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हिमाचल प्रदेश में 'आप' का मेगा रोड शो बुधवार को, बीजेपी के गढ़ से होगा चुनावी शंखनाद

पंजाब की जीत के बाद आम आदमी पार्टी की नजरें हिमाचल प्रदेश (AAP eyes on Himachal Pradesh) पर हैं. यहां इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं. आम आदमी पार्टी हिमाचल की सियासी पिच पर उतरने के लिए बुधवार 6 अप्रैल को मंडी में रोड शो है. इसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री और पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल के साथ पंजाब के सीएम भगवंत मान समेत पार्टी के कई नेता मौजूद रहेंगे. सवाल है कि पार्टी ने 6 अप्रैल और मंडी को ही क्यों चुना? और क्या पहाड़ पर पार्टी की राह में कौन सी चुनौतियां होंगी?

Aam Aadmi Party
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Published : Apr 5, 2022, 3:13 PM IST

शिमला: दिल्ली और पंजाब के बाद आम आदमी पार्टी की नजर अब हिमाचल प्रदेश (AAP eyes on Himachal Pradesh) पर हैं. इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव में 'आप' ने सभी 68 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कियाहै. हिमाचल में चुनावी शंखनाद के लिए पार्टी ने मंडी को चुना है, जहां बुधवार 6 अप्रैल को मेगा रोड शो का आयोजन होगा. मंडी में होने वाले रोड शो में पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल के साथ पंजाब सीएम भगवंत मान समेत पार्टी के कई नेता मौजूद होंगे.

6 अप्रैल ही क्यों: सवाल है कि आम आदमी पार्टी ने हिमाचल में सियासी पारी के आगाज के लिए 6 अप्रैल का दिन क्यों चुना? दरअसल 6 अप्रैल को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी और केंद्र के साथ हिमाचल में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी का स्थापना दिवस है. उस दिन देश और प्रदेश में पार्टी के कई कार्यक्रम होंगे. इस बीच अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने हिमाचल में ऐलान-ए-जंग के लिए इसी दिन को चुनकर 6 अप्रैल की तारीख में तड़का मार दिया है.

ये 'आप' का स्टाइल है: 2014 लोकसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल वाराणसी लोकसभा सीट से सीधे बीजेपी के तत्कालीन प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ मैदान में उतर गए थे. इसी तरह जब आम आदमी पार्टी पहली बार चुनावी मैदान में उतरी तो दिल्ली विधानसभा चुनाव 2013 में अरविंद केजरीवाल खुद दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव मैदान में खड़े हो गए और जीत हासिल की थी. इसी तरह इस बार हिमाचल में चुनाव लड़ने के ऐलान किया तो अरविंद केजरीवाल मंडी से शंखनाद करने जा रहे हैं. मंडी सूबे के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का गृह जिला है. 'आप' हिमाचल में कांग्रेस नहीं बल्कि बीजेपी से अपनी टक्कर मान रही है. जानकार मानते हैं कि ऐसे में ये सीधे मुख्यमंत्री के गृह जिले और फिलहाल बीजेपी का गढ़ माने जा रहे मंडी से आम आदमी पार्टी की सीधी चुनौती है.

मंडी को चुनने की और भी है वजह: मंडी सिर्फ बीजेपी का गढ़ या सीएम जयराम ठाकुर का गृह जिला नहीं है बल्कि मंडी इलकौती लोकसभा सीट है जो कांग्रेस के पास है. बीते साल हुए उपचुनाव में कांग्रेस के पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह पर खेला गया दांव सटीक बैठा. 2014 से लेकर 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हिमाचल की चारों सीटें बहुत बड़े अंतर से अपने नाम की थी. आम आदमी पार्टी मंडी में कांग्रेस और बीजेपी दोनों को टक्कर देने के मन से उतर रही है. इसके अलावा मंडी ही पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम का गढ़ भी है. जिनका परिवार फिलहाल कांग्रेस और बीजेपी में बंटा हुआ है. फिलहाल पंडित सुखराम अपने पोते के आश्रय शर्मा के साथ कांग्रेस में हैं तो बेटा अनिल शर्मा बीजेपी में, इसी मंडी जिले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कौल सिंह ठाकुर भी हैं. जो कांग्रेस के एक अलग ही धड़े का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं.

