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बिहार में ड्राइविंग सीट चाहता है RJD, लेकिन बगैर कांग्रेस के सहयोग के सफलता आसान नहीं!

बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी सबसे बड़े क्षेत्रीय दल के नाते ड्राइविंग सीट चाहती है. कुछ उसी तरह जैसे कि पश्चिम बंगाल में टीएमसी और यूपी में सपा है. यही वजह है कि वर्ष 2021 का उपचुनाव हो या 2022 का बिहार विधान परिषद चुनाव (Bihar Legislative Council Election), राष्ट्रीय जनता दल ने कांग्रेस को पूरी तरह दरकिनार कर दिया लेकिन यह भी एक बड़ी सच्चाई है कि बगैर कांग्रेस के आरजेडी अब तक बड़ी सफलता हासिल नहीं कर पाई है. पढ़ें खास रिपोर्ट...

आरजेडी बिहार में ड्राइविंग सीट चाहता है
आरजेडी बिहार में ड्राइविंग सीट चाहता है
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Published : Feb 14, 2022, 5:23 PM IST

पटना: वर्ष 2021 में 2 सीटों पर हुए उपचुनाव के दौरान बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के बीच जो रिश्ते बिगड़े, वह लगातार बिगड़ते ही चले गए. इसके पीछे की वजह तो जगजाहिर है कि आरजेडी बिहार में ड्राइविंग सीट चाहता है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Leader of Opposition Tejashwi Yadav) का स्पष्ट कहना है कि जिस राज्य में क्षेत्रीय दल मजबूत स्थिति में हो कांग्रेस को उन्हें सपोर्ट करना चाहिए. यही वजह है कि चाहे पिछले साल का उपचुनाव हो या इस वर्ष होने वाला बिहार विधान परिषद चुनाव (Bihar Legislative Council Election) हो. कांग्रेस के बगैर ही आरजेडी मैदान में है.

ये भी पढ़ें: कांग्रेस को लगातार दरकिनार कर रहा RJD, क्या बिहार में अकेले चलने की है तैयारी?

एमएलसी चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस में गठबंधन (Alliance Between RJD and Congress) नहीं हो पाने पर राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश प्रवक्ता एजाज अहमद ने कहा कि हम कांग्रेस को दरकिनार नहीं कर रहे, बल्कि कांग्रेस ही जमीनी हकीकत को समझने से इंकार कर रही है. उन्होंने कहा कि जब आरजेडी बिहार में मजबूत स्थिति में है तो कांग्रेस को तेजस्वी यादव का समर्थन करना चाहिए, हम बस इतना ही चाहते हैं.

हालांकि कांग्रेस नेता आरजेडी के इस ऑफर को सिरे से नकारते हैं. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेश राठौड़ ने कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव में सभी 40 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे. आरजेडी क्या सभी 40 सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ सकती है, जाहिर तौर पर वह ऐसा नहीं करेगी तो इस चुनाव में भी वे इस तरह की शर्त क्यों रखना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है. लिहाजा ऐसा संभव नहीं कि कोई राष्ट्रीय पार्टी किसी क्षेत्रीय दल के लिए अपनी सारी सीटें छोड़ दे या कोई क्षेत्रीय दल किसी राष्ट्रीय पार्टी के लिए अपनी सारी चीजें कुर्बान कर दे. उन्होंने कहा कि आरजेडी जब-जब कांग्रेस के साथ चली है तो उसका ड्राइव स्मूथ रहा है लेकिन जब भी अकेले चले हैं तो गड्ढे में गिरे हैं.

वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि लालू यादव हमेशा यह कहते रहे हैं कि वे धर्मनिरपेक्ष दलों को एक साथ लेकर चलना चाहते हैं लेकिन कांग्रेस के साथ जो रणनीति बिहार में आरजेडी अपना रहा है, वह कहीं से भी लालू के कथन से मेल नहीं खाता. वे कहते हैं कि तेजस्वी की रणनीति कहीं न कहीं भविष्य में कांग्रेस के साथ उनके रिश्ते को कमजोर कर रही है और एकजुट विपक्ष का जो एक स्ट्रॉन्ग मैसेज पब्लिक में जाना चाहिए, वह भी नहीं जा रहा है. जिसका खामियाजा आरजेडी और कांग्रेस दोनों को भुगतना पड़ सकता है.

ये भी पढ़ें: RJD की सूची पर कांग्रेस का छलका दर्द तो BJP ने कसा तंज- 'आपके पास ना नेता, ना कार्यकर्ता'

दरअसल, पिछले कुछ वर्षों के चुनाव नतीजों पर गौर करें तो चाहे वर्ष 2015 का चुनाव हो या वर्ष 2020 का चुनाव, नतीजे इस बात की पुष्टि करते हैं कि आरजेडी और कांग्रेस ने मिलकर जब भी चुनाव लड़ा, नतीजे बेहतर रहे. कांग्रेस नेता राजेश राठौड़ भी कहते हैं कि वर्ष 2010 विधानसभा चुनाव में जब दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी तो आरजेडी महज 22 सीटों पर सिमट गया था. पिछले वर्ष जब तारापुर और कुशेश्वरस्थान में उपचुनाव हुए और दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ीं तो भी नतीजे उम्मीद के विपरीत रहे. इस वर्ष ना सिर्फ विधान परिषद के स्थानीय निकाय की 24 सीटों पर चुनाव होंगे बल्कि बिहार से राज्यसभा की 5 सीटों पर भी चुनाव होने वाले हैं. इसके अलावा भी कई चुनाव हैं, जिसमें आरजेडी और कांग्रेस का अलग रहना इतना आसान नहीं है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले वक्त में दोनों दल किस तरह की रणनीति अपनाते हैं.

