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पटना हाई कोर्ट में मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट कानून बनाने पर सुनवाई टली, दो हफ्ते बाद आएगा अगला फैसला

Bihar Mental Health Act Law: बिहार में लगभग 12 करोड़ आबादी होने के बावजूद मानसिक स्वास्थ्य के लिए बुनियादी सुविधाएं नहीं के बराबर है. ऐसे में मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट कानून बनाने को लेकर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है. जो अगले दो हफ्ते के लिए टल गई है.

Patna High Court Etv Bharat
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jan 12, 2024, 4:24 PM IST

पटना: बिहार राज्य में मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं से सम्बंधित मामलें पर पटना हाइकोर्ट में चल रही सुनवाई अब दो सप्ताह बाद की जायेगी. बता दें कि चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ आकांक्षा मालवीय की जनहित याचिका पर यह सुनवाई की गई थी.

मेन्टल हेल्थ रिव्यू बोर्ड के गठन का आदेश: दरअसल, पिछली बार कोर्ट ने इस मामलें पर सुनवाई करते हुए राज्य में मेन्टल हेल्थ रिव्यू बोर्ड के गठन के सम्बन्ध में रजिस्ट्रार जनरल को आदेश दिया था. वहीं, पटना हाईकोर्ट को प्रगति रिपोर्ट अगली सुनवाई में देने को कहा था. कोर्ट ने पूरे राज्य में प्रमंडल स्तर पर बोर्ड गठित करने को कहा था.

नियमावली में सुधार करने का मिला था निर्देश: वहीं, पिछली सुनवाई में कोर्ट को राज्य सरकार की ओर से बताया गया था कि नयी नियमावली बना ली गयी है. कोर्ट ने राज्य सरकार को हलफ़नामा दायर करने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने पहले की सुनवाई में इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इसमें सुधारने के उपाय पर सलाह देने को कहा था. ऐसे में याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया था कि कोर्ट ने जो भी आदेश दिया था, उस पर राज्य सरकार के द्वारा आधा अधूरा ही कार्य किया गया है.

मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट के तहत कानून बने: याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने बताया था कि नेशनल मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम ही के अंतर्गत राज्य के 38 जिलों में डिस्ट्रिक्ट मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम चल रहा हैं. लेकिन इसमें स्टाफ की संख्या नाकाफी ही है. पूर्व की सुनवाई में उन्होंने बताया था कि राज्य सरकार का दायित्व है कि वह मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट के तहत कानून बनाए. साथ ही इसके लिए मूलभूत सुविधाएं और फंड उपलब्ध कराए.

"सेन्टर ऑफ एक्सलेंस के तहत हर राज्य में मानसिक रोग के अध्ययन और ईलाज के लिए कॉलेज है. लेकिन बिहार ही एक ऐसा राज्य हैं, जहां मानसिक रोग के अध्ययन और ईलाज के लिए कोई कालेज नहीं है. बिहार की आबादी लगभग बारह करोड़ हैं. उसकी तुलना में राज्य में मानसिक स्वास्थ्य के लिए बुनियादी सुविधाएँ नहीं के बराबर है. सरकार को इस पर काम करना चाहिए." - आकांक्षा मालवीय, याचिकाकर्ता की अधिवक्ता

इसे भी पढ़े- पटना हाईकोर्ट ने दरभंगा आयुर्वेदिक कालेज से अतिक्रमण नहीं हटाने पर जताई नाराजगी, 15 को होगी सुनवाई

पटना: बिहार राज्य में मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं से सम्बंधित मामलें पर पटना हाइकोर्ट में चल रही सुनवाई अब दो सप्ताह बाद की जायेगी. बता दें कि चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ आकांक्षा मालवीय की जनहित याचिका पर यह सुनवाई की गई थी.

मेन्टल हेल्थ रिव्यू बोर्ड के गठन का आदेश: दरअसल, पिछली बार कोर्ट ने इस मामलें पर सुनवाई करते हुए राज्य में मेन्टल हेल्थ रिव्यू बोर्ड के गठन के सम्बन्ध में रजिस्ट्रार जनरल को आदेश दिया था. वहीं, पटना हाईकोर्ट को प्रगति रिपोर्ट अगली सुनवाई में देने को कहा था. कोर्ट ने पूरे राज्य में प्रमंडल स्तर पर बोर्ड गठित करने को कहा था.

नियमावली में सुधार करने का मिला था निर्देश: वहीं, पिछली सुनवाई में कोर्ट को राज्य सरकार की ओर से बताया गया था कि नयी नियमावली बना ली गयी है. कोर्ट ने राज्य सरकार को हलफ़नामा दायर करने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने पहले की सुनवाई में इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इसमें सुधारने के उपाय पर सलाह देने को कहा था. ऐसे में याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया था कि कोर्ट ने जो भी आदेश दिया था, उस पर राज्य सरकार के द्वारा आधा अधूरा ही कार्य किया गया है.

मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट के तहत कानून बने: याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने बताया था कि नेशनल मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम ही के अंतर्गत राज्य के 38 जिलों में डिस्ट्रिक्ट मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम चल रहा हैं. लेकिन इसमें स्टाफ की संख्या नाकाफी ही है. पूर्व की सुनवाई में उन्होंने बताया था कि राज्य सरकार का दायित्व है कि वह मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट के तहत कानून बनाए. साथ ही इसके लिए मूलभूत सुविधाएं और फंड उपलब्ध कराए.

"सेन्टर ऑफ एक्सलेंस के तहत हर राज्य में मानसिक रोग के अध्ययन और ईलाज के लिए कॉलेज है. लेकिन बिहार ही एक ऐसा राज्य हैं, जहां मानसिक रोग के अध्ययन और ईलाज के लिए कोई कालेज नहीं है. बिहार की आबादी लगभग बारह करोड़ हैं. उसकी तुलना में राज्य में मानसिक स्वास्थ्य के लिए बुनियादी सुविधाएँ नहीं के बराबर है. सरकार को इस पर काम करना चाहिए." - आकांक्षा मालवीय, याचिकाकर्ता की अधिवक्ता

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