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बोले त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल- बिहार में वोट देने की मची रहती थी होड़, नहीं था कोई जोड़

त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल सिद्धेश्वर प्रसाद से बात की. उन्होंने गुजरे चुनावों की याद ताजा करते हुए बताया कि वास्तव में लोग इसे त्योहार समझते थे. कई लोग तो नए-नए कपड़े पहन वोट करने जाते थे.

पूर्व राज्यपाल
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Published : Apr 10, 2019, 7:24 PM IST

पटना: लोकतंत्र का त्योहार होता है मतदान. इसी लोकतंत्र के त्योहार के बारे में ईटीवी भारत के संवाददाता ने राजधानी निवासी त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल सिद्धेश्वर प्रसाद से बात की. उन्होंने गुजरे चुनावों की याद ताजा करते हुए बताया कि वास्तव में लोग इसे त्योहार समझते थे. कई लोग तो नए-नए कपड़े पहन वोट करने जाते थे.

त्रिपुरा के आठवें राजपाल रहे सिद्धेश्वर प्रसाद से 17वीं लोकसभा चुनाव को लेकर खास बातचीत करते हुए बताया कि पहले लोग गांव की पगडंडियों से चलकर मतदान केंद्र पर पहुंचते थे. पूरे गांव का माहौल त्योहार जैसा रहता था. बता दें कि 16 जून 1995 को सिद्धेश्वर प्रसाद ने त्रिपुरा में राज्यपाल का पदभार ग्रहण किया था. वो 22 जून 2000 को सेवानिवृत्त हुए थे.

सुनिए त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल की जुबानी

पहले रंगीन कागज होता था बैलेट पेपर
सिद्धेश्वर प्रसाद ने बताया कि पहले बैलेट पेपर पर चुनाव होता था. ये बैलेट पेपर रंगीन कागजों के होते थे. रंगों से उम्मीदवार की पहचान की जाती थी और लोग मतदान करने जाते थे.

पहले मतदान से अब तक
त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल ने बताया कि उन्होंने देश में हुए पहले मतदान में भी अपने मत का प्रयोग किया था. उन्होंने 11 अप्रैल 1952 को अपना पहला मत मतपेटिका में गिराया था. उसके बाद 1962 में नालंदा के अस्थवां से उन्होंने खुद विधानसभा चुनाव लड़ा.

93 साल की उम्र, इस बार फिर करेंगे मतदान
त्रिपुरा के आठवें राज्यपाल रहे सिद्धेश्वर प्रसाद 93 वें साल से अधिक उम्र के हैं. इसबार वो फिर से मतदान करेंगे. आज भी उनके जेहन में चुनाव की वो पुरानी बातें हैं. वो कहते है कि पहले मतदान में इतना रुपया नहीं खर्च किया जाता था. मतदान प्रणाली प्रचार प्रसार ज्यादा नहीं था.

पटना: लोकतंत्र का त्योहार होता है मतदान. इसी लोकतंत्र के त्योहार के बारे में ईटीवी भारत के संवाददाता ने राजधानी निवासी त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल सिद्धेश्वर प्रसाद से बात की. उन्होंने गुजरे चुनावों की याद ताजा करते हुए बताया कि वास्तव में लोग इसे त्योहार समझते थे. कई लोग तो नए-नए कपड़े पहन वोट करने जाते थे.

त्रिपुरा के आठवें राजपाल रहे सिद्धेश्वर प्रसाद से 17वीं लोकसभा चुनाव को लेकर खास बातचीत करते हुए बताया कि पहले लोग गांव की पगडंडियों से चलकर मतदान केंद्र पर पहुंचते थे. पूरे गांव का माहौल त्योहार जैसा रहता था. बता दें कि 16 जून 1995 को सिद्धेश्वर प्रसाद ने त्रिपुरा में राज्यपाल का पदभार ग्रहण किया था. वो 22 जून 2000 को सेवानिवृत्त हुए थे.

सुनिए त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल की जुबानी

पहले रंगीन कागज होता था बैलेट पेपर
सिद्धेश्वर प्रसाद ने बताया कि पहले बैलेट पेपर पर चुनाव होता था. ये बैलेट पेपर रंगीन कागजों के होते थे. रंगों से उम्मीदवार की पहचान की जाती थी और लोग मतदान करने जाते थे.

पहले मतदान से अब तक
त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल ने बताया कि उन्होंने देश में हुए पहले मतदान में भी अपने मत का प्रयोग किया था. उन्होंने 11 अप्रैल 1952 को अपना पहला मत मतपेटिका में गिराया था. उसके बाद 1962 में नालंदा के अस्थवां से उन्होंने खुद विधानसभा चुनाव लड़ा.