ये भी पढ़ें: BJP का कांग्रेस को तंज भरा संदेशः 'RJD कर रही है बेइज्जत, अलग होकर कायम करें अपना वजूद'

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पटना: वर्ष 2021 में 2 सीटों पर हुए उपचुनाव के दौरान बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के बीच जो रिश्ते बिगड़े, वह लगातार बिगड़ते ही चले गए. इसके पीछे की वजह तो जगजाहिर है कि आरजेडी बिहार में ड्राइविंग सीट चाहता है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Leader of Opposition Tejashwi Yadav) का स्पष्ट कहना है कि जिस राज्य में क्षेत्रीय दल मजबूत स्थिति में हो कांग्रेस को उन्हें सपोर्ट करना चाहिए. यही वजह है कि चाहे पिछले साल का उपचुनाव हो या इस वर्ष होने वाला बिहार विधान परिषद चुनाव (Bihar Legislative Council Election) हो. कांग्रेस के बगैर ही आरजेडी मैदान में है.

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एमएलसी चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस में गठबंधन (Alliance Between RJD and Congress) नहीं हो पाने पर राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश प्रवक्ता एजाज अहमद ने कहा कि हम कांग्रेस को दरकिनार नहीं कर रहे, बल्कि कांग्रेस ही जमीनी हकीकत को समझने से इंकार कर रही है. उन्होंने कहा कि जब आरजेडी बिहार में मजबूत स्थिति में है तो कांग्रेस को तेजस्वी यादव का समर्थन करना चाहिए, हम बस इतना ही चाहते हैं.

हालांकि कांग्रेस नेता आरजेडी के इस ऑफर को सिरे से नकारते हैं. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेश राठौड़ ने कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव में सभी 40 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे. आरजेडी क्या सभी 40 सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ सकती है, जाहिर तौर पर वह ऐसा नहीं करेगी तो इस चुनाव में भी वे इस तरह की शर्त क्यों रखना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है. लिहाजा ऐसा संभव नहीं कि कोई राष्ट्रीय पार्टी किसी क्षेत्रीय दल के लिए अपनी सारी सीटें छोड़ दे या कोई क्षेत्रीय दल किसी राष्ट्रीय पार्टी के लिए अपनी सारी चीजें कुर्बान कर दे. उन्होंने कहा कि आरजेडी जब-जब कांग्रेस के साथ चली है तो उसका ड्राइव स्मूथ रहा है लेकिन जब भी अकेले चले हैं तो गड्ढे में गिरे हैं.

वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि लालू यादव हमेशा यह कहते रहे हैं कि वे धर्मनिरपेक्ष दलों को एक साथ लेकर चलना चाहते हैं लेकिन कांग्रेस के साथ जो रणनीति बिहार में आरजेडी अपना रहा है, वह कहीं से भी लालू के कथन से मेल नहीं खाता. वे कहते हैं कि तेजस्वी की रणनीति कहीं न कहीं भविष्य में कांग्रेस के साथ उनके रिश्ते को कमजोर कर रही है और एकजुट विपक्ष का जो एक स्ट्रॉन्ग मैसेज पब्लिक में जाना चाहिए, वह भी नहीं जा रहा है. जिसका खामियाजा आरजेडी और कांग्रेस दोनों को भुगतना पड़ सकता है.

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दरअसल, पिछले कुछ वर्षों के चुनाव नतीजों पर गौर करें तो चाहे वर्ष 2015 का चुनाव हो या वर्ष 2020 का चुनाव, नतीजे इस बात की पुष्टि करते हैं कि आरजेडी और कांग्रेस ने मिलकर जब भी चुनाव लड़ा, नतीजे बेहतर रहे. कांग्रेस नेता राजेश राठौड़ भी कहते हैं कि वर्ष 2010 विधानसभा चुनाव में जब दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी तो आरजेडी महज 22 सीटों पर सिमट गया था. पिछले वर्ष जब तारापुर और कुशेश्वरस्थान में उपचुनाव हुए और दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ीं तो भी नतीजे उम्मीद के विपरीत रहे. इस वर्ष ना सिर्फ विधान परिषद के स्थानीय निकाय की 24 सीटों पर चुनाव होंगे बल्कि बिहार से राज्यसभा की 5 सीटों पर भी चुनाव होने वाले हैं. इसके अलावा भी कई चुनाव हैं, जिसमें आरजेडी और कांग्रेस का अलग रहना इतना आसान नहीं है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले वक्त में दोनों दल किस तरह की रणनीति अपनाते हैं.

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