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शारदीय नवरात्र: पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा, जानें इसका महत्व - शारदीय नवरात्र 2021

शारदीय नवरात्र के लिए मंदिर पूरी तरह से सज गए हैं. शैलपुत्री पूजन के साथ आज नवरात्र का पहला दिन है. पहले नवरात्र में कलश स्थापना होती है. आचार्य रामा शंकर दुबे ने बताया कि इस बार कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजे से लेकर दोपहर 1:59 तक है.

NAVRATRI BEGINS WITH KALASH INSTALLATION
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Published : Oct 7, 2021, 12:49 PM IST

पटना: 'या देवी सर्वभू‍तेषु शक्ति रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:' के मंत्र उच्चारण के साथ शनिवार से शारदीय नवरात्र (Sharadiya Navratri) प्रारंभ हो गया है. नवरात्र के पहले दिन यानी आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि को घट स्थापना किया जाता है, कुछ लोग इसे कलश स्थापना (kalash Sthapana In Navratri) भी कहते हैं. कलश स्थापना की जो परंपरा है वो सदियों से चली आ रही है. ऐसी मान्यता है कि कलश स्थापना ले सभी तीर्थ और देवी देवताओं का वास होता है. इसलिए माता की पूजा अर्चना के लिए कलश की स्थापना की जाती है.

यह भी पढ़ें - नवरात्र के पहले दिन साधुओं ने लगाई गंगा में डुबकी, दंडवत करते पहुंचे बड़ी पटनदेवी शक्तिपीठ

इस बार नवरात्रि के दिन चित्रा नक्षत्र रात 9 बजकर 13 मिनट तक और वैधृति योग रात 1 बजकर 39 मिनट तक रहेगा. इस कारण शारदीय नवरात्र में घट स्थापना का समय दोपहर 11 बजकर 52 मिनट से 12 बजकर 38 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त में ही सर्वश्रेष्ठ रहेगा. ऐसे में दुर्गा पूजा के पहले दिन वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ विभिन्न मंदिरों में पूजा-अर्चना प्रारंभ हो गया. भक्त कलश स्थापन करने के साथ ही माता की पूजा आराधना करके दीप आरती करते हैं. कलश स्थापना के साथ ही दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू हो जाता है.

देखें वीडियो

आचार्य रामा शंकर दुबे ने बताया कि प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. जो भी भक्त मां शैलपुत्री का पूजन करते हैं और सप्तशती का पाठ करते हैं उनको धन और भाग्य की प्राप्ति होती है.

आचार्य ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान पिछले साल धूमधाम से माता की पूजा नहीं हो पायी थी. लोगों ने अपने-अपने घरों में पूजा-पाठ किया थी. पूजा भक्ति में किसी प्रकार की कोई रोक नहीं होती है. श्रद्धा ,भक्ति और भाव से अपने घर में भी पूजा पाठ किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इस बार भी कोरोना को लेकर सरकार के द्वारा जो भी दिशा निर्देश दिया गया है. उसका पालन करते हुए लोग मंदिरों में पहुंचे.

नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना और उसका पूजन किया जाता है. इसके बाद मां शैलपुत्री का पूजन किया जाता है. माता शैलपुत्री देवी पार्वती का ही एक रूप हैं, जो नंदी पर सवार, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं. उनके एक हाथ में त्रिशुल और एक हाथ में कमल विराजमान रहता है. मां शैलपुत्री को धूप, दीप, फल, फूल, माला, रोली, अक्षत चढ़ाकर पूजन करना चाहिए. मां शैलपुत्री को सफेद रंग प्रिय है, इसलिए उनको पूजन में सफेद फूल और मिठाई अर्पित करना चाहिए. इसके बाद भोग में केले का फल मिठाई पंचामृत तरह-तरह के भक्तों श्रद्धा के अनुसार माता को भोग लगाते हैं. इसके बाद मां शैलपुत्री के मंत्रों का जाप कर, पूजन का अंत मां शैलपुत्री की आरती गा कर करना चाहिए.