बीजेपी-कांग्रेस के बागी होंगे 'आप' के साथी: आम आदमी पार्टी इस वक्त हिमाचल में लोगों को अपने साथ तो जोड़ रही है लेकिन बड़े चेहरों की तलाश अब भी जारी है, जिसका फायदा हिमाचल में 'आप' को मिल सके. वैसे कांग्रेस और बीजेपी के नाराज नेताओं को अपने साथ शामिल करने में कोई परहेज नहीं होगा. जानकार मानते हैं कि आम आदमी पार्टी ने इस बात को ध्यान में रखकर भी मंडी को चुना है, जहां सुखराम परिवार से लेकर कौल सिंह समेत ऐसे नाराज नेताओं की लंबी फेहरिस्त है.

सियासी जानकार मानते हैं कि कांग्रेस हो या बीजेपी बगावत कहीं ज्यादा तो कहीं कम मौजूद है. चुनाव आते-आते टिकट के चाहवानों से लेकर बागी नेताओं की फेहरिस्त बढ़ने से भगदड़ मचेगी, जिसका फायदा आम आदमी पार्टी को कम से कम अपन कुनबा बढ़ाने में तो मिल ही सकता है. हाल-फिलहाल भी यूथ कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मनीष ठाकुर समेत कई कांग्रेसी 'आप' की झाड़ू थाम चुके हैं. कहा जा रहा है कि 6 अप्रैल को कई नेता आम आदमी का दामन थाम सकते हैं.

दिल्ली की कहानी पंजाब की जुबानी: बीते 5 सालों में जहां भी आम आदमी पार्टी चुनाव प्रचार के लिए पहुंची है वहां दिल्ली मॉडल की चर्चा की है. पंजाब की सत्ता तक पहुंचने में भी इस मॉडल की अहम भूमिका रही है. जानकार मानते हैं कि हिमाचल में भी चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी दिल्ली मॉडल की चर्चा तो करेगी लेकिन पंजाब में बनी नई नवेली सरकार के कामों पर भी फोकस होगा. हिमाचल में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं, तब तक पंजाब में सत्ता संभाल रही आम आदमी पार्टी अपना 6 महीने का रिपोर्ट कार्ड भी हिमाचल की जनता के सामने रख सकती है. कुल मिलाकर दिल्ली की कहानी पंजाब की जुबानी सुनाने की कोशिश होगी.

पंजाब से लगती सीटों पर आप का फोकस: पंजाब में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी के निशाने पर पंजाब से लगते हिमाचल प्रदेश के जिले होंगे. कांगड़ा और ऊना जैसे पंजाब से सटे जिलों में पार्टी का खास फोकस रह सकता है. कांगड़ा जिले में 15 और ऊना की 5 विधानसभा सीटें हैं. जानकार मानते हैं कि जीत-हार तो भविष्य की गर्त में है लेकिन पंजाब से हिमाचल के लगती सीटों को साधने की कोशिश तो की ही जा सकती है.

स्कूल, अस्पताल, बिजली, पानी हैं 'आप' के हथियार: कांग्रेस-बीजेपी के शासन से मुक्त कराना और स्कूल, अस्पताल, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं को बेहतर करने का वादा करना. आम आदमी पार्टी के ये सबसे बड़े हथियार हैं, और पार्टी इन्हीं को हिमाचल में दोहरा रही है. हालांकि हिमाचल में स्कूल, अस्पताल या बिजली, पानी की समस्या दिल्ली और पंजाब जैसी विकराल भले ना हो लेकिन पार्टी का फोकस इन्ही मुद्दों पर है.

