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वैशाली सीट: आसान नहीं रघुवंश की राह, वीणा देवी दे रहीं मजबूत चुनौती - महागठबंधन

यहां से रघुवंश प्रसाद 2014 लोकसभा से पहले लगातार 5 बार चुनाव जीत चुके हैं. लेकिन 2014 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. एक बार फिर RJD ने रघुवंश प्रसाद पर भरोसा जताया है. वहीं NDA की ओर से वीणा देवी उनके सामने चुनावी मैदान में हैं.

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Published : May 9, 2019, 7:48 PM IST

वैशाली: ये जिला ऐतिहासिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है. ये घरती भगवान महावीर की जन्मस्थली और भगवान बुद्ध की कर्मभूमि रही है. साथ ही विश्व के पहला गणतंत्र का गौरव भी वैशाली को ही प्राप्त है. कृषि क्षेत्र में भी ये जिला राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है. वैशाली जिले को केला, आम और लीची के उत्पादन के लिए जाना जाता है. राजनीतिक सक्रियता भी यहां के लोगों में सिर चढ़कर बोलती है.

विधानसभा सीटों का समीकरण
लोकसभा चुनाव को लेकर यहां की जनता में काफी गहमागहमी है. हर गली-चौराहों पर इन दिनों लोगों की जुबान पर राजनीतिक चर्चाएं हैं. आइये सबसे पहले जानते हैं यहां की विधानसभा सीटों के बारे में. वैशाली लोकसभा सीट के तहत विधानसभा की 6 सीटें आती हैं- बरुराज, पारु, मीनापुर, कान्ति, साहेबगंज और वैशाली. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इन 6 में से तीन सीटें आरजेडी ने जीती थीं. वहीं बीजेपी, जदयू और निर्दलीय उम्मीदवार एक-एक सीट जीतने में कामयाब रहे थे.

2014 चुनाव का परिणाम
2014 लोकसभा चुनाव में वैशाली सीट से लोक जनशक्ति पार्टी के रामा किशोर सिंह ने जीत हासिल की थी. उन्हें कुल 3 लाख 5 हजार 450 वोट मिले थे. जबकि राजद उम्मीदवार और पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को 2 लाख 6 हजार 183 वोट मिले थे. वहीं, मुन्ना शुक्ला की पत्नी और निर्दलीय उम्मीदवार अनु शुक्ला को 1 लाख 4 हजार 229 वोट मिले थे और वो तीसरे नंबर पर रही थीं. इस बार वैशाली में पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला या उनकी पत्नी चुनाव नहीं लड़ रही हैं.

वैशाली से ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

मतदाताओं का उत्साह चरम पर
मतदाताओं का उत्साह चौथे चरण से लेकर अब तक चरम पर है. वैशाली लोकसभा सीट बिहार की चर्चित सीटों में से एक है. यहां से आरजेडी ने एक बार फिर से दिग्गज नेता डॉ. रघुवंश सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं लोजपा ने वर्तमान सांसद रामा किशोर सिंह की जगह पूर्व बीजेपी विधायक वीणा देवी पर दांव खेला है. माना जा रहा है कि इस बार वैशाली में कांटे का मुकाबला देखने को मिलेगा.

RJD का मजबूत गढ़ रहा है वैशाली
वैशाली राजद का मजबूत गढ़ रहा है. पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह यहां से लगातार पांच बार सांसद रहे हैं. जातीय समीकरण पर नजर डालें तो वैशाली संसदीय सीट पर 12 चुनावों में से दस बार राजपूत उम्मीदवार की जीत हुई है. दो बार भूमिहार उम्मीदवार जीते, जबकि छह बार दूसरे स्थान पर रहे. इस सीट पर यादव और राजपूत मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है. चुनाव परिणाम पर भूमिहार और अतिपिछड़े मतदाताओं के वोटों का भी असर रहता है.

रघुवंश प्रसाद की मजबूती
रघुवंश प्रसाद सिंह आरजेडी के कद्दावर नेता माने जाते हैं. मनमोहन सिंह सरकार में वे ग्रामीण विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. मनरेगा जैसी लाभकारी योजनाओं के लिए उन्हें हमेशा सराहा गया. 2014 में मिली हार के बाद भी वो अपने क्षेत्र में काफी सक्रिय रहे और आम जनता से मिलते-जुलते रहे. आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव से उनकी करीबी जगजाहिर है. हालांकि पार्टी से अलग हटकर भी स्टैंड लेने के लिए रघुवंश प्रसाद जाने जाते रहे हैं.

रघुवंश के सामने वीणा देवी
बात एनडीए प्रत्याशी की करें तो वैशाली सीट से पूर्व विधायक लोजपा की वीणा देवी पहली बार लोकसभा के लिए भाग्य आजमा रही हैं. वीणा देवी के पति जेडीयू विधान पार्षद दिनेश सिंह ही पहले रघुवंश प्रसाद सिंह के चुनाव की व्यवस्था संभालते थे. इस बार हालात उलट है. उनकी पत्नी वीणा देवी रघुवंश प्रसाद को चुनावी मैदान में चुनौती दे रहीं हैं. वे रघुवंश प्रसाद सिंह के आधार वोट में सेंधमारी करने की पूरी कोशिश करेंगी. वहीं, इस बार वीणा देवी को एनडीए गठबंधन का फायदा भी मिल सकता है.

क्या हैं मुद्दे ?
हर पांच साल में चुनाव आता है लेकिन वैशाली के आम लोगों की समस्या जस की तस बनी रहती हैं. लोगों का कहना है कि इस इलाके में नेता विकास करने में कोई रुचि नहीं दिखाते हैं. प्राचीन लोकतांत्रिक इतिहास को महत्व ना दिए जाने से भी लोग काफी खफा हैं. जनता इस बार वैसे प्रतिनिधि को चुनना चाहेगी जो उनकी समस्याओं और ऐतिहासिक विरासतों को संजोने पर विशेष ध्यान दे.

