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संभल शाही जामा मस्जिद कुआं विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया, नोटिस जारी किया - SAMBHAL SHAHI JAMA MASJID

सुप्रीम कोर्ट ने संभल की जामा मस्जिद कुआं विवाद पर यूपी सरकार को नोटिस जारी किया है. साथ ही कोर्ट ने मस्जिद के प्रवेश द्वार के पास स्थित एक निजी कुएं के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया.

SUPREME COURT ON SAMBHAL SHAHI JAMA MASJID
संभल में हुई धार्मिक हिंसा के बाद शाही जामा मस्जिद के बाहर राज्य पुलिस के जवान तैनात (25 नवंबर 2024 की तस्वीर) (AFP)
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By Sumit Saxena

Published : 3 hours ago

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट संभल शाही जामा मस्जिद के विवादित कुएं को लेकर कोई भी कदम उठाने पर रोक लगाई है. इस कुएं का आधा हिस्सा मस्जिद के अंदर और आधा हिस्सा बाहर है. इस इलाके में मस्जिद के स्थान पर एक हिंदू मंदिर होने का दावा किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने शाही जामा मस्जिद विवाद मामले में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने की बात कही है. कोर्ट ने संभल की जामा मस्जिद प्रबंधन समिति की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है.

मस्जिद समिति ने दावा किया है कि, कुएं को हिंदुओं द्वारा पूजा और स्नान के लिए उपलब्ध 'श्री हरि मंदिर' बताया जा रहा है. यह मामला भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आया जिसमें न्यायमूर्ति संजय कुमार शामिल थे. याचिका में मस्जिद के अधिकारियों ने तर्क दिया कि हिंदुओं की प्रार्थना के लिए कुएं को खोलने से संभल में शांति भंग होगी.

मामले में पिछले साल नवंबर में घातक झड़पें हुई थीं. पिछले साल नवंबर में, एक बड़ी भीड़ ने अदालत द्वारा आदेशित सर्वेक्षण का विरोध किया, जो एक याचिका पर आधारित था जिसमें दावा किया गया था कि मुगलकालीन मस्जिद बनाने के लिए एक मंदिर को नष्ट कर दिया गया था.

याचिका में कहा गया है कि जिला प्रशासन, संभल शहर में पुराने मंदिरों और कुओं को पुनर्जीवित करने के लिए एक कथित अभियान चला रहा है. रिपोर्ट बताती है कि कम से कम 32 पुराने अप्रयुक्त मंदिरों को पुनर्जीवित किया गया है और 19 कुओं की पहचान की गई है जिन्हें सार्वजनिक प्रार्थना या उपयोग के लिए चालू किया जा रहा है.

याचिका में कहा गया है, "जिला प्रशासन द्वारा पुनर्जीवित किए जाने वाले कुओं की सूची में मस्जिद के परिसर में स्थित एक जल कुआं भी शामिल है. यह एक ढका हुआ कुआं है जिसका आधा हिस्सा मस्जिद के अंदर है और दूसरा आधा हिस्सा बाहर की ओर एक घुमावदार मंच पर फैला हुआ है. यह कुआं तीन संकरी गलियों के त्रिकोणीय जंक्शन पर स्थित है जो मस्जिद के मुख्य प्रवेश द्वार की ओर जाती हैं और इसका उपयोग मस्जिद के उपयोग के लिए पानी निकालने के लिए किया जा रहा है."

मस्जिद समिति ने तर्क दिया कि संभल के अधिकारी दावा कर रहे हैं कि क्षेत्र के सभी कुओं का धार्मिक महत्व है. याचिका में कहा गया है, "संभल और मस्जिद के आसपास पोस्टर लगाए गए हैं, जो कथित तौर पर ऐतिहासिक कुओं के स्थान को दर्शाते हैं, जिसमें मस्जिद को मंदिर के रूप में दर्शाया गया है." याचिका में सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया गया है कि वह संभल के जिला मजिस्ट्रेट को उचित निर्देश दे कि वह यह सुनिश्चित करे कि मस्जिद की सीढ़ियों,प्रवेश द्वार के पास स्थित निजी कुएं के संबंध में यथास्थिति बनाए रखी जाए. साथ ही सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना इस संबंध में कोई कदम या कार्रवाई न की जाए.

शुक्रवार को सुनवाई के दौरान मस्जिद समिति का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कुएं के संबंध में नगर पालिका द्वारा लगाए गए पोस्टरों का हवाला दिया. अहमदी ने कुएं के ऐतिहासिक महत्व पर जोर दिया और कहा, "हम अनादि काल से कुएं से पानी निकालते आ रहे हैं." अहमदी ने इस स्थल को "हरि मंदिर" बताने वाले पोस्टरों और वहां धार्मिक गतिविधियां शुरू करने की योजना पर चिंता जताई.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि, अगर दूसरा पक्ष भी कुएं का इस्तेमाल करता है तो कोई नुकसान नहीं है. पीठ के समक्ष यह तर्क दिया गया कि कुएं का आधा हिस्सा अंदर और आधा बाहर है. वकील ने जोर देकर कहा कि राज्य सरकार पक्षपातपूर्ण रुख अपना रही है. प्रस्तुतियां सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने संभल शाही जामा मस्जिद समिति की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया और 21 फरवरी, 2025 तक जवाब मांगा.

