पटना: बिहार के कई शहरों में इन दिनों हवा के प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ (Pollution increasing in many cities of Bihar ) गया है. इस महीने राजधानी पटना में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ा (Air pollution level rises in Patna) हुआ है. यह 200 से 300 के बीच कई बार चला गया है. बिहार के ही एक शहर कटिहार को नवंबर के महीने में 2 दिन देश का सबसे अधिक प्रदूषित शहर का दर्ज दिया गया है. यहां हवा प्रदूषण का लेवल दिल्ली के प्रदूषण लेवल को भी पार कर गया है. 4 नवंबर को एक यूआई इंडेक्स 402 पर चला गया, वहीं 7 नवंबर को 360 पर चला गया. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अनुसार इन दोनों दिन कटिहार देश का सबसे अधिक प्रदूषित शहर दर्ज किया गया.
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भौगोलिक संरचना के कारण ठंड शुरू होते ही बढ़ जाते हैं धूलकण: बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार घोष का कहना है कि बिहार में इन दिनों एयर क्वालिटी इंडेक्स खराब होने के पीछे कई कारण है. बिहार की भौगोलिक संरचना ही ऐसी है कि जब गर्मी का मौसम समाप्त हो रहा होता है और ठंड का आगमन हो रहा होता है उस समय हवा में धूल कण की मात्रा बढ़ जाती है. उन्होंने बताया कि बिहार के वायु प्रदूषण में so2 और no2 गैस की मात्रा नहीं बढ़ती, बल्कि पीएम 2.5 और पीएम 10, जो धूलकण होता है उसकी मात्रा बढ़ती है. इसके अलावा बिहार में नेवर बूट फैक्टर भी एक बड़ा कारण है. इससे बिहार के शहरों में प्रदूषण की मात्रा अधिक दिखती है. इन सबके साथ-साथ मानव निर्मित एक्टिविटी भी ऐसी है जिस वजह से प्रदूषण की मात्रा बढ़ती है और सभी कारक जब एक साथ मिल जाते हैं तो हवा में प्रदूषण का लेवल काफी बढ़ जाता है.
डॉक्टर अशोक घोष के अनुसार प्रदेश के शहरों के हवा में बढ़ते प्रदूषण के पांच प्रमुख कारण है-ः
1. बिहार की भौगोलिक संरचनाः
बिहार की भौगोलिक संरचना में अल्लुवियल स्वायल की मात्रा अधिक है. यानी कि यहां अधिकांश हिस्सों में सॉफ्ट स्वायल है जो आसानी से धूल कण बन जाते हैं. बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार घोष की माने तो गया, नवादा, जमुई के हिस्सों को छोड़ दे तो प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में सॉफ्ट मिट्टी पाई जाती है और गया, नवादा, जमुई जैसे जिलों में पठारी क्षेत्र होने के नाते मिट्टी सख्त होती है जो आसानी से धूल कर नहीं बन पाती. बिहार में खासकर उत्तरी बिहार में इन दिनों प्रदूषण की मात्रा अधिक बढ़ जाती है. क्योंकि गंगा के मैदानी क्षेत्र होने के नाते इधर मिट्टी काफी सॉफ्ट होती है. इसके अलावा उत्तर बिहार बाढ़ प्रभावित क्षेत्र हैं और बाढ़ के साथ-साथ नदियां सिल्ट लेकर आती हैं. इस मौसम में बाढ़ का पानी उतर गया रहता है और जो सिल्ट रहता है वह एक्सपोज हो जाती है और यह धूल कण बनकर हवा में फैलने लगती है. इस वजह से प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाती है. यही कारण है कि इन दिनों हवा को जहरीला बनाने वाला पीएम 2.5 और pm10 बढ़ने लगता है.
2ः इस मौसम में जलवायु की स्थितिः डॉ. अशोक कुमार घोष की मानें तो इस मौसम में जलवायु की स्थिति भी बिहार की हवा में प्रदूषण का लेवल बढ़ाने में सहायक है. इस मौसम में थर्मल इंवर्जन होता है. यानी गर्म हवा ऊपर और ठंडी हवा नीचे आती है. क्योंकि गर्मी का मौसम समाप्त हो रहा होता है और ठंडी की शुरुआत हो रही होती है. ऐसे में होता यह है की जो धूल कण वायुमंडल में ऊपर रहती है. वह नीचे आने लगती है और इस वजह से धुंध सा छाने लगता है. इसके अलावा इस समय हवा की वेलोसिटी भी काफी कम रहती है, ऐसे में जो धूलकण मिट्टी से उठकर ऊपर हवा में उड़ता है, हवा की गति नहीं होने की वजह से फैल नहीं पाता और एक जगह कांस्टेंट नजर आता है.
3.नेवर हुड फैक्टरःडॉ. अशोक कुमार घोष बताते हैं कि बिहार में प्रदूषण का सोर्स पता करने के लिए रिसर्च किया गया था. इसमें पता चला कि शहरों में जो प्रदूषण का स्तर दिखता है वह ग्रामीण क्षेत्रों में हो रही गतिविधियों की वजह से होता है. ग्रामीण क्षेत्र में यदि कोई लकड़ी के चूल्हे पर खाना बना रहा है, खेतों में पराली जला रहा है तो वह धुंआ आसमान में ऊपर उठता है और वह शहरों के तरफ फैल जाता है. शहरों में जो प्रदूषण दिखता है उसका 25 से 28% प्रदूषण का सोर्स पास के ग्रामीण क्षेत्रों में हो रही गतिविधि है.
