ETV Bharat / state

Shardiya Navratri 2023: देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक महिषी का उग्रतारा स्थान, महाअष्टमी को उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़

देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में महिषी के उग्रतारा स्थान का विशेष महत्व है. प्राचीन मान्यता के अनुसार कठिन साधना कर महर्षि वशिष्ठ द्वारा भगवती को प्रसन्न कर उन्हें सदेह यहां लाया गया था. कालांतर में शर्त भंग होने पर भगवती तारा पाषाण रूप में परिवर्तित हो गई. पढ़ें पूरी खबर..

मां उग्रतारा की महिमा अपरंपार
मां उग्रतारा की महिमा अपरंपार
author img

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 20, 2023, 12:56 PM IST

देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक महिषी का उग्रतारा स्थान

सहरसा: बिहार के सहरसा जिले में देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ उग्रतारा स्थान है जिसका विशेष महत्व है. जिले के महिषी प्रखंड स्थित उग्रतारा स्थान में नवरात्रि के वक्त भक्तों की लंबी कतार लग जाती है. महिषी गांव में वर्तमान मंदिर का निर्माण 16 वीं शताब्दी में दरभंगा राज परिवार से जुड़ी महारानी पद्मावती ने कराया था. इस मंदिर की कई सारी प्राचीन मान्यताएं है.

ये भी पढ़ें: Shardiya Navratri 2023 : अररिया के कुआड़ी दुर्गा मंदिर में पूरी होती है हर मुराद, यहां 150 वर्षों से हो रही है पूजा

माता की पूजा करते भक्त
माता की पूजा करते भक्त

महर्षि वशिष्ठ ने भगवती को किया था प्रसन्न: प्राचीन मान्यता के अनुसार कठिन साधना कर महर्षि वशिष्ठ द्वारा भगवती को प्रसन्न कर उन्हें सदेह यहां लाया गया था. कालांतर में शर्त भंग होने पर भगवती तारा पाषाण रूप में परिवर्तित हो गई, जिस कारण इन्हें वशिष्ठ अराधिता उग्रतारा भी कहा जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार सती की बांयी आंख यहां गिरी थी. इसलिए यहां की सिद्ध शक्तिपीठ के रूप में मान्यता है.

मां उग्रतारा की प्रतिमा
मां उग्रतारा की प्रतिमा

मां उग्रतारा की प्रतिमा के कई स्वरूप: कहते हैं कि यहां के मंदिर में मां उग्रतारा की प्रतिमा कई स्वरूपों में देखने को मिलती है. भक्त बताते हैं कि प्रतिमा सुबह में अलसायी, दोपहर में रौद्र और शाम में सौम्य स्वरूप में दिखती है. माता का यह तीनों रूप का दर्शन भक्तों के लिए सुखद और फलदायी होता है. मां उग्रतारा स्थान की महिमा देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी फैली है.

"मां तारा वशिष्ठ आराधित तारा कहलाती है, वशिष्ठ मुनि तपस्या कर मां तारा को चीन से यहां लाये थे, दूसरी मान्यता है कि यहां मां सती का बायीं आंख यहीं गिरा था. इसलिए इसे मां तारा के नाम से जाना जाता है, यह 51 सिद्धपीठों में से एक है जिसका खास महत्व है. यहां जमर्नी, स्विट्जरलैंड, जापान जैसे देशों से भी श्रद्धालु पहुंचते है."- श्रद्धालु

उग्रतारा स्थान में देश-विदेश से आते हैं भक्त
उग्रतारा स्थान में देश-विदेश से आते हैं भक्त

विदेशों से आते हैं भक्त: यहां देश के अन्य राज्यों सहित विदेशों से भी श्रद्धालु पूजा करने आते हैं, प्रतिदिन उनकी आवाजाही लगी रहती है. खासकर नवरात्रा के मौके पर श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुटती है, नवरात्रा में देश विदेश से आकर तांत्रिक यहां तंत्र साधना करते हैं. मान्यता है कि उग्रतारा स्थान में आकर जो भी मनोकामना मांगते हैं मां उग्रतारा उसे जरूर पूर्ण करती हैं. मन्नतें पूरी होने के बाद श्रद्धालु मां के चरणों में चढ़ावा चढ़ाते हैं.

