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ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट: 24 घंटे में फेल हो गई दुग्धाहार पहल, दूध के लिए बिलख रहे बच्चे

बाढ़ पीड़ित बच्चों के लिए डीएम ने बाढ़ शिविर में दूध भेजने का निर्देश दिया था. जो इन्हें अब नहीं मिल रहा है. इन मासूमों की सिसकियों में दूध ना मिलने की कसक साफ सुनाई दे रही है.

Relief Camp
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Published : Jul 19, 2019, 2:22 PM IST

Updated : Jul 19, 2019, 6:29 PM IST

पूर्णियाः राहत शिविरों में डीएम की दुग्धाहार पहल 24 घंटों के भीतर ही दम तोड़ती दिखाई दे रही है. दूध जिसे जिले के डीएम के निर्देश पर सुधा पार्लरों से सीधे बाढ़ पीड़ित बच्चों तक पहुंचाया जाना था, वह कहां गया किसी को नहीं मालूम. इधर, दूध नहीं मिलने के कारण बच्चों का रो-रोकर बुरा हाल है. रोते-बिलखते बच्चों को देखकर बाढ़ पीड़ितों को यह समझ नहीं आ रहा कि इनकी दूध की मांग को कैसे पूरा करें.

flood
दूध के लिए परेशान बच्चे

राहत शिविर में नहीं पहुंचा दूध
बायसी अनुमंडल स्थित बाढ़ राहत शिविरों में कर्मियों की कोताही के कारण डीएम की पहल पर कोहराम मचा है. ईटीवी भारत की टीम जब बायसी मुख्यालय स्थित मध्य विद्यालय में बनाए गए बाढ़ राहत कैंप में पहुंची तो यहां हर किसी की जुबां पर डीएम की दुग्धाहार पहल नहीं मिलने की बात थी. बाढ़ पीड़ितों ने राहत कार्य पहुंचाने वालों पर डीएम की पहल से शुरू हुई सुविधा में कोताही बरतने का आरोप लगाया. इन्होंने बताया कि दुग्धाहार की सुविधा इनके बच्चों को नहीं मिल रही है.

सैकड़ों गांवों में फैला है पानी
दरअसल, बीते 15 जुलाई को पनमार, कनकई और महानंदा जैसी त्रिनदियों से घिरे बायसी के सैकड़ों गांवों में सैलाब का प्रलयकारी पानी ने उत्पात मचाया था. जान बचाकर किसी तरह लोग जिला मुख्यालयों की ओर भागे. इन लोगों ने जिला मुख्यालय स्थित मध्य विद्यालय में बनाए गए बाढ़ राहत कैंप में शरण ली. जिले के डीएम प्रदीप कुमार झा की पहल पर कैंप में शिशु दुग्धाहार की सुविधा शुरू की गई. जिसने महज 24 घण्टों के भीतर ही दम तोड़ दिया.

relief camp
शिविर में खाना बनाती रसोईया

दूध ना मिलने से बच्चों का रो-रोकर बुरा हाल
डीएम के जरिए बाढ़ पीड़ित शिशुओं के लिए शुरू की गई दुग्धाहार पहल बीते 15 जुलाई से शुरू तो हुई. लेकिन, अब आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इन राहत शिविरों में डीएम की यह दुग्धाहार पहल शुरुआत के साथ ही 24 घण्टों के भीतर ही छू मंतर हो गई. अब आलम यह है कि सैलाब में अपना सब कुछ गंवा चुके इन बाढ़ पीड़ितों के पास जो भी थोड़ी बहुत बची हुई कमाई है, उससे मजबूरन दूध मंगाकर अपने बच्चों को पिला रहे हैं. क्योंकि उनके बच्चों का दूध ना मिलने से रो-रोकर बुरा हाल है.

बयान देते बाढ़ पीड़ित

50 बच्चों के लिए आया महज 5 लीटर दूध
बता दें कि 16 जुलाई की सुबह दुग्धाहार की सुविधा देने के बाद दूध पार्लर वाले ऐसे गायब हुए कि बाढ़ पीड़ित बच्चों में दूध के लिए कोहराम मच गया. वहीं, राहत कैंपों में रह रहे इन 300 बाढ़ पीड़ितों में से करीब 50 बच्चों के लिए महज 5 लीटर ही दूध आया. ईटीवी भारत संवाददाता ने जब इस संबंध में शिविर के संचालक से सवाल किया तो उन्होंने बताया कि हमें जितना दूध मिला था हमने पूरी निष्पक्षता के साथ इन बच्चों के बीच बांट दी. फिर दूध आना क्यों बंद हो गया इसकी जानकारी नहीं है. बहरहाल, सुविधाओं में घालमेल की यह तस्वीरें जो आ रही हैं इससे अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं होगा कि बाढ़ राहत शिविरों में दी जा रही सुविधाओं का क्या हश्र होता है.