वैशाली: ये जिला ऐतिहासिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है. ये घरती भगवान महावीर की जन्मस्थली और भगवान बुद्ध की कर्मभूमि रही है. साथ ही विश्व के पहला गणतंत्र का गौरव भी वैशाली को ही प्राप्त है. कृषि क्षेत्र में भी ये जिला राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है. वैशाली जिले को केला, आम और लीची के उत्पादन के लिए जाना जाता है. राजनीतिक सक्रियता भी यहां के लोगों में सिर चढ़कर बोलती है.

विधानसभा सीटों का समीकरण
लोकसभा चुनाव को लेकर यहां की जनता में काफी गहमागहमी है. हर गली-चौराहों पर इन दिनों लोगों की जुबान पर राजनीतिक चर्चाएं हैं. आइये सबसे पहले जानते हैं यहां की विधानसभा सीटों के बारे में. वैशाली लोकसभा सीट के तहत विधानसभा की 6 सीटें आती हैं- बरुराज, पारु, मीनापुर, कान्ति, साहेबगंज और वैशाली. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इन 6 में से तीन सीटें आरजेडी ने जीती थीं. वहीं बीजेपी, जदयू और निर्दलीय उम्मीदवार एक-एक सीट जीतने में कामयाब रहे थे.

2014 चुनाव का परिणाम
2014 लोकसभा चुनाव में वैशाली सीट से लोक जनशक्ति पार्टी के रामा किशोर सिंह ने जीत हासिल की थी. उन्हें कुल 3 लाख 5 हजार 450 वोट मिले थे. जबकि राजद उम्मीदवार और पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को 2 लाख 6 हजार 183 वोट मिले थे. वहीं, मुन्ना शुक्ला की पत्नी और निर्दलीय उम्मीदवार अनु शुक्ला को 1 लाख 4 हजार 229 वोट मिले थे और वो तीसरे नंबर पर रही थीं. इस बार वैशाली में पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला या उनकी पत्नी चुनाव नहीं लड़ रही हैं.

वैशाली से ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

मतदाताओं का उत्साह चरम पर
मतदाताओं का उत्साह चौथे चरण से लेकर अब तक चरम पर है. वैशाली लोकसभा सीट बिहार की चर्चित सीटों में से एक है. यहां से आरजेडी ने एक बार फिर से दिग्गज नेता डॉ. रघुवंश सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं लोजपा ने वर्तमान सांसद रामा किशोर सिंह की जगह पूर्व बीजेपी विधायक वीणा देवी पर दांव खेला है. माना जा रहा है कि इस बार वैशाली में कांटे का मुकाबला देखने को मिलेगा.

RJD का मजबूत गढ़ रहा है वैशाली
वैशाली राजद का मजबूत गढ़ रहा है. पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह यहां से लगातार पांच बार सांसद रहे हैं. जातीय समीकरण पर नजर डालें तो वैशाली संसदीय सीट पर 12 चुनावों में से दस बार राजपूत उम्मीदवार की जीत हुई है. दो बार भूमिहार उम्मीदवार जीते, जबकि छह बार दूसरे स्थान पर रहे. इस सीट पर यादव और राजपूत मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है. चुनाव परिणाम पर भूमिहार और अतिपिछड़े मतदाताओं के वोटों का भी असर रहता है.

रघुवंश प्रसाद की मजबूती
रघुवंश प्रसाद सिंह आरजेडी के कद्दावर नेता माने जाते हैं. मनमोहन सिंह सरकार में वे ग्रामीण विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. मनरेगा जैसी लाभकारी योजनाओं के लिए उन्हें हमेशा सराहा गया. 2014 में मिली हार के बाद भी वो अपने क्षेत्र में काफी सक्रिय रहे और आम जनता से मिलते-जुलते रहे. आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव से उनकी करीबी जगजाहिर है. हालांकि पार्टी से अलग हटकर भी स्टैंड लेने के लिए रघुवंश प्रसाद जाने जाते रहे हैं.

रघुवंश के सामने वीणा देवी
बात एनडीए प्रत्याशी की करें तो वैशाली सीट से पूर्व विधायक लोजपा की वीणा देवी पहली बार लोकसभा के लिए भाग्य आजमा रही हैं. वीणा देवी के पति जेडीयू विधान पार्षद दिनेश सिंह ही पहले रघुवंश प्रसाद सिंह के चुनाव की व्यवस्था संभालते थे. इस बार हालात उलट है. उनकी पत्नी वीणा देवी रघुवंश प्रसाद को चुनावी मैदान में चुनौती दे रहीं हैं. वे रघुवंश प्रसाद सिंह के आधार वोट में सेंधमारी करने की पूरी कोशिश करेंगी. वहीं, इस बार वीणा देवी को एनडीए गठबंधन का फायदा भी मिल सकता है.

क्या हैं मुद्दे ?
हर पांच साल में चुनाव आता है लेकिन वैशाली के आम लोगों की समस्या जस की तस बनी रहती हैं. लोगों का कहना है कि इस इलाके में नेता विकास करने में कोई रुचि नहीं दिखाते हैं. प्राचीन लोकतांत्रिक इतिहास को महत्व ना दिए जाने से भी लोग काफी खफा हैं. जनता इस बार वैसे प्रतिनिधि को चुनना चाहेगी जो उनकी समस्याओं और ऐतिहासिक विरासतों को संजोने पर विशेष ध्यान दे.

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