ETV Bharat / state

पश्चिमी चंपारण: जंगल के बीच बसी नरदेवी की महिमा है अपार, दूर-दूर से आते हैं भक्त - नवरात्रा

बगहा मुख्यालय से 45 किमी दूर स्थित इस मंदिर में वैसे तो सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है. लेकिन नवरात्रा में इस मंदिर में विशेष पूजा होती है.

-champaran
author img

By

Published : Oct 4, 2019, 3:21 PM IST

पश्चिमी चंपारण: जिले के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घने जंगल के बीच स्थित मां नरदेवी की महिमा अपरंपार मानी जाती है. बगहा मुख्यालय से 45 किमी दूर स्थित इस मंदिर में वैसे तो सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है. लेकिन नवरात्र के महीने में यहां विशेष पूजा अर्चना की जाती है. वहीं, लोगों की मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है.

स्थापना के पीछे छिपी है रोचक कहानी
वाल्मीकिनगर के ऐतिहासिक नरदेवी की स्थापना के पीछे एक रोचक कहानी छिपी है. पुरानी मान्यताओं के अनुसार इस जगह पर बुन्देलखण्ड के राजा अल्ला और ऊदल आया करते थे. दुर्गम जंगलों के बीच स्थित इस मंदिर में वो दिन-रात मां की आराधना में लगे रहते थे. पूजा सम्पन्न होने के बाद ऊदल बलि के तौर पर अपना सिर काट कर चढाते थे. उसके बाद उनका सिर स्वयं से जुड़ जाता था. चूंकि यहां नर की बलि दी जाती थी. इसलिए इस स्थान का नाम नरदेवी पड़ा है.

western Champaran
माता नर देवी की प्रतिमा

मंदिर का इतिहास काफी पुराना
मान्यताओं के अनुसार यहां नरदेवी मां अपने भक्तों को कभी खाली हाथ नहीं लौटाती. मंदिर के पुजारी नागेंद्रनाथ पूरी का कहना है कि यह मंदिर अल्ला और ऊदल से सबंधित
है. यहां जंगली जानवर बाघ, जंगली सूअर, भालू इत्यादि आते हैं. लेकिन आज तक भक्तों के साथ बुरा नहीं हुआ. वहीं, इस मंदिर की प्रसिद्धि और ख्याति इतनी दूर-दूर तक फैली है कि लोग उत्तरप्रदेश, नेपाल और राज्य के दूर दराज के क्षेत्रों से दर्शन के लिए आते हैं. उत्तरप्रदेश के महराजगंज जिले से आये कृति तिवारी और सुमन तिवारी ने बताया कि नरदेवी मां के दर्शन मात्र से ही सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. इसलिए भक्त प्रतिवर्ष इस मंदिर में पूजा अर्चना करने आते हैं.

नवरात्रा में होती है विशेष पूजा
स्थानीय श्रद्धालु उदय यादव की माने तो इस मंदिर परिसर में स्थित प्राचीन कुआं का पानी पीने से असाध्य रोग भी बिल्कुल खत्म हो जाता है. इसलिए भी लोग इस माता के मंदिर का दर्शन करने आते हैं.
western Champaran
पूजा सामग्री लेते भक्त

पश्चिमी चंपारण: जिले के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घने जंगल के बीच स्थित मां नरदेवी की महिमा अपरंपार मानी जाती है. बगहा मुख्यालय से 45 किमी दूर स्थित इस मंदिर में वैसे तो सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है. लेकिन नवरात्र के महीने में यहां विशेष पूजा अर्चना की जाती है. वहीं, लोगों की मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है.

स्थापना के पीछे छिपी है रोचक कहानी
वाल्मीकिनगर के ऐतिहासिक नरदेवी की स्थापना के पीछे एक रोचक कहानी छिपी है. पुरानी मान्यताओं के अनुसार इस जगह पर बुन्देलखण्ड के राजा अल्ला और ऊदल आया करते थे. दुर्गम जंगलों के बीच स्थित इस मंदिर में वो दिन-रात मां की आराधना में लगे रहते थे. पूजा सम्पन्न होने के बाद ऊदल बलि के तौर पर अपना सिर काट कर चढाते थे. उसके बाद उनका सिर स्वयं से जुड़ जाता था. चूंकि यहां नर की बलि दी जाती थी. इसलिए इस स्थान का नाम नरदेवी पड़ा है.

