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एक वर्मी कंपोस्ट के हैं कई फायदे, रासायनिक खादों से बचाकर पर्यावरण की कर रहे सुरक्षा - वर्मी कंपोस्ट बनाने की विधि

बदलते समय के साथ बीमारियां भी बढ़ रही हैं. खाने-पीने की सामग्री में रासायनिक खाद या उर्वरक के इस्तेमाल से मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. विशेषज्ञों की मानें तो इस परिस्थिति में वर्मी कंपोस्ट (Vermi Compost) काफी फायदेमंद है. एक ओर इससे उत्पादन बढ़ता तो दूसरी ओर रासायनिक खाद के मुकाबले यह बेहद सस्ता होता है. वर्मी कंपोस्ट के उपयोग पर पढ़ें खास रिपोर्ट.

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Published : Jul 18, 2021, 9:20 AM IST

पटना: दिन प्रतिदिन मनुष्य में बढ़ती बीमारियां उसे रासायनिक उत्पादों से दूर होने की हिदायत दे रही हैं. विशेष तौर पर खाने-पीने की सामग्री में अगर रासायनिक खाद या उर्वरक (Fertilizer) का इस्तेमाल हो रहा है तो वह मनुष्य के पाचन तंत्र (Digestive System) पर बुरा असर डाल रहा है. ऐसी स्थिति में वर्मी कंपोस्ट (Vermi Compost) किसी अमृत से कम नहीं है. यह भूमि की उर्वरता को बढ़ाते हुए फसलों की उपज भी जबरदस्त बढ़ा रहा है.

ये भी पढ़ें: Patna News : IAS सुधीर कुमार के समर्थन में उतरे पूर्व आईपीएस अमिताभ दास, DGP को लिखा खत

पटना के अमृत पार्क (Patna Amrit Park) में वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन हो रहा है. जब से यह पार्क खुला है, तब से ही यहां वर्मी कंपोस्ट के जरिए पौधों की देखभाल हो रही है. पार्क से निकलने वाला पूरा कचरा छांट कर वर्मी कंपोस्ट में उपयोग किया जाता है. पार्क में मौजूद फॉरेस्ट गार्ड शिखा कुमारी ने ईटीवी भारत को बताया कि एक शेड का निर्माण कराकर उसके नीचे कई चौकोर गड्ढे बनाए गए हैं.

इनमें गोबर, खरपतवार और केंचुआ डालकर वर्मी कंपोस्ट तैयार किया जाता है. इसी वर्मी कंपोस्ट को पौधों में खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इससे पौधों की वृद्धि तेज हुई है और रासायनिक उत्पादों का उपयोग नहीं करने से पृथ्वी में मौजूद मिट्टी और पानी में प्रदूषण भी नहीं हो रहा जो हर तरह से उपयोगी है.

देखें रिपोर्ट

विशेषज्ञ मानते हैं कि वर्मी कंपोस्ट का उपयोग करने से क्षेत्रों में अलग-अलग फसलों के उत्पादन में 300% तक वृद्धि हो सकती है. मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है. पौधों और भूमि के बीच आयनो का आदान-प्रदान तेज होता है. भूमि पर खरपतवार कम उगते हैं और पौधों में रोग भी कम लगता है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि रासायनिक खाद के मुकाबले वर्मी कंपोस्ट बेहद सस्ता होता है.

वर्मी कंपोस्ट को गोबर और फसल अवशेष मिलाकर तैयार किया जाता है. इससे गंदगी कम होती है और पर्यावरण सुरक्षित रहता है. वर्मी कंपोस्ट में आवश्यक पोषक तत्व प्रचुर और संतुलित मात्रा में होते हैं जिनसे पौधों को संजीवनी मिलती है.

