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क्या छत्तीसगढ़ में नेचुरल फार्मिंग और औषधि क्रांति की संभावनाएं हैं? - CHHATTISGARH NATURAL FARMING

इंद्र शेखर सिंह ने देश की पारंपरिक कृषि को करीब से समझने के लिए छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा, कांकेर जैसे कई इलाकों में पहुंचे.

Chhattisgarh
प्रतीकात्मक तस्वीर (AFP)
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By Indra Shekhar Singh

Published : 17 hours ago

नई दिल्ली/रायपुर: इंडस्ट्रियल एग्रीकल्चर (औद्योगिक कृषि) हमारी मिट्टी, पानी को नष्ट कर रही है और हमारे भोजन में केमिकल डाल रही है. यह कोई रहस्य नहीं है फिर भी, बढ़ती भूख और कुपोषण कॉरपोरेट लॉबिस्ट के लिए कृषि-रसायनों को बढ़ावा देने का पसंदीदा बहाना है. यह हमारे भोजन और चिकित्सा समस्याओं के लिए पारंपरिक कृषि ज्ञान और प्रकृति आधारित समाधानों को बेहद आसानी से खत्म करता जा रहा है.

ऐसे में सवाल यह है कि, इसका समाधान कहां पर मौजूद है? देश का ऐसा कौन सा इलाका है जो इन समस्याओं से हमें काफी हद तक निजात दिला सकता है. इंद्र शेखर सिंह ने इन समस्याओं का हल खोजने के लिए बलरामपुर से बस्तर और दूसरे चरण में राजनांदगांव से जशपुर तक छत्तीसगढ़ की यात्रा शुरू की, जिसमें सरगुजा, बिलासपुर, दंतेवाड़ा, कांकेर, जगदलपुर आदि जैसे कई गांव और जिले शामिल थे.

CHHATTISGARH
छत्तीसगढ़ का ग्रामिण लोटे से पानी पीते हुए (AFP)

छत्तीसगढ़ क्षेत्र में प्राकृतिक खाद्य और फार्मास्युटिकल सिस्टम
यह सब राज्य भर में कृषि प्रथाओं की अच्छी समझ हासिल करने के लिए किया गया था. छत्तीसगढ़ क्षेत्र में प्राकृतिक खाद्य और फार्मास्युटिकल सिस्टम को बढ़ावा देने की क्षमता है. देश के अन्य हिस्सों की तुलना में, किसानों के पास पारंपरिक कृषि में निहित अनूठी खेती की प्रथाएं थीं. उदाहरण के लिए धान के खेतों की सीमाओं पर अरहर की दाल उगाना, जिससे फलियां बढ़ती हैं और मिट्टी भी उपजाऊ होती है. खेतों की सीमाओं पर पेड़ लगाना, जो देश के अधिकांश भागों में नहीं है.

CHHATTISGARH
छत्तीसगढ़ का एक ग्रामीण बांस की खप्पचियों से टोकरी तैयार करते हुए (AFP)

पारंपरिक खेती पर जोर
इंद्र शेखर सिंह ने कहा कि, धान, जो कई क्षेत्रों का मुख्य खाद्यान्न है, खेतों में स्थानीय किस्म की सब्जियां भी उगाई जा सकती हैं. कुद्रुम (थेपा उर्फ लखाड़ा) खट्टे गुलाबी पंखुड़ियों वाला लंबा पतला पौधा है, जो कैल्शियम और एंटी ऑक्सीडेंट का एक बेहतरीन स्रोत है. राज्य में साग की एक विशाल किस्म भी है, जो मौसमी रूप से उगती है और बहुत पौष्टिक होती है.

उन्होंने बताया कि, छत्तीसगढ़ में कई तरह के खाद्य मशरूम भी उगते थे, जिनका उपयोग नहीं किया गया है. क्षेत्र का आदिवासी ज्ञान भी ज्यादातर अज्ञात है. इन समुदायों के बुजुर्गों के पास जंगल के पेड़ों और पौधों के बारे में बहुत ज्ञान था, जो चिकित्सा में क्रांति ला सकता था और लाखों भारतीयों को राहत पहुंचा सकता था.

