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गयाजी से पहले क्यों पुनपुन में पिंडदान करना जरूरी है, ब्रह्माजी से जुड़ी किस घटना के बाद पड़ा ये नाम?

माना जाता है कि जबतक पुनपुन नदी (Punpun River) घाट पर पहला पिंडदान नहीं किया जाता है, तबतक पिंडदान अधूरा माना जाता है. पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पुनपुन में पितरों के पिंडदान की कथा बहुत पुरानी है. इसका महत्व ब्रह्मदेव से भी जुड़ा हुआ है.

पुनपुन में पिंडदान
पुनपुन में पिंडदान
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Published : Sep 26, 2021, 6:09 PM IST

पटना: आदि गंगा के नाम से चर्चित पुनपुन नदी घाट पर रविवार से पितृपक्ष (Pitri Paksh) की शुरुआत हो चुकी है. सुबह से ही सैकड़ों की संख्या मे पिंडदानी अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान (Pind Daan) का पहला तर्पण पुनपुन में कर रहे हैं. उसके बाद मोक्ष की धरती गया की ओर प्रस्थान करते हैं. ऐसी मान्यता है कि पुनपुन नदी को जाह्नवी नदी भी कहा गया है. यानी कि यह गंगा नदी से भी प्राचीन नदी है.

ये भी पढ़ें: पितृपक्ष 2021: पुनपुन मे पिंडदान हुआ प्रारंभ, मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव

इस नदी के उद्गम के बारे में कहा जाता है महर्षि चैवण्य ने सृष्टि के रचियता बह्मा से पूछा कि भगवान मृत्युलोक के लोगों की मृत्यु के पश्चात उसे मोक्ष कैसै प्राप्ति होगी. तब उन्होंने महर्षि चैवण्य को तपस्या का मार्ग बतलाया.

देखें रिपोर्ट

महर्षि चैवण्य अपने सभी सप्त ऋषियों के साथ जंगल मे घोर तपस्या में लीन होकर मोक्ष का मार्ग ढूंढने लगे. घोर तपस्या के बाद ब्रह्मदेव प्रकट हुए और कहा कि आपलोगों की तपस्या सफल हुई, लेकिन ऋषियों को समझ में नहीं आया कि कुछ मिला नहीं और ब्रहमदेव कह रहे हैं कि तपस्या सफल हुई. उसके बाद सभी ऋषि ब्रह्मदेव के चरण धोने के लिए जल खोजने लगे, लेकिन जंगल मे जल नहीं मिलने पर अपने-अपने पसीने को कमंडल में जमा करना शुरू कर दिया.

ये भी पढ़ें: गया की 'पंडा पोथी' में दर्ज है आपके पूर्वजों का करीब 300 साल पुराना इतिहास

बार-बार कमंडल में पसीना भरने के बाद वह अपने आप गिर जाता था. ऐसे में ब्रहमदेव के मुख से निकला पुनः पुनः. ऐसा क्यों हो रहा है. फिर उसी समय वहां जल स्त्रोत का उदगम हुआ, जो पुनपुन नदी कहलाया. ब्रह्मदेव ने कहा कि जो भी प्राणी इस पुनपुन नदी तट पर अपने पितरों का पिंड दान करेगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी. ऐसी मान्यता है कि पुनपुन नदी मे पिंड का पहला तर्पण के लिए भगवान श्रीराम ने भी पिंड दान किया था.

पुनपुन पंडा समिति के अध्यक्ष सुदामा पांडेय कहते हैं कि आदि गंगा के नाम से चर्चित पुनपुन नदी पर ही पहला पिंडदान किया जाता है. उसके बाद गया के फल्गु नदी तट पर पिंड दान का पूरा विधि-विधान संपन्न होता है. अगर पुनपुन में पहला पिंड तर्पण नहीं किया तो पिंडदान अधूरा माना जाता है.

पटना: आदि गंगा के नाम से चर्चित पुनपुन नदी घाट पर रविवार से पितृपक्ष (Pitri Paksh) की शुरुआत हो चुकी है. सुबह से ही सैकड़ों की संख्या मे पिंडदानी अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान (Pind Daan) का पहला तर्पण पुनपुन में कर रहे हैं. उसके बाद मोक्ष की धरती गया की ओर प्रस्थान करते हैं. ऐसी मान्यता है कि पुनपुन नदी को जाह्नवी नदी भी कहा गया है. यानी कि यह गंगा नदी से भी प्राचीन नदी है.

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इस नदी के उद्गम के बारे में कहा जाता है महर्षि चैवण्य ने सृष्टि के रचियता बह्मा से पूछा कि भगवान मृत्युलोक के लोगों की मृत्यु के पश्चात उसे मोक्ष कैसै प्राप्ति होगी. तब उन्होंने महर्षि चैवण्य को तपस्या का मार्ग बतलाया.

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महर्षि चैवण्य अपने सभी सप्त ऋषियों के साथ जंगल मे घोर तपस्या में लीन होकर मोक्ष का मार्ग ढूंढने लगे. घोर तपस्या के बाद ब्रह्मदेव प्रकट हुए और कहा कि आपलोगों की तपस्या सफल हुई, लेकिन ऋषियों को समझ में नहीं आया कि कुछ मिला नहीं और ब्रहमदेव कह रहे हैं कि तपस्या सफल हुई. उसके बाद सभी ऋषि ब्रह्मदेव के चरण धोने के लिए जल खोजने लगे, लेकिन जंगल मे जल नहीं मिलने पर अपने-अपने पसीने को कमंडल में जमा करना शुरू कर दिया.

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बार-बार कमंडल में पसीना भरने के बाद वह अपने आप गिर जाता था. ऐसे में ब्रहमदेव के मुख से निकला पुनः पुनः. ऐसा क्यों हो रहा है. फिर उसी समय वहां जल स्त्रोत का उदगम हुआ, जो पुनपुन नदी कहलाया. ब्रह्मदेव ने कहा कि जो भी प्राणी इस पुनपुन नदी तट पर अपने पितरों का पिंड दान करेगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी. ऐसी मान्यता है कि पुनपुन नदी मे पिंड का पहला तर्पण के लिए भगवान श्रीराम ने भी पिंड दान किया था.

पुनपुन पंडा समिति के अध्यक्ष सुदामा पांडेय कहते हैं कि आदि गंगा के नाम से चर्चित पुनपुन नदी पर ही पहला पिंडदान किया जाता है. उसके बाद गया के फल्गु नदी तट पर पिंड दान का पूरा विधि-विधान संपन्न होता है. अगर पुनपुन में पहला पिंड तर्पण नहीं किया तो पिंडदान अधूरा माना जाता है.

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