पटना: बिहार में पिछड़ा अति पिछड़ा वोट बैंक साधने के लिए सियासत होती रहती है. राजनीतिक दल खुद को पिछड़ा, अति पिछड़ा और महादलितों का हिमायती बताते हैं. नीतीश कुमार भी अति पिछड़ा वोट बैंक पर अपना मजबूत दावा पेश करते हैं. विडंबना ये है कि पिछले 3 साल के दौरान पिछड़ा अति पिछड़ा और महादलितों के हितों के लिए आयोग के गठन की प्रक्रिया भी पूरी नहीं की जा सकी है.
3 साल में आयोग के गठन की प्रक्रिया नहीं हुई पूरी
बिहार में कुल 17 आयोग हैं. महादलित आयोग, अनुसूचित जाति आयोग, अनुसूचित जनजाति आयोग, पिछड़ा वर्ग आयोग के अलावा सवर्ण आयोग का गठन भी सीएम नीतीश कुमार ने किया था. लेकिन, 2016 से आयोग के तमाम पद खाली पड़े हैं. पिछड़ों, अति पिछड़ों, महादलितों और सवर्णों के हितों की रक्षा करने का दावा करने वाली सरकार आयोग का गठन तक नहीं कर सकी है. नीतीश कुमार के कार्यकाल में ही महादलित आयोग और सवर्ण आयोग का गठन हुआ था लेकिन आज की तारीख में यह बदहाल हालात में है.
कम्युनिस्ट का नीतीश पर प्रहार
सरकार के रवैए पर विपक्ष ने सवाल खड़े किए हैं. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव सत्य नारायण सिंह ने हैरानी जताते हुए कहा कि सरकार गरीब, दलित और 100 सीटों के हितों को लेकर और असंवेदनशील है.
हम का सीएम पर वार
वहीं, हम प्रवक्ता दानिश रिजवान ने कहा कि नीतीश कुमार सिर्फ वोट बैंक की राजनीति करते हैं. लेकिन, गरीब, दलित, महादलितों के हितों के बाद आती है, तब वह चुप्पी साध लेते हैं. उन्होंने कहा कि आयोग के गठन की प्रक्रिया अधूरी रहना इस बात का मिसाल है कि सरकार इनके हितों को लेकर कितनी चिंतित है.
जल्द पूरा होगा काम
उधर, श्रम संसाधन मंत्री विजय सिन्हा ने कहा कि नीतीश सरकार गरीब, दलित, पीड़ित और 100 सीटों के लिए सबसे ज्यादा काम कर रही है. उन्होंने कहा कि कुछ तकनीकी कारणों से आयोग के गठन की प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकी है. लेकिन, मुझे उम्मीद है कि सीएम नीतीश कुमार इसे जल्द ही पूरी कर लेंगे.