पटना: बिहार में ब्लैक फंगस (Black Fungus) के मामले बढ़ रहे हैं. मरीजों की संख्या 400 से अधिक हो गई है. सरकारी अस्पतालों में 260 मरीज भर्ती हैं. वहीं, 140 मरीज प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं.
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सरकारी अस्पतालों में ब्लैक फंगस के रोगी को दी जाने वाली दवा और इंजेक्शन सरकार उपलब्ध करा रही है. इलाज भी निशुल्क हो रहा है. मगर प्राइवेट अस्पतालों में मरीज के लिए दवा खरीदने में परिजनों की हालत पस्त हो रही है.
7-10 हजार में मिलता है एक वायल इंजेक्शन
ब्लैक फंगस (Black Fungus) के मरीजों को दिया जाने वाला इंजेक्शन लाइपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी (Liposomal Amphotericin B) का एक वायल 7 से 10 हजार रुपये में आता है. एक मरीज को प्रतिदिन छह वायल की आवश्यकता पड़ती है.
यह इंजेक्शन मरीज को कम से कम 2 हफ्ते और अधिक से अधिक 6 हफ्ते लगाया जाता है. इसके बाद मरीजों को पोसाकोनाजोल की टेबलेट पर शिफ्ट कर दिया जाता है.
6-8 हजार में मिलती है 10 गोली
पोसाकोनाजोल की 10 गोली का एक पैकेट 6 से 8 हजार रुपये में आती है. ऐसे में जिन मरीजों का सरकारी अस्पताल में इलाज चल रहा है, उन्हें तो दवाएं नि:शुल्क मिल रही हैं. मगर अंदाजा लगा सकते हैं कि प्राइवेट अस्पतालों में जो मरीज इलाज करवा रहे हैं, उन्हें इन दवाइयों के लिए कितना खर्च करना पड़ रहा होगा. कोरोना से ठीक होने के बाद जो लोग ब्लैक फंगस के शिकार हो रहे हैं उनकी पूरी जमा पूंजी इलाज में खर्च हो रही है.
ठीक होने में लगते हैं 3-8 माह
पटना एम्स की ईएनटी विभाग की चिकित्सक डॉ. क्रांति भावना ने कहा, "ब्लैक फंगस के मरीजों को ठीक होने में 3 से 8 महीने लग जाते हैं. अगर फंगस को अर्ली स्टेज में डिटेक्ट कर लिया गया और उसे सर्जरी से हटा दिया गया तो फिर मरीज को ब्लैक फंगस के लिए फर्स्ट लाइन मेडिसिन एंफोटेरिसिन बी दिया जाता है. उसके बाद धीरे-धीरे उसे पोसाकोनाजोल टेबलेट पर शिफ्ट कर दिया जाता है."
लंबे समय तक देनी होती है दवा
डॉ. क्रांति भावना ने कहा, "अर्ली स्टेज में फंगस डिटेक्ट होता है तो मरीज को ठीक होने में 2 से 3 महीने लग जाते हैं. मगर अगर एडवांस स्टेज में बीमारी का पता चलता है और सर्जरी होती है तो मरीज को ठीक होने में 6 से 8 महीने लग जाते हैं. लंबे समय तक दवा देना होता है."
करना होता है क्लोज फॉलोअप
डॉ. क्रांति भावना ने कहा, "ब्लैक फंगस के जिन मरीजों की सर्जरी एडवांस्ड स्टेज में होती है, उन्हें बहुत क्लोज फॉलोअप करना पड़ता है. नियमित अंतराल पर उनका चेकअप होता है और यह पता लगाया जाता है कि क्या फिर से फंगस ग्रो तो नहीं कर रहा. ऐसा हो सकता है कि नीचे के हिस्से का फंगस हटा लिया गया हो और कुछ फंगस ऊपरी हिस्से में रह गया हो.
फंगस आंखों से उठकर ब्रेन में अगर थोड़ा भी चला जाता है तो ऐसी स्थिति में मरीज की जान बचा पाना बेहद मुश्किल है. ऑपरेशन के बाद स्थिति सही होने पर मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज किया जाता है. इसके बाद भी मरीज की स्थिति गंभीर होने की संभावना बनी रहती है."- डॉ. क्रांति भावना, चिकित्सक, ईएनटी विभाग, पटना एम्स
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