western Champaran
माता नर देवी की प्रतिमा

मंदिर का इतिहास काफी पुराना
मान्यताओं के अनुसार यहां नरदेवी मां अपने भक्तों को कभी खाली हाथ नहीं लौटाती. मंदिर के पुजारी नागेंद्रनाथ पूरी का कहना है कि यह मंदिर अल्ला और ऊदल से सबंधित
है. यहां जंगली जानवर बाघ, जंगली सूअर, भालू इत्यादि आते हैं. लेकिन आज तक भक्तों के साथ बुरा नहीं हुआ. वहीं, इस मंदिर की प्रसिद्धि और ख्याति इतनी दूर-दूर तक फैली है कि लोग उत्तरप्रदेश, नेपाल और राज्य के दूर दराज के क्षेत्रों से दर्शन के लिए आते हैं. उत्तरप्रदेश के महराजगंज जिले से आये कृति तिवारी और सुमन तिवारी ने बताया कि नरदेवी मां के दर्शन मात्र से ही सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. इसलिए भक्त प्रतिवर्ष इस मंदिर में पूजा अर्चना करने आते हैं.

नवरात्रा में होती है विशेष पूजा
स्थानीय श्रद्धालु उदय यादव की माने तो इस मंदिर परिसर में स्थित प्राचीन कुआं का पानी पीने से असाध्य रोग भी बिल्कुल खत्म हो जाता है. इसलिए भी लोग इस माता के मंदिर का दर्शन करने आते हैं.
western Champaran
पूजा सामग्री लेते भक्त
Intro:वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घने जंगलों के बीच स्थित माँ नरदेवी की महिमा अपरंपार मानी जाती है। बगहा मुख्यालय से 45 किमी दूर अवस्थित इस मंदिर में वैसे तो सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है। लेकिन नवरात्र के महीने में यहां विशेष पूजा अर्चना की जाती है। लोगों की मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से ही सभी की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।


Body:वाल्मीकिनगर के ऐतिहासिक नरदेवी की स्थापना के पीछे एक रोचक कहानी छिपी है। पुरानी मान्यताओं के मुताबिक इस जगह पर बुन्देलखण्ड के राजा अल्ला और ऊदल आया करते थे। और दुर्गम जंगलों के बीच अवस्थित इस मंदिर में दिन रात माँ की आराधना में लगे रहते थे। पूजा सम्पन्न होने के उपरांत ऊदल बलि के तौर पर अपना सिर काट कर चढाते थे जो बाद में स्वयं से जुड़ जाता था। चूंकि यहाँ नर की बलि दी जाती थी इसलिए इस स्थान का नाम नरदेवी पड़ा। मान्यताओं के मुताबिक यहाँ नरदेवी माँ अपने भक्तों को कभी खाली हांथ नही लौटाती। मंदिर के पुजारी नागेंद्र नाथ पूरी का कहना है कि यह मंदिर अल्ला और ऊदल से सम्बंधित है। यहां जंगली जानवर बाघ, जंगली सुअर, भालू इत्यादि आते हैं लेकिन आज तक भक्तों के साथ बुरा नही हुआ।
वहीं इस मंदिर की प्रसिद्धि और ख्याति इतने दूर दूर तक फैली है कि लोग उत्तरप्रदेश, नेपाल व बिहार के दूर दराज के क्षेत्रों से माँ के दर्शन को आते हैं । उत्तरप्रदेश के महराजगंज जिले से आये कृति तिवारी और सुमन तिवारी जैसे भक्तों का मानना है कि नरदेवी माँ के दर्शन मात्र से ही उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इसलिए वे प्रतिवर्ष इस मंदिर में पूजा अर्चना करने आती हैं।



Conclusion:वही स्थानीय श्रद्धालु उदय यादव की माने तो इस मंदिर परिसर में अवस्थित प्राचीन कुआँ का पानी पीने से असाध्य रोग भी बिल्कुल खत्म हो जाते हैं। इसलिए भी लोग इस माता के स्थान का दर्शन करने आते हैं। और श्रद्धापूर्वक अपनी मन्नतें मांगते हैं जो पूर्ण हो जाती हैं।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.