पटना: कोरोना महामारी ने इंसानी रिश्तों की परीक्षा ली है. ऐसी कई घटनाएं सामने आईं जब संक्रमण के डर से बेटे ने पिता के शव के पास जाने से इनकार कर दिया या परिवार के लोगों ने अपनों के शव को लेने से इनकार कर दिया. भरे पूरे परिवार से आने वाले मरीज के शव का अंतिम संस्कार लावारिशों की तरह हुआ. दुख की इस घड़ी में मानवता का एक रिश्ता है जो अटूट रहा और इसने अपने बल पर हजारों मरीजों की सासों की डोर टूटने से बचाई. यह रिश्ता है नर्स और मरीज का.
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कोरोना महामारी के समय अस्पतालों में नर्सिंग स्टाफ का बेहद महत्वपूर्ण रोल है. मरीजों के सबसे करीब नर्सिंग स्टाफ ही रहते हैं. मरीज को खाना खिलाना हो या दवा सभी काम नर्सिंग स्टाफ ही करते हैं. अस्पताल में कोरोना से किसी मरीज की मौत होती है तो शव के पास सबसे पहले नर्सिंग स्टाफ ही जाते हैं. इन नर्सों के लिए यह काम आसान नहीं होता. ये रोज घर में अपनों को रोता छोड़ दूसरे के आंसू पोछते हैं. हम आपके लिए ऐसी की कुछ नर्सों की कहानी लेकर आए हैं...
रोज प्रार्थना करता हूं कि महामारी खत्म हो
पीएमसीएच के कोरोना वार्ड में ड्यूटी करने वाले अविनाश सिंह ने कहा "मैं इस वार्ड में 6 महीने से ड्यूटी कर रहा हूं. अभी का समय काफी चुनौतीपूर्ण है. मैं रोजाना ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि आपदा की घड़ी जल्द खत्म हो. महामारी के इस समय में काम के दौरान बहुत सारी दिक्कतें आई मगर मैं ड्यूटी करता रहा. पूरी शिद्दत से मरीजों की सेवा की है. इससे पहले अपने पूरे करियर में इस प्रकार का दृश्य नहीं देखा था.
"लगातार 4-5 घंटे पीपीई किट पहनकर ड्यूटी करता हूं. इस दौरान काफी परेशानी होती है. पीपीई किट पहनने के बाद न पानी पी सकते हैं न वॉशरूम जा सकते हैं. मेरी ड्यूटी को लेकर घर वाले काफी परेशान रहते हैं. मगर महामारी का समय चल रहा है. ऐसे में परिवार के सदस्य मेरी ड्यूटी के महत्व को समझते हैं और पूरा सहयोग करते हैं."- अविनाश सिंह, नर्स, पीएमसीएच
काफी दुख देती है मरीज की मौत
पीएमसीएच की महिला नर्स अनिता कुमारी ने कहा "कोरोना के समय लोग कहते हैं कि मरीज से दूरी बनाकर रखें, लेकिन हमलोगों के लिए यह जरूरी है कि इस प्रकार का बर्ताव मरीजों से ना करें. मरीज को सहानुभूति की भी विशेष जरूरत होती है. इसके लिए उसकी करीब से देखभाल करनी पड़ती है. पेशेंट से अच्छे तरीके से बर्ताव करने का ही नतीजा है कि काफी पेशेंट जल्द रिकवर होकर लौट रहे हैं. मरीज जब ठीक होकर घर लौटते हैं और धन्यवाद देते हैं तो काफी सुकून मिलता है."
"मैं पूरे 8 घंटे पीपीई किट पहनकर ड्यूटी करती हूं. मॉर्निंग में फर्स्ट हाफ के बाद जब लंच होता है तब किट उतार देती हूं. लंच के बाद दोबारा किट मिलता है. पीपीई किट पहनकर काम करने में तकलीफ होती है. गर्मी काफी लगती है. मगर काम करते-करते समय बीत जाता है और पता नहीं चलता. अस्पताल में इलाज के दौरान मरीजों की मौत होती है तो बहुत दुख होता है. घर जाने के बाद सभी बातों को भूलकर पॉजिटिव सोच के साथ समय बिताती हूं. खुद को कमजोर महसूस नहीं होने देती."- अनिता कुमारी, नर्स, पीएमसीएच
मरीज के चेहरे की मुस्कान से मिलता है मोटिवेशन
पीएमसीएच में मेल नर्स के हेड जेपी त्यागी ने कहा "इस बार संक्रमण का दर पहली बार से ज्यादा है. एकदम से मरीजों की संख्या बढ़ गई. मैं मानसिक रूप से पहले से तैयार था कि सेकेंड वेब आ रहा है. नर्सिंग स्टाफ को जो कुछ सुविधाएं दी जानी चाहिए सभी सुविधाएं अस्पताल प्रबंधन की ओर से दी गई हैं. जब अस्पताल से मरीज ठीक होकर लौटता है और इस दौरान उसके चेहरे पर जो मुस्कान आती है वह हमलोगों के लिए मोटिवेशन का काम करता है."
"सीमा पर जंग के समय सैनिक की जो भूमिका होती है वही भूमिका आज हमलोगों की है. कोरोना मरीज के साथ उनके परिजन मौजूद नहीं रहते इसके चलते हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है. हमलोग मरीज को मानसिक मजबूती भी देते हैं. साइकोलॉजिकल सपोर्ट मरीज को ठीक होने में सबसे ज्यादा मदद करता है. मुझे परिवार का पूरा सपोर्ट मिल रहा है. ड्यूटी से घर लौटता हूं तो पहले गर्म पानी से स्नान करता हूं. इसके बाद अपनों से मिलता हूं."- जेपी त्यागी, हेड नर्स, पीएमसीएच
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