CHHATTISGARH
छत्तीसगढ़ का ग्रामीण इलाका (AFP)

देश में कृषि की स्थिति कैसी सुधरेगी?
इंद्र शेखर ने बताया कि, कृषि की स्थिति को सुधारने और शायद कृषि में हरित छलांग लगाने के लिए सरकार द्वारा कई कदम उठाए जा सकते हैं. उन्होंने कई समस्याओं पर ध्यान केंद्रीत करते हुए कहा कि, पहला संकट, सार्वजनिक खरीद प्रणाली के माध्यम से धान की खरीद को बढ़ावा देना है. छत्तीसगढ़ सरकार ने धान और गेहूं की खरीद के लिए आक्रामक तरीके से जोर दिया है.

chhattisgarh
छत्तीसगढ़ का एक ग्रामीण इलाका, हड़िया ले जाते दो ग्रामीण (AFP)

हमारी राष्ट्रीय विरासत, छत्तीसगढ़ में कई तरह की फसलें और सब्जियां
राज्य के सुदूर इलाकों में भी खरीद केंद्र और धान से भरे बोरों को देखा जा सकता है. इससे किसानों को लगातार नकद आय भी मिलती है, लेकिन इसका एक बड़ा नुकसान यह है कि कई इलाकों में किसान अपनी पारंपरिक फसलों जैसे बाजरा- कोदो, कुटकी और देशी धान को छोड़कर औद्योगिक किस्मों के धान और गेहूं की खेती कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में कुछ इलाकों में कृषि जैव विविधता नष्ट हो रही है. ध्यान रहे कि छत्तीसगढ़ में कई तरह की फसलें और सब्जियां उगाई जाती हैं, जिन्हें हमारी राष्ट्रीय विरासत (National Heritage) के तौर पर संरक्षित किया जाना चाहिए.

chhattisgarh
छत्तीसगढ़ की एक महिला (AFP)

आदिवासी समुदायों के बुजुर्ग और पारंपरिक चिकित्सक
उन्होंने कहा कि, अब चिकित्सा की दुनिया में कदम रखते हुए, विभिन्न आदिवासी समुदायों के बुजुर्ग और पारंपरिक चिकित्सक सदियों से पौधों और पेड़ों के बारे में अपने ज्ञान को संरक्षित करते रहे हैं, अभ्यास करते रहे हैं और अपने समुदायों के युवा सदस्यों को सिखाते रहे हैं. लेकिन यह परंपरा टूट रही है. इसका पहला कारण, जंगलों का खत्म होना और कटना है. दूसरा कारण यह कि युवा पीढ़ी 'आधुनिक औद्योगिक' परिस्थितियों के कारण इस ज्ञान को आगे नहीं बढ़ा पा रही है.

chhattisgarh
छत्तीसगढ़ का गांव और वहां की एक लड़की (AFP)

देसी औषधीय पौधे अच्छी तरह से विकसित क्यों नहीं हो रहे हैं?
बदलती जलवायु और प्रकृति के नुकसान के कारण देसी औषधीय पौधे भी अच्छी तरह से विकसित नहीं हो रहे हैं. यहां फिर से हमें याद रखना होगा कि हमारे प्राचीन ज्ञान में भोजन ही हमारी औषधि थी, और देसी आहार और आवास के खत्म होने के साथ ही औषधीय पौधे और उनके उपयोग भी खत्म हो रहे हैं. सार्वजनिक खरीद और कृषि रसायनों के लिए सब्सिडी के माध्यम से औद्योगिक कृषि के लिए सरकार का जोर अधिक जंगलों को काटने और उन्हें खेतों में बदलने को प्रोत्साहित कर रहा है. कोई भाजपा या कांग्रेस को दोष नहीं दे सकता, छत्तीसगढ़ के राज्य तंत्र ने सालों से इस नीति को आगे बढ़ाया है.

Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ की एक लड़की (AFP)

इकोलॉजी की ओर मुड़ने की आवश्यकता
इंद्र शेखर ने बताया कि, कैसे इन समस्याओं से निपटा जा सका है. उन्होंने कहा कि, हमारे नीति निर्माताओं को केवल राज्य की विशाल क्षमता का दोहन करने के लिए इकोलॉजी की ओर मुड़ने की आवश्यकता है. पहला कदम प्रत्येक जिले में कम से कम दो ब्लॉकों को जैविक खेती वाले क्षेत्रों में बदलने की घोषणा करना है, जो तीन साल की अवधि के लिए संक्रमणकालीन वित्तीय प्रोत्साहन द्वारा समर्थित हैं और देशी फसलों जैसे बाजरा, धान आदि की गारंटीकृत खरीद के साथ हैं. इन्हें राज्य की खाद्य योजनाओं में खरीदा और इस्तेमाल किया जा सकता है या बाद में अन्य राज्यों या निजी बाजारों में भी बेचा जा सकता है.

छत्तीसगढ़ का एक गांव
छत्तीसगढ़ का एक गांव (AFP)

पशु जैविक खेतों के लिए खाद प्रदान करते हैं
सरकारों को कृषि के साथ मत्स्य पालन (मछली पालन) या जहां संभव हो बकरी, मुर्गी या दूध के संचालन की शुरूआत जैसी एकीकृत कृषि प्रणाली भी शुरू करने की आवश्यकता है. क्योंकि पशु जिले में जैविक खेतों के लिए खाद प्रदान करेंगे. छत्तीसगढ़ में मांस की खपत अधिक है, इसलिए स्थानीय मुर्गीपालन जैसे चिकन या टर्की और बकरी फार्म के लिए खरीदार तैयार रहेंगे. राज्य में मत्स्य पालन की भी बड़ी संभावना है.

AFP
छत्तीसगढ़ की ग्रामीण महिला (AFP)

क्लस्टरों को पशुओं, मुर्गीपालन, मत्स्य पालन और जैविक किसानों के मिश्रण को बढ़ावा देना चाहिए ताकि औद्योगिक बाजारों पर सीमित निर्भरता के साथ नकद आय, मिट्टी और पानी सभी में सुधार हो सके. कृषि-रासायनिक सब्सिडी को इस दिशा में मोड़ दिया जाना चाहिए.

ये भी पढ़ें: विश्व व्यापार संगठन और मक्का की गिरती कीमतें - इंद्र शेखर सिंह

नई दिल्ली/रायपुर: इंडस्ट्रियल एग्रीकल्चर (औद्योगिक कृषि) हमारी मिट्टी, पानी को नष्ट कर रही है और हमारे भोजन में केमिकल डाल रही है. यह कोई रहस्य नहीं है फिर भी, बढ़ती भूख और कुपोषण कॉरपोरेट लॉबिस्ट के लिए कृषि-रसायनों को बढ़ावा देने का पसंदीदा बहाना है. यह हमारे भोजन और चिकित्सा समस्याओं के लिए पारंपरिक कृषि ज्ञान और प्रकृति आधारित समाधानों को बेहद आसानी से खत्म करता जा रहा है.

ऐसे में सवाल यह है कि, इसका समाधान कहां पर मौजूद है? देश का ऐसा कौन सा इलाका है जो इन समस्याओं से हमें काफी हद तक निजात दिला सकता है. इंद्र शेखर सिंह ने इन समस्याओं का हल खोजने के लिए बलरामपुर से बस्तर और दूसरे चरण में राजनांदगांव से जशपुर तक छत्तीसगढ़ की यात्रा शुरू की, जिसमें सरगुजा, बिलासपुर, दंतेवाड़ा, कांकेर, जगदलपुर आदि जैसे कई गांव और जिले शामिल थे.