नवरात्रि की पूजा विधि
सबसे पहले घर में मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें और उसके नीचे लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं. इसके ऊपर केसर से 'शं' लिखें और उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें. तत्पश्चात हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें, और इस मंत्र का जाप करें.

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:

मंत्र के साथ ही हाथ के पुष्प मनोकामना गुटिका एवं मां की तस्वीर के ऊपर छोड़ दें. इसके बाद प्रसाद अर्पित करें तथा मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें. ध्यान रहे इस मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें.

मंत्र - ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।

शैलपुत्री का ध्यान मंत्र
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

अर्थात- देवी वृषभ पर विराजित हैं. शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है. यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं. नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए.

कलश स्थापना के नियम

  • नवरात्रि में जीवन के समस्त भागों और समस्याओं पर नियंत्रण किया जा सकता है.
  • नवरात्रि के दौरान हल्का और सात्विक भोजन करना चाहिए.
  • नियमित खान पान में जौ और जल का प्रयोग जरूर करना चाहिए.
  • इन दिनों तेल, मसाला और अनाज कम से कम खाना चाहिए.
  • कलश की स्थापना करते समय जल में सिक्का डालें.
  • कलश पर नारियल रखें और कलश पर मिट्टी लगाकर जौ बोएं.
  • कलश के निकट अखंड दीपक जरूर प्रज्ज्वलित करें.

मूलाधार चक्र के कमजोर होने के लक्षण

  • व्यक्ति का स्वास्थ्य सामान्यतः कमजोर रहता है.
  • कुछ न कुछ बीमारियां लगी रहती हैं.
  • व्यक्ति के अंदर पशुता का भाव रहता है.
  • व्यक्ति जीवन में कभी कभी स्वार्थी भी हो जाता है.

मूलाधार चक्र मजबूत करने के उपाय

  • दोपहर के समय लाल वस्त्र धारण करें.
  • देवी को लाल फूल और लाल फल अर्पित करें.
  • देवी को ताम्बे का सिक्का भी अर्पित करें.
  • इसके बाद पहले अपने गुरु का स्मरण करें.
  • तत्पश्चात अपने आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाएं.
  • ध्यान जितना लम्बा और गहरा होगा, लाभ उतना ही ज्यादा होगा.

यह भी पढ़ें - Navratri 2021: पहले दिन करें मां शैलपुत्री की पूजा, जानिए पूजन और कलश स्थापना के लाभ

पटना: 'या देवी सर्वभू‍तेषु शक्ति रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:' के मंत्र उच्चारण के साथ शनिवार से शारदीय नवरात्र (Sharadiya Navratri) प्रारंभ हो गया है. नवरात्र के पहले दिन यानी आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि को घट स्थापना किया जाता है, कुछ लोग इसे कलश स्थापना (kalash Sthapana In Navratri) भी कहते हैं. कलश स्थापना की जो परंपरा है वो सदियों से चली आ रही है. ऐसी मान्यता है कि कलश स्थापना ले सभी तीर्थ और देवी देवताओं का वास होता है. इसलिए माता की पूजा अर्चना के लिए कलश की स्थापना की जाती है.

यह भी पढ़ें - नवरात्र के पहले दिन साधुओं ने लगाई गंगा में डुबकी, दंडवत करते पहुंचे बड़ी पटनदेवी शक्तिपीठ

इस बार नवरात्रि के दिन चित्रा नक्षत्र रात 9 बजकर 13 मिनट तक और वैधृति योग रात 1 बजकर 39 मिनट तक रहेगा. इस कारण शारदीय नवरात्र में घट स्थापना का समय दोपहर 11 बजकर 52 मिनट से 12 बजकर 38 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त में ही सर्वश्रेष्ठ रहेगा. ऐसे में दुर्गा पूजा के पहले दिन वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ विभिन्न मंदिरों में पूजा-अर्चना प्रारंभ हो गया. भक्त कलश स्थापन करने के साथ ही माता की पूजा आराधना करके दीप आरती करते हैं. कलश स्थापना के साथ ही दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू हो जाता है.

