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प्रवासियों का दर्द: 'घर तो लौट आए लेकिन बिन रोजगार कैसे चुकाएं कर्ज?' - lockdown effect

कोरोनाकाल में प्रवासी मजदूर अपने राज्य तो लौट आए हैं. लेकिन, उनकी तकलीफें अब भी कम नहीं हुई है. उनके सामने रोजगार और पेट पालने का संकट जस के तस बना हुआ है.

मुसीबत में प्रवासी
मुसीबत में प्रवासी
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Published : Jun 10, 2020, 1:44 PM IST

पश्चिमी चंपारण: कोरोना वायरस और लॉकडाउन ने लोगों की कमर तोड़कर रख दी है. आम से लेकर खास सभी परेशान हैं. संक्रमण के कारण एक तरफ जान का भय है और दूसरी तरफ पेट पालने की समस्या आन खड़ी है. सबसे ज्यादा दिक्कत प्रवासी मजदूरों को झेलनी पड़ी है.

कोरोनाकाल में वे जैसे-तैसे घर तो लौट आए लेकिन अब रोजगार के अभाव में उनके और उनके परिजनों के सामने कर्ज लौटाने की मुसीबत आ गई है. जिले के दर्जनों प्रवासी श्रमिक अब ब्याज और सूदखोरी के चक्की में पीस रहे हैं.

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किसी तरह गुजर-बसर कर रहे प्रवासी

पेट के कारण कर्ज में डूबे
पीड़ित मजदूरों की मानें तो वे पंजाब, तमिलनाडु और अन्य राज्यों में रहकर मजदूरी करते थे. लॉकडाउन में खाने-पीने और घर आने के लिए उन्होंने कर्ज लिया था. वे घर तो पहुंच गए. लेकिन लॉकडाउन ने उन्हें कर्ज के बोझ तले दबा दिया है.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

5 से 10 प्रतिशत पर मजदूरों ने लिया ब्याज
कोरोना संक्रमण की वजह से सभी उद्योग-धंधे और कल-कारखानों पर ताला लग गया था. जिस वजह से कई मजदूरों की नौकरी चली गई. ऐसे में प्रवासी मजदूरों ने अपने परिजनों से पेट भरने और जिंदा रहने के लिए पैसा मंगवाया. परिवार वालों ने महाजनों से 5 से 10 प्रतिशत की दर से ब्याज लेकर उन्हें पैसा भेजा. अब जब कोरोना दहशत के बीच प्रवासी मजदूर घर लौट आए हैं तो उनके सामने कर्ज चुकाने की चिंता पहाड़ की तरह खड़ा है.

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बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे लोग

नहीं है रोजगार, कैसे होगा बेड़ा पार?
बता दें कि यह कहानी केवल एक-दो मजदूरों की नहीं है. जिले में तमाम ऐसे मजदूर हैं जो कोरोना के महाजाल से निकल कर मौजूदा समय में कर्ज के बोझ तले दबे गए हैं. ऐसे में उन्हें राज्य सरकार से आस है लेकिन सरकार के दावे जमीनी स्तर पर खोखले नजर आ रहे हैं.

पश्चिमी चंपारण: कोरोना वायरस और लॉकडाउन ने लोगों की कमर तोड़कर रख दी है. आम से लेकर खास सभी परेशान हैं. संक्रमण के कारण एक तरफ जान का भय है और दूसरी तरफ पेट पालने की समस्या आन खड़ी है. सबसे ज्यादा दिक्कत प्रवासी मजदूरों को झेलनी पड़ी है.

कोरोनाकाल में वे जैसे-तैसे घर तो लौट आए लेकिन अब रोजगार के अभाव में उनके और उनके परिजनों के सामने कर्ज लौटाने की मुसीबत आ गई है. जिले के दर्जनों प्रवासी श्रमिक अब ब्याज और सूदखोरी के चक्की में पीस रहे हैं.

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पेट के कारण कर्ज में डूबे
पीड़ित मजदूरों की मानें तो वे पंजाब, तमिलनाडु और अन्य राज्यों में रहकर मजदूरी करते थे. लॉकडाउन में खाने-पीने और घर आने के लिए उन्होंने कर्ज लिया था. वे घर तो पहुंच गए. लेकिन लॉकडाउन ने उन्हें कर्ज के बोझ तले दबा दिया है.

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5 से 10 प्रतिशत पर मजदूरों ने लिया ब्याज
कोरोना संक्रमण की वजह से सभी उद्योग-धंधे और कल-कारखानों पर ताला लग गया था. जिस वजह से कई मजदूरों की नौकरी चली गई. ऐसे में प्रवासी मजदूरों ने अपने परिजनों से पेट भरने और जिंदा रहने के लिए पैसा मंगवाया. परिवार वालों ने महाजनों से 5 से 10 प्रतिशत की दर से ब्याज लेकर उन्हें पैसा भेजा. अब जब कोरोना दहशत के बीच प्रवासी मजदूर घर लौट आए हैं तो उनके सामने कर्ज चुकाने की चिंता पहाड़ की तरह खड़ा है.

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बता दें कि यह कहानी केवल एक-दो मजदूरों की नहीं है. जिले में तमाम ऐसे मजदूर हैं जो कोरोना के महाजाल से निकल कर मौजूदा समय में कर्ज के बोझ तले दबे गए हैं. ऐसे में उन्हें राज्य सरकार से आस है लेकिन सरकार के दावे जमीनी स्तर पर खोखले नजर आ रहे हैं.

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