पटना: लोकतंत्र का त्योहार होता है मतदान. इसी लोकतंत्र के त्योहार के बारे में ईटीवी भारत के संवाददाता ने राजधानी निवासी त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल सिद्धेश्वर प्रसाद से बात की. उन्होंने गुजरे चुनावों की याद ताजा करते हुए बताया कि वास्तव में लोग इसे त्योहार समझते थे. कई लोग तो नए-नए कपड़े पहन वोट करने जाते थे.
त्रिपुरा के आठवें राजपाल रहे सिद्धेश्वर प्रसाद से 17वीं लोकसभा चुनाव को लेकर खास बातचीत करते हुए बताया कि पहले लोग गांव की पगडंडियों से चलकर मतदान केंद्र पर पहुंचते थे. पूरे गांव का माहौल त्योहार जैसा रहता था. बता दें कि 16 जून 1995 को सिद्धेश्वर प्रसाद ने त्रिपुरा में राज्यपाल का पदभार ग्रहण किया था. वो 22 जून 2000 को सेवानिवृत्त हुए थे.
पहले रंगीन कागज होता था बैलेट पेपर
सिद्धेश्वर प्रसाद ने बताया कि पहले बैलेट पेपर पर चुनाव होता था. ये बैलेट पेपर रंगीन कागजों के होते थे. रंगों से उम्मीदवार की पहचान की जाती थी और लोग मतदान करने जाते थे.
पहले मतदान से अब तक
त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल ने बताया कि उन्होंने देश में हुए पहले मतदान में भी अपने मत का प्रयोग किया था. उन्होंने 11 अप्रैल 1952 को अपना पहला मत मतपेटिका में गिराया था. उसके बाद 1962 में नालंदा के अस्थवां से उन्होंने खुद विधानसभा चुनाव लड़ा.
93 साल की उम्र, इस बार फिर करेंगे मतदान
त्रिपुरा के आठवें राज्यपाल रहे सिद्धेश्वर प्रसाद 93 वें साल से अधिक उम्र के हैं. इसबार वो फिर से मतदान करेंगे. आज भी उनके जेहन में चुनाव की वो पुरानी बातें हैं. वो कहते है कि पहले मतदान में इतना रुपया नहीं खर्च किया जाता था. मतदान प्रणाली प्रचार प्रसार ज्यादा नहीं था.