कांग्रेस-बीजेपी का वही पुराना राग: आम आदमी पार्टी के सियासी दंगल में कूदने के साथ ही बीजेपी और कांग्रेस नेताओं की बयानबाजी का वही पुराना दौर भी शुरू हो या है. दोनों ही हिमाचल में 'आप' के भविष्य को सिरे से खारिज कर रहे हैं. कोई दिल्ली से लेकर पंजाब की जीत को तुक्का बता रहा है तो हिमाचल में तीसरे विकल्प के इतिहास की दुहाई दे रहा है. ये बात बिल्कुल सही है कि हिमाचल में सत्ता भले कांग्रेस और बीजेपी के पास आती-जाती रही हो और तीसरे विकल्प कभी भी मजबूती के साथ नहीं उभरा है. लेकिन बीजेपी-कांग्रेस को दूसरे राज्यों का सियासी इतिहास नहीं भूलना चाहिए.

साल 2012-13 से पहले आम आदमी पार्टी कहीं भी नहीं थी लेकिन आज अरविंद केजरीवाल लगातार तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री है, अब पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार है. दिल्ली में एक दशक पहले और पंजाब में 10 मार्च के नतीजों से पहले तक कांग्रेस-बीजेपी समेत तमाम विरोधी ऐसी ही बयानबाजी करते थे जैसी फिलहाल हिमाचल में हो रही है. पंजाब से लेकर दिल्ली तक तमाम विरोधियों ने आम आदमी पार्टी की जीत पर फिलहाल चुप्पी साध रखी है.

पहाड़ पर 'आप' की डगर भी आसान नहीं: हिमाचल के पड़ोसी राज्य पंजाब में आप ने भले सरकार बना ली हो लेकिन भौगोलिक और सियासी परिस्थितियों के लिहाज से मिलते-जुलते उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी खात भी नहीं खोल पाई. वो बात और है कि हिमाचल की तरह उत्तराखंड में भी आप की ये पहली सियासी पारी थी जबकि पंजाब की पिच पर साल 2017 में उतर चुकी पार्टी को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल था. 2014 में चारों और 2019 में पार्टी का इकलौता लोकसभा सांसद भी पंजाब से ही था. जानकार बताते हैं कि पंजाब में पार्टी 10 साल की मेहनत के बाद सत्ता तक पहुंच पाई.

हिमाचल में सियासी पारी शुरू कर रही पार्टी को पंजाब और दिल्ली की तरह कार्यकर्ताओं की फौज और बड़े चेहरों की तलाश है. जानकार मानते हैं कि इन चुनावों में अगर आम आदमी पार्टी अपनी उपस्थिति भी दर्ज करवा पाती है तो उसके लिए जीत से कम नहीं, हालांकि 2022 की तैयारी का फायदा 2024 लोकसभा चुनाव और फिर 2027 विधानसभा चुनाव में मिल सकता है.

आप का मुकाबला कांग्रेस से या बीजेपी से: आम आदमी पार्टी की एंट्री से किसको नुकसान होगा और किसको फायदा ? ये सवाल उठने से पहले ही आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को सिरे से नकारते हुए कहा था कि हिमाचल में उसका मुकाबला सिर्फ बीजेपी से है क्योंकि कांग्रेस देशभर से धीरे-धीरे गायब हो रही है. हालांकि अब दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने बीजेपी पर भी चुटकी लेते हुए कहा है कि उन्हें दिल्ली में बीजेपी को तीन बार हराने का तजुर्बा है और हिमाचल में भी बीजेपी को हराएंगे. जानकार मानते हैं कि आम आदमी पार्टी भले कोई बड़ा उलटफेर ना कर पाए लेकिन हिमाचल में कांग्रेस और बीजेपी को सियासी नुकसान पहुंचा सकती है. आप पहली बार चुनाव लड़ रही है और उसको होने वाला हर फायदा कांग्रेस और बीजेपी को नुकसान ही पहुंचाएगा. कांग्रेस की मौजूदा स्थिति और अंदरूनी कलह के कारण फिलहाल उसे ही आप ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है.

