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NIDJAM 2023: बिहार के दो लाल ने किया कमाल, 2028 में ओलंपिक खेलने की तैयारी

बिहार के पटना में एथलेटिक्स खोज प्रतियोगिता में बिहार के दो खिलाड़ी ने मेडल लेकर अपने जिला और राज्य का नाम किया. जमुई के अभय पांडेय ने गोल्ड और आशीष कुमार ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया. ETV Bharat से खास बातचीत में दोनों ने कहा कि 2028 का ओलंपिक खेलना है. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Feb 12, 2023, 8:39 PM IST

पटना में एथलेटिक्स खोज प्रतियोगिता

पटनाः हौसला बुलंद हो तो कोई भी राह मुश्किल नहीं है. बिहार जमुई के अभय पांडेय और आशीष कुमार ऐसा ही कुछ कर दिखाया है. जिन्होंने अपने छोटे-छोटे पैरों से दुनिया नापने की तैयारी कर ली है. ट्रॉयथलान में अभय पांडेय गोल्ड और आशीष कुमार ने ने ब्रॉन्ज जीतकर दुनिया का सबसे बड़ा एथलेटिक्स खोज प्रतियोगिता में 18 नेशनल जूनियर अंतर जिला एथलेटिक्स मीट प्रतियोगिता के लिए क्वालीफाई कर लिया है. दोनों खिलाड़ियों ने ईटीवी भारत से बातचीत की. कहा कि 2028 में ओलंपिक खेलने की तैयारी कर रहा है.

यह भी पढ़ेंः NIDJAM 2023: रूढ़िवादी समाज और गरीबी को पछाड़ कर बिहार की बेटियां खेल की दुनिया में बना रहीं पहचान

गांव के ही ग्राउंड में खेलाः अभय पांडेय ने बताया कि एक समय था जब अपने गांव के ही ग्राउंड में रनिंग और कबड्डी खेला करते थे. अभय जमुई जिले के अर्मथ गांव का रहने वाला है. कहा कि 1 साल पहले उन्होंने खेलना शुरू किया .जिला से राज्य स्तर और राज्य स्तर ईस्ट जॉन में अच्छा प्रदर्शन किया, जिसके लिए मुझे नेशनल में जगह मिला. नेशनल में हर संभव प्रयास किया लेकिन मुझे पांचवा रैंक मिला. फिर खेल प्राधिकरण के डीजी रविंद्र शंकरण के द्वारा कैंप लगाकर ट्रेनिंग दिया गया. तब जाकर के मुझे 18वीं जूनियर नेशनल इंटर डिस्ट्रिक एथेलेटिक्स मीट में मौका मिला और इसमें भी हमने अच्छा प्रदर्शन किया. जिसका नतीजा है कि मुझे गोल्ड मेडल प्राप्त हुआ है.

घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहींः मेरे पास सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं है. पिता किसान हैं, घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, जिस कारण से घर की रोजी रोटी के लिए भी चिंता लगी रहती है. कई बार तो हमने घर के माली हालत को देखते हुए अपने दोस्तों के साथ शादी विवाह में कैमरा शूट कर पैसा कमा कमाया. अपने खेल में उस पैसा से सहयोग मिलता है. लेकिन अपनी जिद्द, मेहनत और लगन से अभय ने अपने सपनों को उड़ान दिया है. अभय पांडेय नेशनल जूनियर अंतर जिला एथलेटिक्स मीट प्रतियोगिता में अपना नाम पक्का करा लिया है.

"मेरा सपना है कि 2028 में होने वाले ओलंपिक में अपना नाम दर्ज करा कर बिहार और देश का नाम रोशन करें. खेल प्राधिकरण डीजी रविंद्र शंकरण को मौका देने लिए धन्यवाद है. उन्हीं के बदौलत हम खेल में पहुंच पाए हैं. उनके द्वारा ही इस तरह का आयोजन बिहार में हो रहा है. यह बिहार के लिए बहुत ही गौरव की बात है." -अभय सिंह, गोल्ड विजेता

आशीष कुमार को ब्रॉन्ज मेडलः जमुई जिले के लछुआई गांव के रहने वाले आशीष कुमार के पिता किसान है. आशिष ने ट्रायथलान में अच्छा प्रदर्शन किया पर पर दुख भी है कि और बेहतर नहीं कर सका. आशीष को ब्रॉन्ज मेडल प्राप्त हुआ है. आशीष ने कहा कि बड़े बेटे होने के नाते मेरी जिम्मेवारी घर परिवार के साथ अपनी पहचान बनाना भी है. मुझें किराने दुकान में काम कर परिवार चलाना पड़ता है. पढ़ाई-लिखाई के साथ खेलना पड़ता है. आशीष जिला स्तर से राज्य स्तर तक खेल चुका है. जूनियर नेशनल में अच्छा प्रदर्शन के बाद अंडर-14 बालक आयु वर्ग के ट्रायथलान में ब्रॉन्ज मेडल मिला है.

