पटना: देशभर में मनाए जाने वाले विश्वकर्मा पूजा (Vishwakarma Puja) को लेकर तैयारियां लगभग पूरी की जा चुकी हैं. भगवान विश्वकर्मा की जयंती हर साल 17 सितंबर को मनाई जाती है. हर साल कन्या संक्रांति के दिन विश्वकर्मा जयंती मनाई जाने की परंपरा रही है. वहीं इसे लेकर मूर्तिकार (Sculptors) भी भगवान विश्वकर्मा की मूर्तियों को अंतिम रूप दे रहे हैं. साथ ही मूर्तिकारों में उत्साह भी देखने को मिल रहा है.
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बता दें कि इस साल कन्या संक्रांति के दिन विश्वकर्मा जयंती के साथ पद्म एकादशी भी पड़ रहा है. भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का सबसे पहला अभियंता और वास्तुकार माना जाता रहा है. जिसके कारण सभी कल कारखानों में विश्वकर्मा पूजा काफी धूमधाम से मनाई जा रही है. वहीं, मूर्तिकार भी काफी उत्साहित दिख रहे हैं. उनकी मूर्तियां भी पिछले दो सालों की तुलना में ज्यादा बिकी हैं.
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कोरोना का असर पूरी दुनिया पर पड़ा है. कोरोना संक्रमण के कारण लगभग सभी पर्व और त्योहारों पर ग्रहण लग गया था. करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी पर संकट खड़ा हो गया है, उन्हीं में मूर्तिकार भी शामिल हैं. इनलोगों को पूरे दो साल कोरोना की मार झेलनी पड़ी. जिसके कारण मूर्तिकारों की आमदनी भी ठप हो गई थी. वहीं, इस वर्ष मूर्तिकारों का कहना है कि पिछली बार, तो मूर्ति बिकी ही नहीं थी. लेकिन इस बार 10 मूर्तियां बनाई गई है. जिसमें से 8 बिक चुकी है. पूजा के पहले-पहले बची हुई अन्य दो मूर्तियां भी बिक जाएगी. इस वर्ष कल-कारखानों और फैक्ट्रियों में भी काफी धूमधाम से विश्वकर्मा पूजा मनाई जा रही है.
'कोरोना संक्रमण काल में हम लोगों को काफी दिक्कत हो गया था. मूर्तियां नहीं बिक रही थी. लेकिन इस साल हमने 10 मूर्तियां बनाई है. जिसमें से अब तक 8 मूर्तियां बिक चुकी है. इस साल पहले की अपेक्षा ज्यादा अच्छा है. लोगों में विश्वकर्मा पूजा को लेकर उत्साह भी देखने को मिल रहा है.' -विश्वास कुमार कुमार, मूर्तिकार
बताते चलें कि आज सर्वार्थ सिद्धि योग में विश्वकर्मा पूजा मनाने की मुर्हूत है. यह योग प्रात: 06 बजकर 07 मिनट से अगले दिन 10 सितंबर को प्रात: 03 बजकर 36 मिनट तक बना रहेगा. आज के दिन विशेष तौर पर औजारों, निर्माण कार्य से जुड़ी मशीनों, दुकानों, कारखानों आदि की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा की कृपा से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, व्यापार में तरक्की और उन्नति होती है. जो भी कार्य प्रारंभ किए जाते हैं, वे पूरे होते हैं. भगवान विश्वकर्मा को संसार का पहला इंजीनियर भी कहा जाता है.
विश्वकर्मा पूजा के मुहूर्त की बात करें तो 17 सितंबर को एक घंटे 32 मिनट तक राहुकाल रहेगा. इस दौरान विश्वकर्मा पूजन की मनाही है. आदि शिल्पी की जयंती पर राहुकाल की शुरुआत पूर्वाह्न 10:43 बजे से होगी. दोपहर 12:15 बजे राहुकाल समाप्त होगा. शास्त्रों के अनुसार औजारों, निर्माण से जुड़ी मशीनों, दुकानों, कल-कारखानों आदि में पूजन के लिए मध्याह्न 12:16 बजे से सूर्यास्त तक का समय उपयुक्त है. विश्वकर्मा भगवान को प्रसन्न करने के लिए योग के साथ ही पूजा की विधि भी बहुत महत्वपूर्ण है.
विश्वकर्मा पूजा के लिए अपने कामकाज में उपयोग में आने वाली मशीनों को साफ करना चाहिए. फिर स्नान करके भगवान विष्णु के साथ विश्वकर्माजी की प्रतिमा की विधिवत पूजा करनी चाहिए. ऋतुफल, मिष्ठान्न, पंचमेवा, पंचामृत का भोग लगाना चाहिए. दीप-धूप आदि जलाकर दोनों देवताओं की आरती उतारनी चाहिए. इससे मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं. वराह पुराण के अनुसार ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा को धरती पर उत्पन्न किया. वहीं विश्वकर्मा पुराण के अनुसार, आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्माजी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की. भगवान विश्वकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से भी जोड़ा जाता है.