बयानों की बहार: चुनाव भले कुछ वक्त दूर हों लेकिन हिमाचल में सियासी बयानबाजी का दौर सियासी गलियारों में उबाल ला रहा है. बयानों की आई इस बहार की वजह आम आदमी पार्टी भी है, जिसके चलते आप से लेकर बीजेपी और कांग्रेस तक में बयानों की भरमार है. सीएम जयराम ठाकुर समेत तमाम मंत्री इस बार बीजेपी की सरकार रिपीट होने का दावा कर चुके हैं और आम आदमी पार्टी को पूरी तरह से नकारने की बात कह चुके हैं. भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने आम आदमी पार्टी को एंटी हिंदू और एंटी इंडिया पार्टी बताते हुए कहा कि वो कांग्रेस के रिजेक्टेड नेताओं को अपने साथ जोड़कर नई बोतल में पुरानी शराब भर रहे हैं. उधर कांग्रेसी नेताओं ने भी कहा है कि पंजाब वाला जादू हिमाचल में नहीं चलेगा. हालांकि आम आदमी पार्टी के हौसले पंजाब में जीत के बाद बुलंद हैं.

आप के सामने पहले शिमला की चुनौती: इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के सामने शिमला नगर निगम की चुनौती है. पार्टी निगम चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है, निगम चुनाव के जरिये वो खुद को आंकना चाहेगी. ऐसे में पार्टी की ओपनिंग पर बहुत कुछ निर्भर रहने वाला है, साथ ही बाकी दलों की नजर भी आम आदमी पार्टी पर रहेगी.

'आप' के सामने उम्मीदों का आसमान और चुनौतियों का 'पहाड़': आम आदमी पार्टी भले सरकार बनाने का दावा कर रही हो लेकिन ये पार्टी के थिंक टैंक को भी पता है कि सरकार बनाना फिलहाल बहुत दूर की कौड़ी है. क्योंकि अभी पार्टी के पास प्रदेश में ना संगठन है और ना ही नेता, पंजाब के नतीजों से पार्टी की बांछे खिली हुई हैं लेकिन उत्तराखंड के नतीजे भी सबक से कम नहीं है. लेकिन पहली बार हिमाचल के चुनावी रण में उतर रही आम आदमी पार्टी अगर कुछ सीटों पर भी अपनी छाप छोड़ पाती है तो ये बीजेपी और कांग्रेस का गणित बिगाड़ सकता है.

ये भी पढ़ें: बीजेपी को दिल्ली में तीन बार हराने का अनुभव है, हिमाचल में भी हराएंगे- सत्येंद्र जैन

शिमला: दिल्ली और पंजाब के बाद आम आदमी पार्टी की नजर अब हिमाचल प्रदेश (AAP eyes on Himachal Pradesh) पर हैं. इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव में 'आप' ने सभी 68 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कियाहै. हिमाचल में चुनावी शंखनाद के लिए पार्टी ने मंडी को चुना है, जहां बुधवार 6 अप्रैल को मेगा रोड शो का आयोजन होगा. मंडी में होने वाले रोड शो में पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल के साथ पंजाब सीएम भगवंत मान समेत पार्टी के कई नेता मौजूद होंगे.

6 अप्रैल ही क्यों: सवाल है कि आम आदमी पार्टी ने हिमाचल में सियासी पारी के आगाज के लिए 6 अप्रैल का दिन क्यों चुना? दरअसल 6 अप्रैल को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी और केंद्र के साथ हिमाचल में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी का स्थापना दिवस है. उस दिन देश और प्रदेश में पार्टी के कई कार्यक्रम होंगे. इस बीच अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने हिमाचल में ऐलान-ए-जंग के लिए इसी दिन को चुनकर 6 अप्रैल की तारीख में तड़का मार दिया है.