पूर्णियाः राहत शिविरों में डीएम की दुग्धाहार पहल 24 घंटों के भीतर ही दम तोड़ती दिखाई दे रही है. दूध जिसे जिले के डीएम के निर्देश पर सुधा पार्लरों से सीधे बाढ़ पीड़ित बच्चों तक पहुंचाया जाना था, वह कहां गया किसी को नहीं मालूम. इधर, दूध नहीं मिलने के कारण बच्चों का रो-रोकर बुरा हाल है. रोते-बिलखते बच्चों को देखकर बाढ़ पीड़ितों को यह समझ नहीं आ रहा कि इनकी दूध की मांग को कैसे पूरा करें.

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दूध के लिए परेशान बच्चे

राहत शिविर में नहीं पहुंचा दूध
बायसी अनुमंडल स्थित बाढ़ राहत शिविरों में कर्मियों की कोताही के कारण डीएम की पहल पर कोहराम मचा है. ईटीवी भारत की टीम जब बायसी मुख्यालय स्थित मध्य विद्यालय में बनाए गए बाढ़ राहत कैंप में पहुंची तो यहां हर किसी की जुबां पर डीएम की दुग्धाहार पहल नहीं मिलने की बात थी. बाढ़ पीड़ितों ने राहत कार्य पहुंचाने वालों पर डीएम की पहल से शुरू हुई सुविधा में कोताही बरतने का आरोप लगाया. इन्होंने बताया कि दुग्धाहार की सुविधा इनके बच्चों को नहीं मिल रही है.

सैकड़ों गांवों में फैला है पानी
दरअसल, बीते 15 जुलाई को पनमार, कनकई और महानंदा जैसी त्रिनदियों से घिरे बायसी के सैकड़ों गांवों में सैलाब का प्रलयकारी पानी ने उत्पात मचाया था. जान बचाकर किसी तरह लोग जिला मुख्यालयों की ओर भागे. इन लोगों ने जिला मुख्यालय स्थित मध्य विद्यालय में बनाए गए बाढ़ राहत कैंप में शरण ली. जिले के डीएम प्रदीप कुमार झा की पहल पर कैंप में शिशु दुग्धाहार की सुविधा शुरू की गई. जिसने महज 24 घण्टों के भीतर ही दम तोड़ दिया.

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शिविर में खाना बनाती रसोईया

दूध ना मिलने से बच्चों का रो-रोकर बुरा हाल
डीएम के जरिए बाढ़ पीड़ित शिशुओं के लिए शुरू की गई दुग्धाहार पहल बीते 15 जुलाई से शुरू तो हुई. लेकिन, अब आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इन राहत शिविरों में डीएम की यह दुग्धाहार पहल शुरुआत के साथ ही 24 घण्टों के भीतर ही छू मंतर हो गई. अब आलम यह है कि सैलाब में अपना सब कुछ गंवा चुके इन बाढ़ पीड़ितों के पास जो भी थोड़ी बहुत बची हुई कमाई है, उससे मजबूरन दूध मंगाकर अपने बच्चों को पिला रहे हैं. क्योंकि उनके बच्चों का दूध ना मिलने से रो-रोकर बुरा हाल है.

बयान देते बाढ़ पीड़ित

50 बच्चों के लिए आया महज 5 लीटर दूध
बता दें कि 16 जुलाई की सुबह दुग्धाहार की सुविधा देने के बाद दूध पार्लर वाले ऐसे गायब हुए कि बाढ़ पीड़ित बच्चों में दूध के लिए कोहराम मच गया. वहीं, राहत कैंपों में रह रहे इन 300 बाढ़ पीड़ितों में से करीब 50 बच्चों के लिए महज 5 लीटर ही दूध आया. ईटीवी भारत संवाददाता ने जब इस संबंध में शिविर के संचालक से सवाल किया तो उन्होंने बताया कि हमें जितना दूध मिला था हमने पूरी निष्पक्षता के साथ इन बच्चों के बीच बांट दी. फिर दूध आना क्यों बंद हो गया इसकी जानकारी नहीं है. बहरहाल, सुविधाओं में घालमेल की यह तस्वीरें जो आ रही हैं इससे अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं होगा कि बाढ़ राहत शिविरों में दी जा रही सुविधाओं का क्या हश्र होता है.

Intro:आकाश कुमार (पूर्णिया)
exclusive report

बाढ़ राहत शिविरों में डीएम की दुग्धाहार पहल 24 घण्टें के भीतर ही दम तोड़ गई। वह दूध जिसे सुधा पार्लरों से जिले के डीएम के निर्देश पर सीधे बच्चों के निवाले तक पहुंचाया जाना था। बायसी अनुमंडल स्थित बाढ़ राहत शिविरों के लिए यह एक पहेली बन कर अब तक गायब है। लिहाजा दूध का स्वाद चख चुके मासूमों की सिसकियों में जहां दूध की जुदाई है। वहीं बिलखते बच्चों को देख बाढ़ पीड़ितों को यह समझ नहीं आ रहा एक साथ आफत की यह आखिर कैसी विपदा आई है।


Body:कर्मियों की कोताही के कारण डीएम की पहल पर कोहराम...

