पटना : 2024 लोकसभा चुनाव के लिए बिहार में बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए का कुनबा स्वरूप लेने लगा है. उपेंद्र कुशवाहा के जदयू से बाहर निकलने और प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल से उनकी मुलाकात, तो दूसरी तरफ वीआईपी के मुकेश सहनी को वाई प्लस सुरक्षा देने की घोषणा एनडीए के बढ़ते कुनबे की ओर इशारा कर रहा है. नीतीश कुमार के NDA से बाहर निकलने के बाद बीजेपी के साथ बिहार में खुलकर चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस ही दिख रहे थे. लेकिन अब एनडीए खेमे में उपेंद्र कुशवाहा का जाना तय हो गया है. मुकेश सहनी भी शामिल होंगे.
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बीजेपी बढ़ा रही एनडीए का कुनबा: बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए बिहार में अब आकार लेने लगा है. पिछले 2 महीने से उपेंद्र कुशवाहा बागी तेवर अपनाए हुए थे, आखिरकार उपेंद्र कुशवाहा ने जदयू से इस्तीफा देकर नई पार्टी 'राष्ट्रीय लोक जनता दल' बना लिया है. ऐसे तो उपेंद्र कुशवाहा का लंबे समय से बीजेपी के साथ नजदीकियां बढ़ने की खबर चर्चा में थी. लेकिन नई पार्टी बनाते ही बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल के नेतृत्व में कई नेता उनके आवास पर पहुंचकर बधाई देते हैं. बंद कमरे में बातचीत करते हैं. उपेंद्र कुशवाहा भी 2024 में प्रधानमंत्री पद के लिये नरेंद्र मोदी के लिए कोई चुनौती नहीं होने की बात करते हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि कुशवाहा का बीजेपी से बिहार में तालमेल होगा.
कुशवाहा और सहनी भी आएंगे साथ: चर्चा यह भी है कि जो 2014 में उपेंद्र कुशवाहा को 3 लोकसभा सीट दी गई थी. काराकाट, सीतामढ़ी और जहानाबाद फिर से उन्हें दी जा सकती है. वहीं पिछले 2 महीने से मुकेश सहनी भी बीजेपी के खिलाफ बोल नहीं रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा के जदयू छोड़ने के बाद मुकेश सहनी को भी केंद्र सरकार ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए वाई प्लस सुरक्षा प्रदान कर दी है. चिराग पासवान पहले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हनुमान बने हुए हैं. उन्हें भी जेड कैटेगरी की सुरक्षा मिली हुई है.
मजबूत होगा जनाधार: बदलते राजनीतिक परिदृश्य पर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ सुरेंद्र किशोर का कहना है कि ''बिहार में महागठबंधन मजबूत स्थिति में लेकिन कानून व्यवस्था यदि गड़बड़ होता गया तो बीजेपी को लाभ होगा. उपेंद्र कुशवाहा के NDA में जाने से बहुत ज्यादा लाभ उन्हें मिलेगा नहीं. क्योंकि महागठबंधन में 7 दलों के पास मजबूत वोट बैंक है. बिहार में ऐसे भविष्य में क्या होगा कोई नहीं कर सकता है.''
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'जंगलराज' के खिलाफ एकजुट कर रही बीजेपी : वरिष्ठ पत्रकार रवि अटल का कहना है कि ''नीतीश कुमार को घेरने के लिए बीजेपी अब उपेंद्र कुशवाहा को अपनी तरफ ला रही है. मुकेश सहनी को भी वाई प्लस कैटेगरी की सुरक्षा देने का मतलब ही यही है. उसे अपने पाले में करेगी.'' बीजेपी प्रवक्ता विनोद शर्मा का कहना है कि ''बीजेपी पार्टी विस्तार को लेकर लगातार काम करते रहती है. बिहार में जंगलराज के खिलाफ जो भी साथ आना चाहेगा, बीजेपी उसे स्वीकार करेगी. नीतीश कुमार ने बीजेपी के सहयोग से ही जंगलराज की समाप्ति की थी. अब फिर से उसी के गोद में बैठ रहे हैं तो उनके पार्टी में विद्रोह हो रहा है. उनका साथ छोड़ना चाह रहे हैं.''