ये 'आप' का स्टाइल है: 2014 लोकसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल वाराणसी लोकसभा सीट से सीधे बीजेपी के तत्कालीन प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ मैदान में उतर गए थे. इसी तरह जब आम आदमी पार्टी पहली बार चुनावी मैदान में उतरी तो दिल्ली विधानसभा चुनाव 2013 में अरविंद केजरीवाल खुद दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव मैदान में खड़े हो गए और जीत हासिल की थी. इसी तरह इस बार हिमाचल में चुनाव लड़ने के ऐलान किया तो अरविंद केजरीवाल मंडी से शंखनाद करने जा रहे हैं. मंडी सूबे के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का गृह जिला है. 'आप' हिमाचल में कांग्रेस नहीं बल्कि बीजेपी से अपनी टक्कर मान रही है. जानकार मानते हैं कि ऐसे में ये सीधे मुख्यमंत्री के गृह जिले और फिलहाल बीजेपी का गढ़ माने जा रहे मंडी से आम आदमी पार्टी की सीधी चुनौती है.

मंडी को चुनने की और भी है वजह: मंडी सिर्फ बीजेपी का गढ़ या सीएम जयराम ठाकुर का गृह जिला नहीं है बल्कि मंडी इलकौती लोकसभा सीट है जो कांग्रेस के पास है. बीते साल हुए उपचुनाव में कांग्रेस के पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह पर खेला गया दांव सटीक बैठा. 2014 से लेकर 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हिमाचल की चारों सीटें बहुत बड़े अंतर से अपने नाम की थी. आम आदमी पार्टी मंडी में कांग्रेस और बीजेपी दोनों को टक्कर देने के मन से उतर रही है. इसके अलावा मंडी ही पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम का गढ़ भी है. जिनका परिवार फिलहाल कांग्रेस और बीजेपी में बंटा हुआ है. फिलहाल पंडित सुखराम अपने पोते के आश्रय शर्मा के साथ कांग्रेस में हैं तो बेटा अनिल शर्मा बीजेपी में, इसी मंडी जिले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कौल सिंह ठाकुर भी हैं. जो कांग्रेस के एक अलग ही धड़े का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं.

बीजेपी-कांग्रेस के बागी होंगे 'आप' के साथी: आम आदमी पार्टी इस वक्त हिमाचल में लोगों को अपने साथ तो जोड़ रही है लेकिन बड़े चेहरों की तलाश अब भी जारी है, जिसका फायदा हिमाचल में 'आप' को मिल सके. वैसे कांग्रेस और बीजेपी के नाराज नेताओं को अपने साथ शामिल करने में कोई परहेज नहीं होगा. जानकार मानते हैं कि आम आदमी पार्टी ने इस बात को ध्यान में रखकर भी मंडी को चुना है, जहां सुखराम परिवार से लेकर कौल सिंह समेत ऐसे नाराज नेताओं की लंबी फेहरिस्त है.

सियासी जानकार मानते हैं कि कांग्रेस हो या बीजेपी बगावत कहीं ज्यादा तो कहीं कम मौजूद है. चुनाव आते-आते टिकट के चाहवानों से लेकर बागी नेताओं की फेहरिस्त बढ़ने से भगदड़ मचेगी, जिसका फायदा आम आदमी पार्टी को कम से कम अपन कुनबा बढ़ाने में तो मिल ही सकता है. हाल-फिलहाल भी यूथ कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मनीष ठाकुर समेत कई कांग्रेसी 'आप' की झाड़ू थाम चुके हैं. कहा जा रहा है कि 6 अप्रैल को कई नेता आम आदमी का दामन थाम सकते हैं.

दिल्ली की कहानी पंजाब की जुबानी: बीते 5 सालों में जहां भी आम आदमी पार्टी चुनाव प्रचार के लिए पहुंची है वहां दिल्ली मॉडल की चर्चा की है. पंजाब की सत्ता तक पहुंचने में भी इस मॉडल की अहम भूमिका रही है. जानकार मानते हैं कि हिमाचल में भी चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी दिल्ली मॉडल की चर्चा तो करेगी लेकिन पंजाब में बनी नई नवेली सरकार के कामों पर भी फोकस होगा. हिमाचल में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं, तब तक पंजाब में सत्ता संभाल रही आम आदमी पार्टी अपना 6 महीने का रिपोर्ट कार्ड भी हिमाचल की जनता के सामने रख सकती है. कुल मिलाकर दिल्ली की कहानी पंजाब की जुबानी सुनाने की कोशिश होगी.