पटना पार्क प्रमंडल के फॉरेस्टर नीरज कुमार ने ईटीवी भारत को बताया कि जब से हमने वर्मी कंपोस्ट तैयार करना शुरू किया है, तब से पार्क का कचरा बाहर नहीं जाता. पार्क में उपलब्ध पेड़ पौधों की पत्तियां खरपतवार और अन्य अवशेष को वर्मी कंपोस्ट बनाने में उपयोग किया जाता है. इससे प्रदूषण भी नहीं फैलता और जब से वर्मी कंपोस्ट का उपयोग पौधों में हमने करना शुरू किया है तब से पौधों की आयु बढ़ गई है. पौधे तेजी से बढ़ रहे हैं और उनमें फूल और फलों की मात्रा भी बढ़ गई है.

पटना: दिन प्रतिदिन मनुष्य में बढ़ती बीमारियां उसे रासायनिक उत्पादों से दूर होने की हिदायत दे रही हैं. विशेष तौर पर खाने-पीने की सामग्री में अगर रासायनिक खाद या उर्वरक (Fertilizer) का इस्तेमाल हो रहा है तो वह मनुष्य के पाचन तंत्र (Digestive System) पर बुरा असर डाल रहा है. ऐसी स्थिति में वर्मी कंपोस्ट (Vermi Compost) किसी अमृत से कम नहीं है. यह भूमि की उर्वरता को बढ़ाते हुए फसलों की उपज भी जबरदस्त बढ़ा रहा है.

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पटना के अमृत पार्क (Patna Amrit Park) में वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन हो रहा है. जब से यह पार्क खुला है, तब से ही यहां वर्मी कंपोस्ट के जरिए पौधों की देखभाल हो रही है. पार्क से निकलने वाला पूरा कचरा छांट कर वर्मी कंपोस्ट में उपयोग किया जाता है. पार्क में मौजूद फॉरेस्ट गार्ड शिखा कुमारी ने ईटीवी भारत को बताया कि एक शेड का निर्माण कराकर उसके नीचे कई चौकोर गड्ढे बनाए गए हैं.

इनमें गोबर, खरपतवार और केंचुआ डालकर वर्मी कंपोस्ट तैयार किया जाता है. इसी वर्मी कंपोस्ट को पौधों में खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इससे पौधों की वृद्धि तेज हुई है और रासायनिक उत्पादों का उपयोग नहीं करने से पृथ्वी में मौजूद मिट्टी और पानी में प्रदूषण भी नहीं हो रहा जो हर तरह से उपयोगी है.

देखें रिपोर्ट

विशेषज्ञ मानते हैं कि वर्मी कंपोस्ट का उपयोग करने से क्षेत्रों में अलग-अलग फसलों के उत्पादन में 300% तक वृद्धि हो सकती है. मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है. पौधों और भूमि के बीच आयनो का आदान-प्रदान तेज होता है. भूमि पर खरपतवार कम उगते हैं और पौधों में रोग भी कम लगता है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि रासायनिक खाद के मुकाबले वर्मी कंपोस्ट बेहद सस्ता होता है.

वर्मी कंपोस्ट को गोबर और फसल अवशेष मिलाकर तैयार किया जाता है. इससे गंदगी कम होती है और पर्यावरण सुरक्षित रहता है. वर्मी कंपोस्ट में आवश्यक पोषक तत्व प्रचुर और संतुलित मात्रा में होते हैं जिनसे पौधों को संजीवनी मिलती है.

पटना पार्क प्रमंडल के फॉरेस्टर नीरज कुमार ने ईटीवी भारत को बताया कि जब से हमने वर्मी कंपोस्ट तैयार करना शुरू किया है, तब से पार्क का कचरा बाहर नहीं जाता. पार्क में उपलब्ध पेड़ पौधों की पत्तियां खरपतवार और अन्य अवशेष को वर्मी कंपोस्ट बनाने में उपयोग किया जाता है. इससे प्रदूषण भी नहीं फैलता और जब से वर्मी कंपोस्ट का उपयोग पौधों में हमने करना शुरू किया है तब से पौधों की आयु बढ़ गई है. पौधे तेजी से बढ़ रहे हैं और उनमें फूल और फलों की मात्रा भी बढ़ गई है.

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