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छत्तीसगढ़ का ग्रामिण लोटे से पानी पीते हुए (AFP)

छत्तीसगढ़ क्षेत्र में प्राकृतिक खाद्य और फार्मास्युटिकल सिस्टम
यह सब राज्य भर में कृषि प्रथाओं की अच्छी समझ हासिल करने के लिए किया गया था. छत्तीसगढ़ क्षेत्र में प्राकृतिक खाद्य और फार्मास्युटिकल सिस्टम को बढ़ावा देने की क्षमता है. देश के अन्य हिस्सों की तुलना में, किसानों के पास पारंपरिक कृषि में निहित अनूठी खेती की प्रथाएं थीं. उदाहरण के लिए धान के खेतों की सीमाओं पर अरहर की दाल उगाना, जिससे फलियां बढ़ती हैं और मिट्टी भी उपजाऊ होती है. खेतों की सीमाओं पर पेड़ लगाना, जो देश के अधिकांश भागों में नहीं है.

CHHATTISGARH
छत्तीसगढ़ का एक ग्रामीण बांस की खप्पचियों से टोकरी तैयार करते हुए (AFP)

पारंपरिक खेती पर जोर
इंद्र शेखर सिंह ने कहा कि, धान, जो कई क्षेत्रों का मुख्य खाद्यान्न है, खेतों में स्थानीय किस्म की सब्जियां भी उगाई जा सकती हैं. कुद्रुम (थेपा उर्फ लखाड़ा) खट्टे गुलाबी पंखुड़ियों वाला लंबा पतला पौधा है, जो कैल्शियम और एंटी ऑक्सीडेंट का एक बेहतरीन स्रोत है. राज्य में साग की एक विशाल किस्म भी है, जो मौसमी रूप से उगती है और बहुत पौष्टिक होती है.

उन्होंने बताया कि, छत्तीसगढ़ में कई तरह के खाद्य मशरूम भी उगते थे, जिनका उपयोग नहीं किया गया है. क्षेत्र का आदिवासी ज्ञान भी ज्यादातर अज्ञात है. इन समुदायों के बुजुर्गों के पास जंगल के पेड़ों और पौधों के बारे में बहुत ज्ञान था, जो चिकित्सा में क्रांति ला सकता था और लाखों भारतीयों को राहत पहुंचा सकता था.

CHHATTISGARH
छत्तीसगढ़ का ग्रामीण इलाका (AFP)

देश में कृषि की स्थिति कैसी सुधरेगी?
इंद्र शेखर ने बताया कि, कृषि की स्थिति को सुधारने और शायद कृषि में हरित छलांग लगाने के लिए सरकार द्वारा कई कदम उठाए जा सकते हैं. उन्होंने कई समस्याओं पर ध्यान केंद्रीत करते हुए कहा कि, पहला संकट, सार्वजनिक खरीद प्रणाली के माध्यम से धान की खरीद को बढ़ावा देना है. छत्तीसगढ़ सरकार ने धान और गेहूं की खरीद के लिए आक्रामक तरीके से जोर दिया है.

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छत्तीसगढ़ का एक ग्रामीण इलाका, हड़िया ले जाते दो ग्रामीण (AFP)

हमारी राष्ट्रीय विरासत, छत्तीसगढ़ में कई तरह की फसलें और सब्जियां
राज्य के सुदूर इलाकों में भी खरीद केंद्र और धान से भरे बोरों को देखा जा सकता है. इससे किसानों को लगातार नकद आय भी मिलती है, लेकिन इसका एक बड़ा नुकसान यह है कि कई इलाकों में किसान अपनी पारंपरिक फसलों जैसे बाजरा- कोदो, कुटकी और देशी धान को छोड़कर औद्योगिक किस्मों के धान और गेहूं की खेती कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में कुछ इलाकों में कृषि जैव विविधता नष्ट हो रही है. ध्यान रहे कि छत्तीसगढ़ में कई तरह की फसलें और सब्जियां उगाई जाती हैं, जिन्हें हमारी राष्ट्रीय विरासत (National Heritage) के तौर पर संरक्षित किया जाना चाहिए.