पंजाब से लगती सीटों पर आप का फोकस: पंजाब में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी के निशाने पर पंजाब से लगते हिमाचल प्रदेश के जिले होंगे. कांगड़ा और ऊना जैसे पंजाब से सटे जिलों में पार्टी का खास फोकस रह सकता है. कांगड़ा जिले में 15 और ऊना की 5 विधानसभा सीटें हैं. जानकार मानते हैं कि जीत-हार तो भविष्य की गर्त में है लेकिन पंजाब से हिमाचल के लगती सीटों को साधने की कोशिश तो की ही जा सकती है.

स्कूल, अस्पताल, बिजली, पानी हैं 'आप' के हथियार: कांग्रेस-बीजेपी के शासन से मुक्त कराना और स्कूल, अस्पताल, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं को बेहतर करने का वादा करना. आम आदमी पार्टी के ये सबसे बड़े हथियार हैं, और पार्टी इन्हीं को हिमाचल में दोहरा रही है. हालांकि हिमाचल में स्कूल, अस्पताल या बिजली, पानी की समस्या दिल्ली और पंजाब जैसी विकराल भले ना हो लेकिन पार्टी का फोकस इन्ही मुद्दों पर है.

कांग्रेस-बीजेपी का वही पुराना राग: आम आदमी पार्टी के सियासी दंगल में कूदने के साथ ही बीजेपी और कांग्रेस नेताओं की बयानबाजी का वही पुराना दौर भी शुरू हो या है. दोनों ही हिमाचल में 'आप' के भविष्य को सिरे से खारिज कर रहे हैं. कोई दिल्ली से लेकर पंजाब की जीत को तुक्का बता रहा है तो हिमाचल में तीसरे विकल्प के इतिहास की दुहाई दे रहा है. ये बात बिल्कुल सही है कि हिमाचल में सत्ता भले कांग्रेस और बीजेपी के पास आती-जाती रही हो और तीसरे विकल्प कभी भी मजबूती के साथ नहीं उभरा है. लेकिन बीजेपी-कांग्रेस को दूसरे राज्यों का सियासी इतिहास नहीं भूलना चाहिए.

साल 2012-13 से पहले आम आदमी पार्टी कहीं भी नहीं थी लेकिन आज अरविंद केजरीवाल लगातार तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री है, अब पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार है. दिल्ली में एक दशक पहले और पंजाब में 10 मार्च के नतीजों से पहले तक कांग्रेस-बीजेपी समेत तमाम विरोधी ऐसी ही बयानबाजी करते थे जैसी फिलहाल हिमाचल में हो रही है. पंजाब से लेकर दिल्ली तक तमाम विरोधियों ने आम आदमी पार्टी की जीत पर फिलहाल चुप्पी साध रखी है.

पहाड़ पर 'आप' की डगर भी आसान नहीं: हिमाचल के पड़ोसी राज्य पंजाब में आप ने भले सरकार बना ली हो लेकिन भौगोलिक और सियासी परिस्थितियों के लिहाज से मिलते-जुलते उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी खात भी नहीं खोल पाई. वो बात और है कि हिमाचल की तरह उत्तराखंड में भी आप की ये पहली सियासी पारी थी जबकि पंजाब की पिच पर साल 2017 में उतर चुकी पार्टी को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल था. 2014 में चारों और 2019 में पार्टी का इकलौता लोकसभा सांसद भी पंजाब से ही था. जानकार बताते हैं कि पंजाब में पार्टी 10 साल की मेहनत के बाद सत्ता तक पहुंच पाई.