महागठबंधन में खींचतान: लेकिन जदयू मंत्री सुनील कुमार का कहना है कि ''महागठबंधन का जनाधार बहुत बड़ा है. जनाधार भी मजबूती में तब्दील होगा. इसलिए उपेंद्र कुशवाहा के जाने का कोई असर नहीं होने वाला है.'' एनडीए के कुनबे में पहले चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस हीं दिख रहे थे. लेकिन अब उपेंद्र कुशवाहा का तालमेल तय है. वहीं, मुकेश सहनी भी एनडीए के साथ आएंगे ऐसे में 2024 की लड़ाई दिलचस्प होने वाली है. क्योंकि, महागठबंधन में फिलहाल तो 7 दल है, जिसमें आरजेडी, जदयू, कांग्रेस, हम और वामपंथी दलों के तीन दल शामिल हैं. ये तीनों वामदल बाहर से समर्थन कर रहे हैं. लेकिन महागठबंधन के अंदर खींचतान शुरू है.
बीजेपी के पाले में होगा लव-कुश का 'तीर': वहीं, जातिगत समीकरणों की भी बात करें तो बीजेपी इस पर लंबे समय से काम कर रही है. बीजेपी को एकमुश्त अपर कास्ट का वोट मिलता रहा है. अति पिछड़ा में भी बीजेपी अपनी पैठ जमा रही है. इसीलिए प्रदेश अध्यक्ष से लेकर विधानपरिषद में नेता प्रतिपक्ष तक पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग के नेताओं को ही बीजेपी मौका देती रही है. यहां तक कि जब बिहार में सरकार थी तो दो-दो उपमुख्यमंत्री पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग से ही बनाए गए. अब नए सहयोगियों के कारण जहां मल्लाह वोट मुकेश सहनी के माध्यम से बीजेपी अपने पाले में लाने में लगी है. वहीं, उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह के माध्यम से लव-कुश वोट अपने पक्ष में करने की तैयारी में है.
चिराग और चाचा पहले से बीजेपी के संग: चिराग पासवान के माध्यम से पासवान वोट बीजेपी पहले से अपने पाले में करती रही है. बीजेपी अब एक बड़ा कुनबा बनाने में लगी है. इसमें सबसे खास बात है कि अधिकांश छोटे-छोटे दल हैं. वहीं, दूसरी तरफ महागठबंधन के साथ दलों में सातों दलों की अलग-अलग नीति है. भले ही दावा एकजुट महागठबंधन का होता रहा है, लेकिन आरजेडी और कांग्रेस के बीच कोई तालमेल नहीं बन पाया है. वामपंथी दलों के बीच भी एकजुटता नहीं है. सीटों को लेकर भी आने वाले समय में महागठबंधन के अंदर खींचतान बढ़ने की आशंका है. रही सही कसर महागठबंधन के लिए ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा कर मुश्किलें बढ़ाने वाली हैं.
बिहार में यूपी मॉडल से टक्कर: यूपी में मायावती और मुलायम सिंह के समीकरण को तोड़ने के लिए बीजेपी ने यूपी में जो किया वही फार्मूला 2024 में यूपी में अभेद रणनीति अपनाने जा रही है. 2024 लोकसभा चुनाव में 1 साल के करीब समय रह गया है. लेकिन बिहार में चुनाव को लेकर बिगुल फूंका जा चुका है. बदलते राजनीतिक समीकरण से लड़ाई दिलचस्प बनता जा रहा है. अगर बीजेपी का ये चुनावी चक्रव्यूह काम कर गया तो बिहार में भी एक पार्टी का अस्तित्व खतरे में नजर आएगा.
महागठबंधन को झटके पर झटका: एक तरफ नीतीश कुमार बिहार से पूरे देश में विपक्षी एकजुटता का संदेश देने की बात कह रहे हैं. लेकिन उपेंद्र कुशवाहा जिस प्रकार से जदयू से अलग हुए हैं, उनके लिए बिहार में ही एक बड़ा झटका है. मुकेश सहनी का भी बीजेपी के तरफ झुकाव महागठबंधन के लिए दूसरा बड़ा झटका माना जा रहा है. जीतन राम मांझी का बयान भी महागठबंधन के लिए मुश्किल खड़ा करता रहा है. क्योंकि जीतन राम मांझी भी अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनाने की दावेदारी ठोक रहे हैं. ऐसे में साफ दिख रहा है कि बीजेपी छोटे दलों को साध कर महागठबंधन को बड़ी टक्कर देने की तैयारी में है.