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छत्तीसगढ़ की एक महिला (AFP)

आदिवासी समुदायों के बुजुर्ग और पारंपरिक चिकित्सक
उन्होंने कहा कि, अब चिकित्सा की दुनिया में कदम रखते हुए, विभिन्न आदिवासी समुदायों के बुजुर्ग और पारंपरिक चिकित्सक सदियों से पौधों और पेड़ों के बारे में अपने ज्ञान को संरक्षित करते रहे हैं, अभ्यास करते रहे हैं और अपने समुदायों के युवा सदस्यों को सिखाते रहे हैं. लेकिन यह परंपरा टूट रही है. इसका पहला कारण, जंगलों का खत्म होना और कटना है. दूसरा कारण यह कि युवा पीढ़ी 'आधुनिक औद्योगिक' परिस्थितियों के कारण इस ज्ञान को आगे नहीं बढ़ा पा रही है.

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छत्तीसगढ़ का गांव और वहां की एक लड़की (AFP)

देसी औषधीय पौधे अच्छी तरह से विकसित क्यों नहीं हो रहे हैं?
बदलती जलवायु और प्रकृति के नुकसान के कारण देसी औषधीय पौधे भी अच्छी तरह से विकसित नहीं हो रहे हैं. यहां फिर से हमें याद रखना होगा कि हमारे प्राचीन ज्ञान में भोजन ही हमारी औषधि थी, और देसी आहार और आवास के खत्म होने के साथ ही औषधीय पौधे और उनके उपयोग भी खत्म हो रहे हैं. सार्वजनिक खरीद और कृषि रसायनों के लिए सब्सिडी के माध्यम से औद्योगिक कृषि के लिए सरकार का जोर अधिक जंगलों को काटने और उन्हें खेतों में बदलने को प्रोत्साहित कर रहा है. कोई भाजपा या कांग्रेस को दोष नहीं दे सकता, छत्तीसगढ़ के राज्य तंत्र ने सालों से इस नीति को आगे बढ़ाया है.

Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ की एक लड़की (AFP)

इकोलॉजी की ओर मुड़ने की आवश्यकता
इंद्र शेखर ने बताया कि, कैसे इन समस्याओं से निपटा जा सका है. उन्होंने कहा कि, हमारे नीति निर्माताओं को केवल राज्य की विशाल क्षमता का दोहन करने के लिए इकोलॉजी की ओर मुड़ने की आवश्यकता है. पहला कदम प्रत्येक जिले में कम से कम दो ब्लॉकों को जैविक खेती वाले क्षेत्रों में बदलने की घोषणा करना है, जो तीन साल की अवधि के लिए संक्रमणकालीन वित्तीय प्रोत्साहन द्वारा समर्थित हैं और देशी फसलों जैसे बाजरा, धान आदि की गारंटीकृत खरीद के साथ हैं. इन्हें राज्य की खाद्य योजनाओं में खरीदा और इस्तेमाल किया जा सकता है या बाद में अन्य राज्यों या निजी बाजारों में भी बेचा जा सकता है.

छत्तीसगढ़ का एक गांव
छत्तीसगढ़ का एक गांव (AFP)

पशु जैविक खेतों के लिए खाद प्रदान करते हैं
सरकारों को कृषि के साथ मत्स्य पालन (मछली पालन) या जहां संभव हो बकरी, मुर्गी या दूध के संचालन की शुरूआत जैसी एकीकृत कृषि प्रणाली भी शुरू करने की आवश्यकता है. क्योंकि पशु जिले में जैविक खेतों के लिए खाद प्रदान करेंगे. छत्तीसगढ़ में मांस की खपत अधिक है, इसलिए स्थानीय मुर्गीपालन जैसे चिकन या टर्की और बकरी फार्म के लिए खरीदार तैयार रहेंगे. राज्य में मत्स्य पालन की भी बड़ी संभावना है.

AFP
छत्तीसगढ़ की ग्रामीण महिला (AFP)

क्लस्टरों को पशुओं, मुर्गीपालन, मत्स्य पालन और जैविक किसानों के मिश्रण को बढ़ावा देना चाहिए ताकि औद्योगिक बाजारों पर सीमित निर्भरता के साथ नकद आय, मिट्टी और पानी सभी में सुधार हो सके. कृषि-रासायनिक सब्सिडी को इस दिशा में मोड़ दिया जाना चाहिए.

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