93 साल की उम्र, इस बार फिर करेंगे मतदान
त्रिपुरा के आठवें राज्यपाल रहे सिद्धेश्वर प्रसाद 93 वें साल से अधिक उम्र के हैं. इसबार वो फिर से मतदान करेंगे. आज भी उनके जेहन में चुनाव की वो पुरानी बातें हैं. वो कहते है कि पहले मतदान में इतना रुपया नहीं खर्च किया जाता था. मतदान प्रणाली प्रचार प्रसार ज्यादा नहीं था.

Intro:त्रिपुरा के आठवें राजपाल रहे सिद्धेश्वर प्रसाद से 17वीं लोकसभा चुनाव को लेकर खास बातचीत,

*गांव की पगडंडियों से चलकर मतदान केंद्र पर पहुंचते थे उस जमाने में लोग
पूरे गांव में पर्व एवं त्योहार जैसा रहता था माहौल ,रंगीन कागजों पर होता था बैलट पेपर,
रंगीन कागजो के बैलेट पेपर गांव के लोग उम्मीदवारों की करते थे पहचान


*16 जून 1995 को त्रिपुरा में राज्यपाल का किया था पदभार ग्रहण
*22 जून 2000 को हुए थे सेवानिवृत्त

* 11 अप्रैल 1952 को अपना किया था मत का पहला प्रयोग,

सन 1962 में नालंदा के अस्थवां विधानसभा से लड़ा था पहला चुनाव


Body:त्रिपुरा के आठवें राज्यपाल रहे सिद्धेश्वर प्रसाद आज तकरीबन 93 वें साल से अधिक उम्र के हैं और आज भी उनके जेहन में चुनाव की वो पुरानी बातें आज भी मन मस्तिष्क में है, चुनावी चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि सन् 1952 में हमने अपने गांव में पहला वोट किया था, सिद्धेश्वर प्रसाद बिहार के नालंदा जिले के बिंद थाना के अस्थमा गांव के निवासी हैं जिन्होंने अपना वोट 21 साल की उम्र में दिया था, उन्होंने कहा कि चुनाव के वक्त पूरे गांव में त्यौहार जैसा माहौल रहता था, गांव के सभी लोग नए नए कपड़े पहन कर जिस तरह मेला में जाते हैं उस तरह से मतदान केंद्र पर वोट देने जाते थे, घर के सभी सदस्य बैलगाड़ी से मतदान करने जाते थे, और उस वक्त भी चुनाव में महिलाओं की संख्या अधिक होती थी,सभी बढ़-चढ़कर लोग वोट देते थे और उस वक्त धनबल और अपराधी एवं दबंग किस्म के लोगों का भय नहीं रहता था उन्होंने कहा कि पहला चुनाव हमने 1962 में लड़ा था अस्थवां विधानसभा से चुनाव जीते थे चुनाव में महज ₹4000 खर्च हुई थी और उस चुनाव में एक जीप का भी उन्होंने प्रयोग किया था जो आगे चलकर उन्होंने जीप को ही बेच दिया,
बहरहाल आपको बता दें की सिद्धेश्वर प्रसाद केंद्र में 6 बार मंत्री रहे हैं वहीं बिहार की बात करें तो यहां भी तीन बार मंत्री रहे हैं,इसके इसके बाद 16 जून 1995 को त्रिपुरा का राज्यपाल बनाया गया


Conclusion:सिद्वेश्वर प्रसाद ने कहा कि हमारे जमाने में रंगीन कागजों पर बैलेट पेपर हुआ करता था और उस रंग के हिसाब से ही गांव के लोग उम्मीदवारों को पहचान करते थे क्योंकि गांव में कम पढ़े लिखे लोग होते थे, जिस कारण नाम से और प्रतीक चिन्ह से नहीं पहचानते थे बल्कि रंग के आधार पर उम्मीदवारों की पहचान लोग करके अपना मत का प्रयोग करते थे, सिद्वेश्वर प्रसाद ने कहा कि आज इलेक्ट्रॉनिक का जमाना आ गया है, लेकिन चुनाव में करोड़ों रुपए खर्च होते हैं बाहुबली और अपराधी किस्म के लोग राजनीति में आ गए हैं, जो विकास के लिए बाधक हैं,बताया जाता है कि सिद्धेश्वर प्रसाद जवाहर लाल नेहरू, महामाया सिंह, सरदार बल्लभ भाई पटेल जैसे कई शख्सियत के साथ काम किए हैं वहीं गांधीजी के सेवाग्राम में भी रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे। लेकिन आज के बदले हुए हालात से भी काफी दुखी भी हैं और खुशी भी हैं कि हर कोई लोग मतदान के प्रति जागरूक हो रहे हैं वह आज भी इस उम्र में अपना मतदान देना चाहते हैं और लोगों को जागरूक कर रहे हैं


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सिद्धेश्वर प्रसाद पूर्व राज्यपाल त्रिपुरा
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