहीं करता और विशेष रूप से एक धार्मिक समुदाय को दूसरे को संपत्ति बेचने की अनुमति नहीं देता है, अशांत क्षेत्र अधिनियम कहलाता है. ऐसे क्षेत्र में संपत्ति के हस्तांतरण के लिए जिला मजिस्ट्रेट की पूर्वानुमति आवश्यक है.
ऑल इंडिया मजलिस-ए-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के गुजरात प्रवक्ता दानिश कुरैशी ने ईटीवी भारत को बताया कि वास्तव में यह कानून असंवैधानिक है. तत्कालीन अहमदाबाद कलेक्टर ने इस मुद्दे पर 1991 में राज्य के मुख्य सचिव को एक पत्र भेजा था. आम तौर पर, जब यह अधिनियम लागू नहीं था, अहमदाबाद के 16 क्षेत्रों में से प्रत्येक में हर साल 12 से 15 हजार संपत्ति की बिक्री दर्ज की जाती थी. आज सभी जोन में यह घट गई है.
कैसे काम करता है यह अधिनियम
आम तौर पर ऐसे क्षेत्र में जहां एक धर्म का व्यक्ति अपनी संपत्ति को दूसरे धर्म के व्यक्ति को बेचना चाहता है. उसे राजस्व विभाग में रजिस्ट्रार के कार्यालय में पंजीकरण कराना होता है. फिर जिला मजिस्ट्रेट आवेदन के आधार पर फैसला करता है. इसकी जांच स्थानीय थाना पुलिस करती है और रिपोर्ट उच्च पुलिस अधिकारी को भेजी जाती है. जिसकी सूचना कलेक्टर को दी जाती है फिर इसके आधार पर कलेक्टर आवेदन का निस्तारण करते हैं.
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इस मुद्दे पर बोलते हुए सामाजिक कार्यकर्ता शहनाज शेख ने ईटीवी भारत को बताया कि कानून बहुत जटिल है. लोगों को एक सरकारी कार्यालय से दूसरे कार्यालय में जाना पड़ता है. हर धर्म के लोग संपत्ति खरीदते और बेचते हैं. अगर यह कानून हटा दिया जाए तो सभी धर्मों के लोगों को लाभ होगा.