देखें वीडियो

आचार्य रामा शंकर दुबे ने बताया कि प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. जो भी भक्त मां शैलपुत्री का पूजन करते हैं और सप्तशती का पाठ करते हैं उनको धन और भाग्य की प्राप्ति होती है.

आचार्य ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान पिछले साल धूमधाम से माता की पूजा नहीं हो पायी थी. लोगों ने अपने-अपने घरों में पूजा-पाठ किया थी. पूजा भक्ति में किसी प्रकार की कोई रोक नहीं होती है. श्रद्धा ,भक्ति और भाव से अपने घर में भी पूजा पाठ किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इस बार भी कोरोना को लेकर सरकार के द्वारा जो भी दिशा निर्देश दिया गया है. उसका पालन करते हुए लोग मंदिरों में पहुंचे.

नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना और उसका पूजन किया जाता है. इसके बाद मां शैलपुत्री का पूजन किया जाता है. माता शैलपुत्री देवी पार्वती का ही एक रूप हैं, जो नंदी पर सवार, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं. उनके एक हाथ में त्रिशुल और एक हाथ में कमल विराजमान रहता है. मां शैलपुत्री को धूप, दीप, फल, फूल, माला, रोली, अक्षत चढ़ाकर पूजन करना चाहिए. मां शैलपुत्री को सफेद रंग प्रिय है, इसलिए उनको पूजन में सफेद फूल और मिठाई अर्पित करना चाहिए. इसके बाद भोग में केले का फल मिठाई पंचामृत तरह-तरह के भक्तों श्रद्धा के अनुसार माता को भोग लगाते हैं. इसके बाद मां शैलपुत्री के मंत्रों का जाप कर, पूजन का अंत मां शैलपुत्री की आरती गा कर करना चाहिए.

नवरात्रि की पूजा विधि
सबसे पहले घर में मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें और उसके नीचे लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं. इसके ऊपर केसर से 'शं' लिखें और उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें. तत्पश्चात हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें, और इस मंत्र का जाप करें.

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:

मंत्र के साथ ही हाथ के पुष्प मनोकामना गुटिका एवं मां की तस्वीर के ऊपर छोड़ दें. इसके बाद प्रसाद अर्पित करें तथा मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें. ध्यान रहे इस मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें.

मंत्र - ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।

शैलपुत्री का ध्यान मंत्र
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

अर्थात- देवी वृषभ पर विराजित हैं. शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है. यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं. नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए.

कलश स्थापना के नियम

  • नवरात्रि में जीवन के समस्त भागों और समस्याओं पर नियंत्रण किया जा सकता है.
  • नवरात्रि के दौरान हल्का और सात्विक भोजन करना चाहिए.
  • नियमित खान पान में जौ और जल का प्रयोग जरूर करना चाहिए.
  • इन दिनों तेल, मसाला और अनाज कम से कम खाना चाहिए.
  • कलश की स्थापना करते समय जल में सिक्का डालें.
  • कलश पर नारियल रखें और कलश पर मिट्टी लगाकर जौ बोएं.
  • कलश के निकट अखंड दीपक जरूर प्रज्ज्वलित करें.

मूलाधार चक्र के कमजोर होने के लक्षण

  • व्यक्ति का स्वास्थ्य सामान्यतः कमजोर रहता है.
  • कुछ न कुछ बीमारियां लगी रहती हैं.
  • व्यक्ति के अंदर पशुता का भाव रहता है.
  • व्यक्ति जीवन में कभी कभी स्वार्थी भी हो जाता है.

मूलाधार चक्र मजबूत करने के उपाय

  • दोपहर के समय लाल वस्त्र धारण करें.
  • देवी को लाल फूल और लाल फल अर्पित करें.
  • देवी को ताम्बे का सिक्का भी अर्पित करें.
  • इसके बाद पहले अपने गुरु का स्मरण करें.
  • तत्पश्चात अपने आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाएं.
  • ध्यान जितना लम्बा और गहरा होगा, लाभ उतना ही ज्यादा होगा.

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