दरअसल ईटीवी भारत की टीम आज जब बायसी मुख्यालय स्थित मध्य विद्यालय में बनाए गए बाढ़ राहत कैंप में पहुंची। तो यहां हर किसी की जुबां पर डीएम की दुग्धाहार पहल को लेकर कोहराम नजर आया। बाढ़ पीड़ितों ने बाढ़ शिविरों तक राहत कार्य पहुंचाने वालों पर जिले के डीएम की पहल से शुरू हुई सुविधा में कोताही बरतते हुए दुग्धाहार की सुविधा से इनके बच्चों को महरूम रखने का आरोप लगाया है।


जानें क्यों दोगुनी आफत लेकर आई है बाढ़ राहत कैंप...


दरअसल बीते 15 जुलाई को पनमार ,कनकई व महानंदा जैसी त्रि नदियों से घिरे बायसी के सैकड़ों गांवों में जैसी ही सैलाब के प्रलयकारी पानी ने उत्पात मचाया। जान बचाकर किसी तरह लोग जिला मुख्यालयों की ओर भागे। जिला मुख्यालय स्थित मध्य विद्यालय में बनाए गए बाढ़ राहत कैंप में शरण ली। हालांकि अब सैलाब का सितम झेलने वाले बाढ़ पीड़ितों के लिए यह राहत कैंप कैंप और उसकी एक लत दोगुनी आफत लेकर आई है। बकायदा यह लत कोई और नहीं बल्कि खुद जिले के डीएम प्रदीप कुमार झा की पहल पर शुरू की गई शिशु दुग्धाहार की सुविधा है।
जिसने महज 24 घण्टें के भीतर ही राहत शिविरों के अंदर दम तोड़ दिया।


24 घण्टें के भीतर ही डीएम की दुग्धाहार पहल ने तोड़ा दम...


दरअसल जिले के डीएम के बाढ़ पीड़ित शिशुओं के लिए शुरू किए गए दुग्धाहार पहल को बीते 15 जुलाई से शुरू होने वाले सभी बाढ़ राहत कैंपों में किसी तरह सरकारी अमला अमल में तो ले आई। मगर अब आपको यह जानकर ईतनी ही हैरानी होगी। इन राहत शिविरों में डीएम की यह दुग्धाहार पहल बीते 16 जुलाई को अपने शुरुआत के साथ ही 24 घण्टें के भीतर ही राहत कैंपों से हमेशा-हमेशा के लिए छू मंतर हो गई।



50 बच्चों के लिए आई महज 5 लीटर दूध...


सुबह के बाद दुग्धाहार की सुविधा और पार्लर वाले कुछ इस तरह गायब हुए। कि बाढ़ पीड़ित और दूध के लिए कोहराम मचा रहे गोद खेलते बच्चों के लिए एक पहेली सी बन गयी। वहीं राहत कैंपो में रह रहे इन बाढ़ पीड़ितों की ये बात जानकर तब आपको और भी हैरानी होगी कि राहत कैम्प में रह रहे 300 लोगों में से अनुमानतन 50 बच्चों के लिए महज 5 लीटर ही दूध आया।
बहरहाल सुविधाओं में घोलमाल की यह तस्वीरें जब बायसी जिला मुख्यालय से आ रही हैं। ऐसे मर अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं होता कि बाढ़ राहत शिविरों में दुग्धाहार और इस जैसी सुविधाओं का दरअसल क्या हश्र होगा।



सिसकियों में तब्दील हुई चंद पल की वाहवाही...


बाढ़ पीड़ितों की मानें तो स्वाद और सेहत के नाम पर डीएम की दुग्धाहार पहल ने उस रोज वाहवाही भी खूब बटोंरी मगर अब यही वाहवाही किसी कोहराम में तब्दील हो गया है। दूध का स्वाद चख चुके बच्चों की सिसकियों ने दूध को लेकर सुबह से शाम तलक इस तरह आफत बिखेड़ रखी है। कि हर कोई दूध के गायब होने से परेशान नजर आ रहा है। आलम यह है कि सैलाब में अपना सब कुछ गंवा चुके इन बाढ़ पीड़ितों के पास जो भी थोड़ी- बहुत बची-कुची कमाई थी। मजबूरन दूध के साथ ही खर्च होकर बहता नजर आ रहा है।


डीएम की दुग्धाहार पहल शिविरों के लिए एक पहेली...


वहीं कुछ ऐसे भी बाढ़ पीड़ित हैं जिनके पास अपने बच्चों को बिलखते देखने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं। है बाढ़ पीड़ित दूध को एक पहेली बनाकर इसके एक रोज लौट के आने की बात कहकर बच्चों को रिझाने और मनाने में जुटे हैं। वहीं इसके साथ ही बाढ़ पीड़ितों ने राहत कैंपों तक दूध की सुविधा पहुंचाने वालों पर डीएम की पहल से शुरू हुई सुविधा से महरूम रखने का आरोप लगाया है।



वहीं ईटीवी ने जब इस संबंध में शिविर के संचालक से सवाल किए तो इन्होंने बताया कि हमें जितनी सुविधा पहुंचाने के आदेश मिले थे हमने पूरी निष्पक्षता से पहुंचाया।



Conclusion:
Last Updated : Jul 19, 2019, 6:29 PM IST
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