हैदराबाद: ज्योतिष शास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जो सदियों से मानव जीवन को दिशा देता आया है. इसमें विभिन्न प्रकार के योगों का वर्णन है, जिनमें से राजयोग को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. अक्सर लोग राजयोग का नाम सुनते ही यह सोचने लगते हैं कि यदि उनकी कुंडली में यह उपस्थित है तो वे निश्चित रूप से कोई बड़े नेता, उद्योगपति या नौकरशाह बनेंगे. उन्हें अकूत धन-संपदा और सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त होगी.
इस पर ज्योतिषाचार्य आदित्य झा के अनुसार, वास्तव में यह ज्योतिषीय राजयोग के मानक नहीं हैं. राजयोग एक व्यापक अवधारणा है और इसके कई प्रकार होते हैं.
आइए जानते हैं कुछ प्रमुख राजयोगों के बारे में.
गजकेसरी राजयोग
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में गजकेसरी राजयोग को बहुत ही शुभ माना गया है. जब किसी जातक की लग्न कुंडली में गुरु और चंद्रमा केंद्र भाव (1, 4, 7, 10) में स्थित हों और किसी क्रूर ग्रह से संबंध न रखें, तो गजकेसरी राजयोग बनता है. इस योग के प्रभाव से व्यक्ति को जीवन में खूब मान-सम्मान मिलता है और वह सरकारी सेवा में उच्च पदों पर आसीन होता है. गजकेसरी राजयोग से प्रभावित व्यक्ति धर्म और अध्यात्म के प्रति भी आकर्षित होता है.
पाराशरी राजयोग
ज्योतिषाचार्य आदित्य झा के अनुसार जब केंद्र भावों (1, 4, 7, 10) का संबंध कुंडली के त्रिकोण भावों (1, 5, 9) से होता है, तो पाराशरी राजयोग बनता है. इस योग के प्रभाव से व्यक्ति अपने जीवन में अच्छी प्रगति करता है. जब ग्रहों की दशा अवधि आती है, तो इस योग के प्रभाव से व्यक्ति को धन, प्रसिद्धि और सभी प्रकार के सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं.
नीच भंग राजयोग
नीच भंग राजयोग जातक की कुंडली में बनने वाला एक महत्वपूर्ण राजयोग है. जैसा कि नाम से स्पष्ट है, 'नीच भंग' का अर्थ है किसी ग्रह की नीचता (कमजोर स्थिति) का भंग होना. कुंडली में यदि कोई ग्रह अपनी नीच राशि में बैठा है और उस राशि का स्वामी उसे देख रहा है, तो उसकी नीचता भंग हो जाती है. इसके अलावा, यदि जिस राशि में ग्रह नीच स्थिति में बैठा है, उस राशि का स्वामी स्वग्रही होकर युति संबंध बना रहा है तो भी नीच भंग राजयोग बनता है. जिन जातकों की कुंडली में नीच भंग राजयोग बनता है, उनका जीवन सुख-समृद्धि और संपन्नता से बीतता है.
धन योग
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में धन योग को बहुत महत्व दिया जाता है. कुंडली में पहला, दूसरा, पांचवां, नौवां और ग्यारहवां भाव धन के भाव होते हैं. यदि इन भावों के स्वामियों की युति, दृष्टि या राशि परिवर्तन संबंध बनता है, तो धन योग का निर्माण होता है. इस राजयोग के प्रभाव से व्यक्ति को जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती है.
उभयचरी राजयोग
जब किसी जातक की कुंडली में चंद्रमा को छोड़कर राहु-केतु, सूर्य से दूसरे या बारहवें भाव में स्थित हों, तो उभयचरी राजयोग का निर्माण होता है. इस योग के प्रभाव से जातक बहुत भाग्यशाली होता है.
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