चीनाचार के पंचमकार पद्धति से होती है पूजा
चीनाचार के पंचमकार पद्धति से होती है पूजा

"वशिष्ठ आराधिता मां तारा हैं, मान्यता है कि वशिष्ठ मुनि कठोर तपस्या कर मां तारा को सदेह यहां लाये थे पर मां तारा ने एक शर्त रखी थी कि जिस दिन लोभ,अहम व ईर्ष्या, कोई एक आ जायेगा तो हम अंतर्ध्यान हो जाएंगे. अहम, लोभ नहीं आया लेकिन ईर्ष्या आ गई जिसके बाद मां पाषाण के रूप में परिवर्तित हो गई, तब से यहां माता की पूजा हो रही है. यह विशेष पूजा चीनाचार के पंचमकार पद्धति से की जाती है."- प्रमोद झा, पुजारी

देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक महिषी का उग्रतारा स्थान

सहरसा: बिहार के सहरसा जिले में देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ उग्रतारा स्थान है जिसका विशेष महत्व है. जिले के महिषी प्रखंड स्थित उग्रतारा स्थान में नवरात्रि के वक्त भक्तों की लंबी कतार लग जाती है. महिषी गांव में वर्तमान मंदिर का निर्माण 16 वीं शताब्दी में दरभंगा राज परिवार से जुड़ी महारानी पद्मावती ने कराया था. इस मंदिर की कई सारी प्राचीन मान्यताएं है.

ये भी पढ़ें: Shardiya Navratri 2023 : अररिया के कुआड़ी दुर्गा मंदिर में पूरी होती है हर मुराद, यहां 150 वर्षों से हो रही है पूजा

माता की पूजा करते भक्त
माता की पूजा करते भक्त

महर्षि वशिष्ठ ने भगवती को किया था प्रसन्न: प्राचीन मान्यता के अनुसार कठिन साधना कर महर्षि वशिष्ठ द्वारा भगवती को प्रसन्न कर उन्हें सदेह यहां लाया गया था. कालांतर में शर्त भंग होने पर भगवती तारा पाषाण रूप में परिवर्तित हो गई, जिस कारण इन्हें वशिष्ठ अराधिता उग्रतारा भी कहा जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार सती की बांयी आंख यहां गिरी थी. इसलिए यहां की सिद्ध शक्तिपीठ के रूप में मान्यता है.

मां उग्रतारा की प्रतिमा
मां उग्रतारा की प्रतिमा

मां उग्रतारा की प्रतिमा के कई स्वरूप: कहते हैं कि यहां के मंदिर में मां उग्रतारा की प्रतिमा कई स्वरूपों में देखने को मिलती है. भक्त बताते हैं कि प्रतिमा सुबह में अलसायी, दोपहर में रौद्र और शाम में सौम्य स्वरूप में दिखती है. माता का यह तीनों रूप का दर्शन भक्तों के लिए सुखद और फलदायी होता है. मां उग्रतारा स्थान की महिमा देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी फैली है.

"मां तारा वशिष्ठ आराधित तारा कहलाती है, वशिष्ठ मुनि तपस्या कर मां तारा को चीन से यहां लाये थे, दूसरी मान्यता है कि यहां मां सती का बायीं आंख यहीं गिरा था. इसलिए इसे मां तारा के नाम से जाना जाता है, यह 51 सिद्धपीठों में से एक है जिसका खास महत्व है. यहां जमर्नी, स्विट्जरलैंड, जापान जैसे देशों से भी श्रद्धालु पहुंचते है."- श्रद्धालु

उग्रतारा स्थान में देश-विदेश से आते हैं भक्त
उग्रतारा स्थान में देश-विदेश से आते हैं भक्त

विदेशों से आते हैं भक्त: यहां देश के अन्य राज्यों सहित विदेशों से भी श्रद्धालु पूजा करने आते हैं, प्रतिदिन उनकी आवाजाही लगी रहती है. खासकर नवरात्रा के मौके पर श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुटती है, नवरात्रा में देश विदेश से आकर तांत्रिक यहां तंत्र साधना करते हैं. मान्यता है कि उग्रतारा स्थान में आकर जो भी मनोकामना मांगते हैं मां उग्रतारा उसे जरूर पूर्ण करती हैं. मन्नतें पूरी होने के बाद श्रद्धालु मां के चरणों में चढ़ावा चढ़ाते हैं.

चीनाचार के पंचमकार पद्धति से होती है पूजा
चीनाचार के पंचमकार पद्धति से होती है पूजा

"वशिष्ठ आराधिता मां तारा हैं, मान्यता है कि वशिष्ठ मुनि कठोर तपस्या कर मां तारा को सदेह यहां लाये थे पर मां तारा ने एक शर्त रखी थी कि जिस दिन लोभ,अहम व ईर्ष्या, कोई एक आ जायेगा तो हम अंतर्ध्यान हो जाएंगे. अहम, लोभ नहीं आया लेकिन ईर्ष्या आ गई जिसके बाद मां पाषाण के रूप में परिवर्तित हो गई, तब से यहां माता की पूजा हो रही है. यह विशेष पूजा चीनाचार के पंचमकार पद्धति से की जाती है."- प्रमोद झा, पुजारी

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.