पटना: बिहार एमएलसी चुनाव (Bihar MLC Election) में 24 सीटों के लिए 187 उम्मीदवारों ने नामांकन किया है. सबसे ज्यादा सहरसा, मधेपुरा, सुपौल निर्वाचन क्षेत्र से 14 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. जबकि भोजपुर और बक्सर निर्वाचन क्षेत्र से सबसे कम 2 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं. पटना से 6, नालंदा से 5 उम्मीदवार मैदान में हैं. विधान परिषद चुनाव इसलिए भी दिलचस्प बनता जा रहा है क्योंकि एक तरफ एनडीए में मुकेश सहनी ने बीजेपी के खिलाफ कई सीटों पर उम्मीदवार उतार दिया है. वहीं, दूसरी तरफ आरजेडी का कांग्रेस से तालमेल नहीं हुआ है. कांग्रेस ने भी कई सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. ऐसे में दोनों खेमे में फ्रेंडली फाइट (Friendly fight in NDA and Mahagathbandhan camps) भी होगी. आरजेडी के साथ बीजेपी और जेडीयू के बागियों ने भी दलों की मुश्किल बढ़ा दी है.
24 एमएलसी सीटों का चुनाव दिलचस्प: ऐसे में 24 सीटों का चुनाव दिलचस्प बनता जा रहा है. जहां आरजेडी के पूर्व विधायक गुलाब यादव ने मधुबनी से अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में उतार दिया है. पार्टी ने गुलाब यादव को निष्कासित भी कर दिया है, वहीं सारण से बीजेपी के पूर्व विधान पार्षद सच्चिदानंद राय ने भी पार्टी के खिलाफ जाकर नामांकन कर दिया है. कई निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में है. जिसका समर्थन पार्टी नेताओं की तरफ से हो रहा है. सिवान में भी जदयू के पूर्व विधायक एक निर्दलीय के समर्थन में प्रचार कर रहे हैं.
''कांग्रेस क्या कर रही है, क्या नहीं कर रही है, इससे हमको कोई मतलब नहीं है. मतलब ये है कि हमारे वोटर्स क्या कर रहे हैं. हमारे वोटर्स हमारे साथ खड़े हैं. हमारे सपोटर्स हमारे साथ खड़े हैं. बिहार की जनता डबल इंजन की सरकार से उब चुकी है. खास तौर से पंचायत व्यवस्था में वोटर्स हैं उनको पता है कि पंचायत राज व्यवस्था को पंगु बनाने का काम इस डबल इंजर की सरकार ने किया है. बागियों और सहयोगी दलों के उम्मीदवार का कोई असर नहीं पड़ने वाला है. विधान परिषद चुनाव में जो वोटर हैं, वह हमारे नेता के साथ हैं.''- एजाज अहमद, प्रवक्ता, आरजेडी
''गठबंधन धर्म का पालन होना चाहिए. गठबंधन के सभी प्रत्याशियों को विजयी बनाने के लिए सभी सहयोगियों को लगना चाहिए. लेकिन, कुछ लोगों ने अलग से प्रत्याशी दिया है, ये उचित नहीं है. इसके बाद भी हम लोगों का पूरा विश्वास है कि वोटर्स इस बात का ख्याल रखेंगे कि गठबंधन के असली उम्मीदवार कौन है. मुकेश सहनी को गठबंधन धर्म का पालन करना चाहिए. बिहार में मुकेश सहनी अपनी सीट भी नहीं जीत सके. यूपी में तो इनके उम्मीदवार की जमानत भी नहीं बची.''- विनोद शर्मा, प्रवक्ता, बीजेपी
''नेतृत्व के संज्ञान में सारी बातें हैं और इस चुनाव में पंचायत जनप्रतिनिधि हमारे नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री लगातार विकास के कार्य बिहार में कर रहे हैं. पंचायती राज व्यवस्था के लिए भी उन्होंने जो किया है किसी से छिपा नहीं है और अभी दो धड़ा काम कर रहा है. एक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार विकास में लगे हुए हैं, तो दूसरा धड़ा विनाश पुरुष और उनके सुपुत्र तेजस्वी यादव का है, जिन्हें विकास से कोई लेना-देना नहीं है. इन लोगों के पास कोई मुद्दा नहीं है. बागियों का कोई असर नहीं पड़ने वाला है और लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने का हक है.''- उमेश कुशवाहा, प्रदेश अध्यक्ष, जदयू
बता दें कि 24 सीटों के लिए एनडीए में जदयू, बीजेपी और पशुपति पारस लोजपा गुट के बीच समझौता हुआ है. बीजेपी जहां 12 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और सभी सीटों के लिए प्रभारी और पर्यवेक्षक नियुक्त कर दिया है, तो जदयू 11 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और जदयू ने भी सभी सीटों के लिए प्रभारी और पर्यवेक्षक की नियुक्ति कर दी है. मंत्रियों को भी इसमें लगाया गया है क्योंकि यह 24 सीट का चुनाव महत्वपूर्ण है.
विधान परिषद में JDU-BJP का दबदबा: बिहार विधान परिषद में फिलहाल बीजेपी और जेडीयू का दबदबा है. आरजेडी के विधान पार्षदों की संख्या केवल 5 है. ऐसे में आरजेडी के लिए 24 सीट महत्वपूर्ण है. आरजेडी की तरफ से पूरी ताकत लगाई जा रही है, क्योंकि इन्हीं सीटों के आधार पर विधान परिषद में वो अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है. ऐसे 24 सीटों में से अधिकांश बीजेपी और जदयू की ही हैं, इसलिए दोनों दल इसे खोना नहीं चाहते हैं. उसके लिए हर संभव कोशिश दोनों दलों की ओर से हो रही है, लेकिन बागियों के मैदान में आने के कारण मुश्किलें जरूर बढ़ गई है. कांग्रेस और वीआईपी की तरफ से उम्मीदवार उतारे जाने के बाद चुनाव दिलचस्प बन गया है.
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