पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव की तस्वीर आरजेडी ने इस्तेमाल नहीं किया. चुनाव प्रसार हर जगह तेजस्वी के नाम पर ही चुनाव लड़ा गया, अब रिजल्ट आने के बाद पार्टी की बैठक में लालू और राबड़ी फिर से दिखने लगे हैं और इसके बाद एक चर्चा भी होने लगी है, क्या लालू आरजेडी के लिए महत्वपूर्ण आज भी है?
वहीं, विपक्ष के लिए भी लालू कम महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि जब लालू के चेहरे का इस्तेमाल नहीं किया गया. तब भी विपक्ष हमला कर रहा था. यही नहीं, 15 साल बनाम 15 साल में लालू के शासन का ही एनडीए तुलना कर लोगों को भय दिखा रहा था.
'खत्म नहीं हो सकती प्रासंगिकता'
वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्रा का कहना है कि लालू के बारे में यह कहावत खूब चर्चा में रहा कि 'जब तक समोसे में रहेगा लालू, तब बिहार में रहेगा लालू'. अशोक मिश्रा का यह भी कहना है कि लालू की प्रासंगिकता कभी खत्म नहीं होने वाली है और लालू प्रसाद के चाहने वाले हर वर्ग में है. भले ही उन्हें वोट ना करें.
जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन का कहना है कि लालू प्रसाद यादव को प्रचंड जनादेश मिला था. लेकिन भ्रष्टाचार और परिवारवाद के कारण उन्होंने जनता के बीच अपनी लोकप्रियता खो दी है. विधानसभा चुनाव में तो उनकी पार्टी ने उनके नाम पर चुनाव लड़ने की हिम्मत तक नहीं जुटा सकी.
'लालू को भुलाने का सवाल नहीं'
आरजेडी के प्रवक्ता शक्ति यादव का कहना है कि लालू प्रसाद यादव एक इंस्टिट्यूशन है. उन्हें भुलाने का सवाल ही नहीं है, लेकिन तेजस्वी यादव हमारे नेता हैं और अब उन्हीं के चेहरे पर चुनाव लड़े हैं और आगे भी लड़ेंगे.
कांग्रेस प्रवक्ता राजेश राठौड़ का कहना है कि लालू प्रसाद के नाम पर विपक्ष पिछले 25 सालों से राजनीति कर रहा है. इसलिए लालू प्रसाद यादव की बिहार में महत्व कम हो ही नहीं सकता है. लालू प्रसाद यादव भारतीय राजनीति के चुनिंदा नेताओं में से एक हैं.
राजनीतिक विशेषज्ञ अजय झा का कहना है बिहार में लालू प्रसाद यादव के बिना राजनीति अभी असंभव दिख रहा है. लेकिन लालू के साथ भी राजनीति अब बहुत मुश्किल है.
'बिहार की राजनीति के केंद्र में लालू'
बिहार में लालू पिछले तीन दशक से सत्ता के केंद्र में या फिर विरोध में रहे हैं और आने वाले कई साल उनके नाम पर ही सियासत होती रहेगी. यह भी तय दिख रहा है. लालू के चाहने वाले कम नहीं है. तेजस्वी यादव ने पार्टी की कमान जरूर संभाल ली है. लेकिन लालू को पूरी तरह छोड़ने की हिम्मत वह भी नहीं जुटा रहे हैं, तो वही विपक्ष लालू राज का डर दिखाकर आज भी बिहार की सत्ता पर काबिज है.