पटना: लोगों को कई तरह के शौक होते हैं. कई बार उनका यही शौक जुनून बन जाता है और समाज में एक अलग पहचान दिलाता है. ऐसे ही हैं पटना के शेखपुरा के रहने वाले शैलेंद्र कुमार ( Patna Medical Photographer Shailendra Kumar). इनको फोटोग्राफी का शौक है लेकिन इनका ये शौक लिक से हटकर है. ना तो ये प्रकृति की खूबसूरती को कैमरे में कैद करते हैं और ना ही कोई खूबसूरत चेहरा. इनके कैमरे में आपको सिर्फ डॉक्टर द्वारा मरीज का ऑपरेशन किए जाने का फोटो मिलेगा. आखिर क्या है इसका कारण जानने के लिए विस्तार से पढ़ें..
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शैलेंद्र की तस्वीरों की ये है खासियत: दरअसल शैलेंद्र मेडिकल फोटोग्राफर थे और अपने करियर के दिनों में उन्होंने ऐसी ऐसी तस्वीरें ली हैं जो किसी आम आदमी या फिर प्रोफेशनल के लिए भी लेना संभव नहीं है. आज की तारीख में यह तस्वीरें धरोहर बन चुकी हैं. खुद शैलेंद्र कहते हैं कि अगर कोई रिसर्च करना चाहे तो यह तस्वीरें उसकी बहुत मदद कर सकती हैं. शैलेंद्र बताते हैं कि 1991 में उनकी जॉब आईजीआईएमएस में बतौर मेडिकल फोटोग्राफर लगी थी. वहीं पर इस तरह के फोटो लेने का मौका मिला.
शुरू से बनना चाहते थे फोटोग्राफर: शैलेंद्र बताते हैं कि आर्ट कॉलेज से उन्होंने 1985 बैच पीटी की दीक्षा ली लेकिन धीरे-धीरे उनका रुझान फोटोग्राफी की तरफ होने लगा. 1991 में आईजीआईएमएस (IGIMS Medical Photographer Shailendra) की तरफ से एक मेडिकल फोटोग्राफर के लिए वैकेंसी आई. इस वैकेंसी के लिए अर्हता यह थी कि आवेदन करने वाला मेडिकल बैकग्राउंड पर काम कर चुका हो. वैकेंसी आने के कुछ ही दिन पहले उन्होंने एक एनजीओ के साथ मिलकर स्वास्थ्य श्रृंखला नामक कार्यक्रम के लिए तस्वीरें एकत्र की थी जो कि शहर की अलग-अलग अस्पताल की तस्वीरें थी. यही अनुभव शैलेंद्र के काम आ गया.
घर में ही इंफ्रास्ट्रक्चर किया तैयार: शैलेंद्र की सीनियर फोटोग्राफर के पद पर नौकरी आईजीआईएमएस में लग गई. शैलेंद्र कहते हैं हर रिसर्च सेंटर में मेडिकल इलस्ट्रेशन यूनिट होता है. यह आईजीआईएमएस में भी है. एमसीआई की तरफ से दिए गए निर्देशों के अनुसार इसका होना बहुत जरूरी है. उसके सीनियर फोटोग्राफर के पद पर मेरी नियुक्ति हुई लेकिन तब उतना इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं था. जिसे लेकर काफी फ्रस्ट्रेशन भी रहता था. फिर मैंने डॉक्टरों से यह यह समझने की कोशिश की कि उनका काम क्या होगा कैसे होगा? शैलेंद्र बताते हैं कि उन्होंने अपने घर पर अपना इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रखा था.
"मैंने डॉक्टरों का स्लाइड बनाना शुरू किया. काम के सिलसिले में धीरे-धीरे मैंने कई तरह से स्लाइड बनाने की जानकारी हासिल कर ली. यह हमारे ऑफिस के लिए तो अच्छा था ही , बाहर के भी बहुत लोगों ने मदद ली. फिर मुझे कैमरा मिला और ओटी से कॉल आने लगी. इसी बीच मैंने शिशु रोग वार्ड के सर्जन डॉक्टर बिंदे कुमार के साथ काफी काम किया. उन्होंने सबसे ज्यादा काम करवाया. जब भी किसी बच्चे की सर्जरी होनी होती थी. मुझे तस्वीरें लेने के लिए बुला लेते थे."- शैलेंद्र कुमार, मेडिकल फोटोग्राफर
शुरू में आई थी परेशानी: शैलेंद्र ने बताया कि पहला काम डॉक्टर महेंद्र सिंह के कहने पर यूरोलॉजी का किया उसमें पेट खुलता है. उसमें थोड़ी अलग तरह की परेशानी होती है.हालांकि मैंने अपने मन को यह समझा दिया था कि मुझे इसके बारे में सोचना ही नहीं है. डॉक्टर को मैं देखता था कि वह एक रूम में ऑपरेशन करते थे और दूसरे रूम में कॉफी पीते थे. बाद में उन्होंने मुझे भी इनवाइट करना शुरू कर दिया. मैं भी डॉक्टरों के साथ कॉफी पीने लगा फिर मैं धीरे-धीरे यूज टू हो गया.
शैलेद्र के रोचक अनुभव: शैलेंद्र बताते हैं कि 7- 8 साल पहले आईजीआईएमएस में पहली बार घुटने के प्रत्यारोपण का ऑपरेशन किया गया था. तब ऑर्थोपेडिक के एचओडी डॉ संतोष कुमार और डॉ रजत चरण दोनों ने मुझे बताया कि कल यह ऑपरेशन होने वाला है आप आ जाइएगा. घुटने के प्रत्यारोपण की पूरी सीरीज आज भी मेरे पास है. शैलेंद्र करते हैं मैंने बहुत काम किया सबसे ज्यादा काम मैंने चाइल्ड पर किया. दो 2 दिन के नवजात बच्चों को दिक्कत होती थी. किसी बच्चे को यूरन पास करने के लिए रास्ता ही नहीं बना है तो डॉक्टर नली बना रहे हैं. शैलेंद्र बताते हैं कि एक बार ऐसा भी हुआ था जब एक बंदे की जांच की जा रही थी कि वो लड़की है या लड़का? उसकी जांच की गई तो यूट्रस मिला और उसे लड़की बना दिया गया. वह चीज मैंने डॉक्टर विनय कुमार के साथ देखा शूट किया लेकिन वह सारी चीजें आज की तारीख में नेगेटिव में है.
दस हजार से ज्यादा रेयर तस्वीरें: यह पूछे जाने पर कि पूरे करियर में आपके पास कितनी तस्वीरें होंगी? शैलेंद्र बताते हैं कि नेगेटिव से लेकर अभी तक 10000 तस्वीरें मेरे पास होंगी. शैलेंद्र बताते हैं कि उनको प्रिजर्व करने की आदत है नेगेटिव अगर डैमेज भी हो गया है तो भी उन्होंने उसे रिजर्व करके रखा हुआ है. आर्काइव को डेवलप करना मेरा एडिक्शन है. शैलेंद्र बताते हैं कि जो डॉक्टर केस किए हैं और जिन्होंने केस स्टडी बनाया है यह उनका पर्सनल है. वह दूसरे किसी को देना बहुत मुश्किल है. हालांकि वह यह जरूर कहते हैं कि यह तस्वीरें रिसर्च में नए स्टूडेंट को बहुत मदद कर सकती हैं लेकिन जिन्होंने यह स्टडी की है अगर वह बताएंगे तो वह ज्यादा बेहतर होगा.
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