4. कंस्ट्रक्शन में नियमों की अनदेखी और सड़क की पटरियांःडॉ अशोक कुमार घोष ने बताया कि सड़क बनाने का नियम है कि पक्की सड़क बनती है तो उसके दोनों हिस्से में सोलिंग होनी चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है. पटरिया मिट्टी वाली ही छोड़ दी जाती हैं. ऐसे में जब गाड़ियां चलती है तो ट्रैफिक में गाड़ियों के दो पहिए मिट्टी पर और दोपहिया पक्की सड़क पर रहती है. ऐसे में जो दो पहिया मिट्टी वाले हिस्से में रहती है, वह काफी धूलकण बनाती है और हवा को जहरीला करती है. इसके अलावा कंस्ट्रक्शन का नियम है कि चाहे बिल्डिंग का कंस्ट्रक्शन हो या सड़क का कंस्ट्रक्शन हो उसे ग्रीन कपड़े से कवर करके ही कंस्ट्रक्शन होना चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है, नियमों की अनदेखी की जाती है और यह काफी अधिक मात्रा में हवा में प्रदूषण फैलाता है.
5.लोगों में जागरूकता की कमीः डॉ. अशोक कुमार घोष बताते हैं कि प्रदूषण के खिलाफ जागरूकता को लेकर कई तरह के कार्यक्रम भी चलाए जाते हैं, लेकिन लोगों में अभी भी जागरूकता की काफी कमी है. लोग अभी भी यत्र-तत्र कचरा फेंकते हैं और गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग करके नहीं फेंकते. प्रदूषण अधिक करने वाले वाहनों को भी लोग चलाते हैं और अपनी गाड़ियों के पोल्यूशन को दुरुस्त रखने पर अधिक जागरूकता नहीं दिखाते हैं. बायोमास बर्निंग को सरकार मना करती है लेकिन बावजूद इसके लोग करते हैं. लोग जब प्रदूषण बढ़ता है तो सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं लेकिन यदि खुद अलर्ट रहे तो काफी हद तक प्रदूषण की समस्या का समाधान हो जाएगा. इसके अलावा प्रदेश में ईट भट्टे का उद्योग सबसे अधिक है. 8000 से अधिक की संख्या में ईट भट्ठे हैं. यह काफी मात्रा में प्रदूषण पैदा करते हैं.
प्रदूषण कंट्रोल करने के लिए सरकार क्या कर रहीः डॉ. अशोक घोष ने बताया कि ईंट भट्टे के उद्योग से प्रदूषण अधिक होता है. इसको लेकर ईंट भट्टे को जैक मॉडल पर तैयार करने का निर्देश दिया जा रहा है और जो ऐसा नहीं कर रहे हैं वैसे ईट भट्टा संचालकों को नोटिस भी दिया जा रहा है. सरकार की तरफ से पराली जलाने पर सख्त रोक है और कोई किसान यदि ऐसा करते पाया जाता है तो उसे कृषि संबंधित दी जाने वाली सभी सब्सिडी समाप्त कर दी जाती है. समय-समय पर निरंतर वाहनों की प्रदूषण जांच होती है. प्रदूषण कम करने के उपायों को लेकर जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं.
"इन दिनों एयर क्वालिटी इंडेक्स खराब होने के पीछे कई कारण है. बिहार की भौगोलिक संरचना ही ऐसी है कि जब गर्मी का मौसम समाप्त हो रहा होता है और ठंड का आगमन हो रहा होता है उस समय हवा में धूल कण की मात्रा बढ़ जाती है. यहां अधिकांश हिस्सों में सॉफ्ट स्वायल है जो आसानी से धूल कण बन जाते हैं. यह भी प्रदूषण को बढ़ाता है. शहरों में जो प्रदूषण का स्तर दिखता है वह ग्रामीण क्षेत्रों में हो रही गतिविधियों की वजह से होता है. इसके अलावा भी प्रदूषण का स्तर बढ़ने के कई कारण हैं "- डाॅ. अशोक कुमार घोष, अध्यक्ष, बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
अस्थामा के रोगियों की बढ़ जाती है परेशानीः पटना के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. दिवाकर तेजस्वी बताते हैं कि हवा में प्रदूषण का लेवल सांस संबंधित कई बीमारियों को बढ़ाता है. अस्थमा के मरीजों की समस्याओं को और बढ़ाता है. इसके अलावा हवा में प्रदूषण हार्ट अटैक का भी एक प्रमुख कारण है. इन सबके अलावा ब्रिटिश मेडिकल काउंसिल के पूर्व वैज्ञानिक और स्वीडन के उपासला यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. राम एस उपाध्याय ने अपने हालिया रिसर्च में बताया है कि प्रदूषण गर्भवती महिला और उसके बच्चों को गंभीर रूप से प्रभावित करता है. हवा में प्रदूषण की वजह से एक गर्भवती महिला का ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बढ़ जाता है. जिस वजह से वह सामान्य से काफी कम वजन के बच्चों को जन्म देती है इसके साथ ही जच्चा और बच्चा को कैंसर होने का भी संभावना बना रहता है.