पटना: बिहार विधान परिषद में बुधवार को 50 साल से ऊपर के कर्मियों के जबरन रिटायरमेंट का मामला उठाया गया. उन्होंने सरकार से सवाल किया कि इस तरह जबरन रिटायर करने से पीड़ित कर्मचारी या अधिकारी के परिवार पर बुरा प्रभाव पड़ता है. सरकार को मानवीय पक्ष के आधार पर किसी और तरह से दंडित करना चाहिए ना कि नौकरी से हटाना चाहिए.
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विधान परिषद में कांग्रेस नेता प्रेमचंद्र मिश्रा ने सवाल उठाया कि 50 साल के कर्मचारियों की क्षमता का साल में दो बार आकलन कर अक्षमता के कारण उनकी नौकरी समाप्त की जा रही है. उन्होंने कहा कि ऐसे निर्णय से राज्य में बड़े पैमाने पर नौकरी कर रहे कर्मचारियों को जबरन नौकरी से हटा दिया जाएगा. ऐसे निर्णय से लाखों परिवार असमय कठिनाइयों में घिर जाएंगे. रामचंद्र पूर्वे ने कहा कि इससे उनमें असंतोष, क्रोध और तनाव बढ़ेगा. यह भी पूरक प्रश्न किया कि समय से पहले दो अभियंताओं को नौकरी से निकाल दिया गया. यह परिवार के साथ अन्याय है और 10 साल पहले नौकरी से हटा देना असंवेदनहीनता है.
अनिवार्य सेवानिवृत्ति कराए जाने का प्रावधान
प्रश्न के जवाब में मंत्री विजेंद्र यादव ने कहा कि सामान प्रशासन विभाग की ओर से संकल्प ज्ञापांक 6832 दिनांक 23 जुलाई 2020 द्वारा निर्गत किया गया है. बिहार सेवा संहिता के नियम 74 क और ख में सरकारी सेवकों की उम्र और उनकी कार्य दक्षता के आधार पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति कराए जाने का प्रावधान बिहार सेवा संहिता में ही है.
इस पर पार्षद कपिल देव सिंह ने कहा कि जब पहले से ही यह नियम है तो फिर 23 जुलाई 20 के संकल्प का क्या मतलब है और नया पत्र क्यों निर्गत किया गया.
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हर 5 साल पर होता है मूल्यांकन
मंत्री विजेंद्र यादव ने कहा कि यह सेवानिवृत्ति है बर्खास्तगी नहीं और पेंशन मिलता रहेगा. प्रेमचंद्र मिश्रा ने जब यह कहा यह राजनेताओं और अफसरों पर क्यों लागू नहीं है? सत्ता पक्ष के संजीव सिंह ने कहा कि जनप्रतिनिधियों का मूल्यांकन जनता हर 5 साल पर करती है. इस संदर्भ में मंत्री वीजेन्द्र यादव ने सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट भी सामने रखा. वहीं, प्रेमचंद्र मिश्रा ने जब यह कहा कि यह राजनेताओं और अफसरों पर क्यों लागू नहीं है. सत्ता पक्ष के संजीव सिंह ने कहा कि जनप्रतिनिधियों का मूल्यांकन जनता हर 5 साल पर करती है.