"खेल प्राधिकरण के डीजी रविंद्र शंकरण को धन्यवाद देता हूं कि मुझे मौका दिया. अब 2028 ओलंपिक की तैयारी के लिए मेहनत करूंगा. मेरी गरीबी खेल में बाधा नहीं डालेगी, इसके लिए मैं और मेहनत करूंगा. घर के माली हालत ठीक नहीं होने के कारण मेरा यही लक्ष्य है कि 2028 में होने वाले ओलंपिक में जीतकर मेडल लेकर नौकरी करू और अपने परिवार का ख्याल रख सकूं." -आशीष कुमार, ब्रॉन्ज मेडल विजेता

पटना में एथलेटिक्स खोज प्रतियोगिता

पटनाः हौसला बुलंद हो तो कोई भी राह मुश्किल नहीं है. बिहार जमुई के अभय पांडेय और आशीष कुमार ऐसा ही कुछ कर दिखाया है. जिन्होंने अपने छोटे-छोटे पैरों से दुनिया नापने की तैयारी कर ली है. ट्रॉयथलान में अभय पांडेय गोल्ड और आशीष कुमार ने ने ब्रॉन्ज जीतकर दुनिया का सबसे बड़ा एथलेटिक्स खोज प्रतियोगिता में 18 नेशनल जूनियर अंतर जिला एथलेटिक्स मीट प्रतियोगिता के लिए क्वालीफाई कर लिया है. दोनों खिलाड़ियों ने ईटीवी भारत से बातचीत की. कहा कि 2028 में ओलंपिक खेलने की तैयारी कर रहा है.

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गांव के ही ग्राउंड में खेलाः अभय पांडेय ने बताया कि एक समय था जब अपने गांव के ही ग्राउंड में रनिंग और कबड्डी खेला करते थे. अभय जमुई जिले के अर्मथ गांव का रहने वाला है. कहा कि 1 साल पहले उन्होंने खेलना शुरू किया .जिला से राज्य स्तर और राज्य स्तर ईस्ट जॉन में अच्छा प्रदर्शन किया, जिसके लिए मुझे नेशनल में जगह मिला. नेशनल में हर संभव प्रयास किया लेकिन मुझे पांचवा रैंक मिला. फिर खेल प्राधिकरण के डीजी रविंद्र शंकरण के द्वारा कैंप लगाकर ट्रेनिंग दिया गया. तब जाकर के मुझे 18वीं जूनियर नेशनल इंटर डिस्ट्रिक एथेलेटिक्स मीट में मौका मिला और इसमें भी हमने अच्छा प्रदर्शन किया. जिसका नतीजा है कि मुझे गोल्ड मेडल प्राप्त हुआ है.

घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहींः मेरे पास सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं है. पिता किसान हैं, घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, जिस कारण से घर की रोजी रोटी के लिए भी चिंता लगी रहती है. कई बार तो हमने घर के माली हालत को देखते हुए अपने दोस्तों के साथ शादी विवाह में कैमरा शूट कर पैसा कमा कमाया. अपने खेल में उस पैसा से सहयोग मिलता है. लेकिन अपनी जिद्द, मेहनत और लगन से अभय ने अपने सपनों को उड़ान दिया है. अभय पांडेय नेशनल जूनियर अंतर जिला एथलेटिक्स मीट प्रतियोगिता में अपना नाम पक्का करा लिया है.

"मेरा सपना है कि 2028 में होने वाले ओलंपिक में अपना नाम दर्ज करा कर बिहार और देश का नाम रोशन करें. खेल प्राधिकरण डीजी रविंद्र शंकरण को मौका देने लिए धन्यवाद है. उन्हीं के बदौलत हम खेल में पहुंच पाए हैं. उनके द्वारा ही इस तरह का आयोजन बिहार में हो रहा है. यह बिहार के लिए बहुत ही गौरव की बात है." -अभय सिंह, गोल्ड विजेता

आशीष कुमार को ब्रॉन्ज मेडलः जमुई जिले के लछुआई गांव के रहने वाले आशीष कुमार के पिता किसान है. आशिष ने ट्रायथलान में अच्छा प्रदर्शन किया पर पर दुख भी है कि और बेहतर नहीं कर सका. आशीष को ब्रॉन्ज मेडल प्राप्त हुआ है. आशीष ने कहा कि बड़े बेटे होने के नाते मेरी जिम्मेवारी घर परिवार के साथ अपनी पहचान बनाना भी है. मुझें किराने दुकान में काम कर परिवार चलाना पड़ता है. पढ़ाई-लिखाई के साथ खेलना पड़ता है. आशीष जिला स्तर से राज्य स्तर तक खेल चुका है. जूनियर नेशनल में अच्छा प्रदर्शन के बाद अंडर-14 बालक आयु वर्ग के ट्रायथलान में ब्रॉन्ज मेडल मिला है.

"खेल प्राधिकरण के डीजी रविंद्र शंकरण को धन्यवाद देता हूं कि मुझे मौका दिया. अब 2028 ओलंपिक की तैयारी के लिए मेहनत करूंगा. मेरी गरीबी खेल में बाधा नहीं डालेगी, इसके लिए मैं और मेहनत करूंगा. घर के माली हालत ठीक नहीं होने के कारण मेरा यही लक्ष्य है कि 2028 में होने वाले ओलंपिक में जीतकर मेडल लेकर नौकरी करू और अपने परिवार का ख्याल रख सकूं." -आशीष कुमार, ब्रॉन्ज मेडल विजेता

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