हिमाचल में सियासी पारी शुरू कर रही पार्टी को पंजाब और दिल्ली की तरह कार्यकर्ताओं की फौज और बड़े चेहरों की तलाश है. जानकार मानते हैं कि इन चुनावों में अगर आम आदमी पार्टी अपनी उपस्थिति भी दर्ज करवा पाती है तो उसके लिए जीत से कम नहीं, हालांकि 2022 की तैयारी का फायदा 2024 लोकसभा चुनाव और फिर 2027 विधानसभा चुनाव में मिल सकता है.

आप का मुकाबला कांग्रेस से या बीजेपी से: आम आदमी पार्टी की एंट्री से किसको नुकसान होगा और किसको फायदा ? ये सवाल उठने से पहले ही आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को सिरे से नकारते हुए कहा था कि हिमाचल में उसका मुकाबला सिर्फ बीजेपी से है क्योंकि कांग्रेस देशभर से धीरे-धीरे गायब हो रही है. हालांकि अब दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने बीजेपी पर भी चुटकी लेते हुए कहा है कि उन्हें दिल्ली में बीजेपी को तीन बार हराने का तजुर्बा है और हिमाचल में भी बीजेपी को हराएंगे. जानकार मानते हैं कि आम आदमी पार्टी भले कोई बड़ा उलटफेर ना कर पाए लेकिन हिमाचल में कांग्रेस और बीजेपी को सियासी नुकसान पहुंचा सकती है. आप पहली बार चुनाव लड़ रही है और उसको होने वाला हर फायदा कांग्रेस और बीजेपी को नुकसान ही पहुंचाएगा. कांग्रेस की मौजूदा स्थिति और अंदरूनी कलह के कारण फिलहाल उसे ही आप ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है.

बयानों की बहार: चुनाव भले कुछ वक्त दूर हों लेकिन हिमाचल में सियासी बयानबाजी का दौर सियासी गलियारों में उबाल ला रहा है. बयानों की आई इस बहार की वजह आम आदमी पार्टी भी है, जिसके चलते आप से लेकर बीजेपी और कांग्रेस तक में बयानों की भरमार है. सीएम जयराम ठाकुर समेत तमाम मंत्री इस बार बीजेपी की सरकार रिपीट होने का दावा कर चुके हैं और आम आदमी पार्टी को पूरी तरह से नकारने की बात कह चुके हैं. भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने आम आदमी पार्टी को एंटी हिंदू और एंटी इंडिया पार्टी बताते हुए कहा कि वो कांग्रेस के रिजेक्टेड नेताओं को अपने साथ जोड़कर नई बोतल में पुरानी शराब भर रहे हैं. उधर कांग्रेसी नेताओं ने भी कहा है कि पंजाब वाला जादू हिमाचल में नहीं चलेगा. हालांकि आम आदमी पार्टी के हौसले पंजाब में जीत के बाद बुलंद हैं.

आप के सामने पहले शिमला की चुनौती: इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के सामने शिमला नगर निगम की चुनौती है. पार्टी निगम चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है, निगम चुनाव के जरिये वो खुद को आंकना चाहेगी. ऐसे में पार्टी की ओपनिंग पर बहुत कुछ निर्भर रहने वाला है, साथ ही बाकी दलों की नजर भी आम आदमी पार्टी पर रहेगी.

'आप' के सामने उम्मीदों का आसमान और चुनौतियों का 'पहाड़': आम आदमी पार्टी भले सरकार बनाने का दावा कर रही हो लेकिन ये पार्टी के थिंक टैंक को भी पता है कि सरकार बनाना फिलहाल बहुत दूर की कौड़ी है. क्योंकि अभी पार्टी के पास प्रदेश में ना संगठन है और ना ही नेता, पंजाब के नतीजों से पार्टी की बांछे खिली हुई हैं लेकिन उत्तराखंड के नतीजे भी सबक से कम नहीं है. लेकिन पहली बार हिमाचल के चुनावी रण में उतर रही आम आदमी पार्टी अगर कुछ सीटों पर भी अपनी छाप छोड़ पाती है तो ये बीजेपी और कांग्रेस का गणित बिगाड़ सकता है.

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