पटना: चुनावी जनसभा में भाषा निम्न स्तर पर पहुंच चुका है. सत्ता पक्ष और विपक्ष द्वारा राजनीतिक मंचों से एक-दूसरे पर निजी हमले किए जाते हैं. जो काफी शर्मनाक है. इसपर वरिष्ठ पत्रकारों ने अपनी राय रखी और इसे अमर्यादित बताया. उनका साफ कहना है कि इस तरह की भाषा का प्रयोग नहीं होनी चाहिए. इससे जनता में गलत संदेश जाता है.
भाषा की मर्यादा को किया गया तार-तार
वरिष्ठ पत्रकार संतोष कुमार ने बताया कि इस बार के चुनाव में भाषा की मर्यादा को तार-तार किया जा रहा है. भाषा के इस स्तर पर जनता खुद शर्मिंदगी महसूस कर रही है. सत्ता पक्ष हो या विपक्ष कोई भी किसी से कम नहीं है. जिस तरह की भाषा का प्रयोग विपक्ष द्वारा प्रधानमंत्री के लिए किया गया वो कतई सही नहीं है. यही नहीं सत्ता पक्ष द्वारा जवाहरलाल नेहरू और गांधी परिवार को लेकर जो बातें की गई, वो मर्यादा को ताक पर रखकर की गई है. इस तरह के भाषा का प्रयोग भारतीय राजनीति के लिए गलत है.
सत्ता में आने के लिए लांघ रहे है भाषा का मर्यादा
वहीं, एक और वरिष्ठ पत्रकार इंद्र भूषण ने बताया कि इस बार की राजनीति में भाषा का अब कोई स्तर नहीं रहा गया है. राजनीति में अब ना कोई सिद्धांत है ना ही कोई नीति. सिर्फ एक ही नियत है कि हमको सत्ता में आना है. इसके लिए चाहे किसी तरह साम, दाम, दंड, भेद का प्रयोग क्यों ना करना पड़े. चुनाव जीतने के लिए अब छोटी-मोटी गालियों का भी प्रयोग करना पड़े या किसी के पारिवारिक मामले को उजागर करना पड़े, नेता कर रहे हैं. अब सोचिए कि एक प्रधानमंत्री के आर्मी के जहाज पर जाने को भी मुद्दा बनाया गया. राजनीति में अब इस तरह के भाषा के लिए कोई मानक नहीं रह गया है.
'विकास के मुद्दे पर चुनाव होना चाहिए'
पत्रकारों की राय है कि इस तरह की बातें राजनीति में नहीं होनी चाहिए. विकास के मुद्दे पर चुनाव होनी चाहिए. सत्ता पक्ष को अपने डेवलपमेंट की बात रखनी चाहिए और विपक्षी दलों को सरकार की खामियों को जनता के सामने रखनी चाहिए ना कि निजी मामले को उजागर करनी चाहिए. राजनीति में पर्सनल अटैक नहीं होनी चाहिए. यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है.