बेंच ने कहा कि कुएं के संबंध में यथास्थिति बनाए रखी जानी चाहिए. पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि कुएं से संबंधित कोई भी सार्वजनिक नोटिस प्रभावी नहीं होगा. हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि कुआं मस्जिद के अधिकार क्षेत्र से बाहर है. उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से इस कुएं का इस्तेमाल पूजा के लिए किया जाता रहा है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने तर्क दिया कि इस स्थान के आसपास की स्थिति शांतिपूर्ण थी, लेकिन आवेदक ने मुद्दा बनाने की कोशिश की. पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के खिलाफ याचिकाओं के एक समूह पर अलग से कार्रवाई करते हुए सभी अदालतों को नए मुकदमों पर विचार करने और धार्मिक स्थलों को पुनः प्राप्त करने की मांग करने वाले लंबित मामलों में कोई भी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने से रोक दिया था.

ये भी पढ़ें: संभल हिंसा पर भाजपा के खिलाफ विरोध जताने के लिए कांग्रेस यूपी में कैंडल मार्च निकालेगी

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट संभल शाही जामा मस्जिद के विवादित कुएं को लेकर कोई भी कदम उठाने पर रोक लगाई है. इस कुएं का आधा हिस्सा मस्जिद के अंदर और आधा हिस्सा बाहर है. इस इलाके में मस्जिद के स्थान पर एक हिंदू मंदिर होने का दावा किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने शाही जामा मस्जिद विवाद मामले में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने की बात कही है. कोर्ट ने संभल की जामा मस्जिद प्रबंधन समिति की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है.

मस्जिद समिति ने दावा किया है कि, कुएं को हिंदुओं द्वारा पूजा और स्नान के लिए उपलब्ध 'श्री हरि मंदिर' बताया जा रहा है. यह मामला भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आया जिसमें न्यायमूर्ति संजय कुमार शामिल थे. याचिका में मस्जिद के अधिकारियों ने तर्क दिया कि हिंदुओं की प्रार्थना के लिए कुएं को खोलने से संभल में शांति भंग होगी.

मामले में पिछले साल नवंबर में घातक झड़पें हुई थीं. पिछले साल नवंबर में, एक बड़ी भीड़ ने अदालत द्वारा आदेशित सर्वेक्षण का विरोध किया, जो एक याचिका पर आधारित था जिसमें दावा किया गया था कि मुगलकालीन मस्जिद बनाने के लिए एक मंदिर को नष्ट कर दिया गया था.

याचिका में कहा गया है कि जिला प्रशासन, संभल शहर में पुराने मंदिरों और कुओं को पुनर्जीवित करने के लिए एक कथित अभियान चला रहा है. रिपोर्ट बताती है कि कम से कम 32 पुराने अप्रयुक्त मंदिरों को पुनर्जीवित किया गया है और 19 कुओं की पहचान की गई है जिन्हें सार्वजनिक प्रार्थना या उपयोग के लिए चालू किया जा रहा है.

याचिका में कहा गया है, "जिला प्रशासन द्वारा पुनर्जीवित किए जाने वाले कुओं की सूची में मस्जिद के परिसर में स्थित एक जल कुआं भी शामिल है. यह एक ढका हुआ कुआं है जिसका आधा हिस्सा मस्जिद के अंदर है और दूसरा आधा हिस्सा बाहर की ओर एक घुमावदार मंच पर फैला हुआ है. यह कुआं तीन संकरी गलियों के त्रिकोणीय जंक्शन पर स्थित है जो मस्जिद के मुख्य प्रवेश द्वार की ओर जाती हैं और इसका उपयोग मस्जिद के उपयोग के लिए पानी निकालने के लिए किया जा रहा है."

मस्जिद समिति ने तर्क दिया कि संभल के अधिकारी दावा कर रहे हैं कि क्षेत्र के सभी कुओं का धार्मिक महत्व है. याचिका में कहा गया है, "संभल और मस्जिद के आसपास पोस्टर लगाए गए हैं, जो कथित तौर पर ऐतिहासिक कुओं के स्थान को दर्शाते हैं, जिसमें मस्जिद को मंदिर के रूप में दर्शाया गया है." याचिका में सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया गया है कि वह संभल के जिला मजिस्ट्रेट को उचित निर्देश दे कि वह यह सुनिश्चित करे कि मस्जिद की सीढ़ियों,प्रवेश द्वार के पास स्थित निजी कुएं के संबंध में यथास्थिति बनाए रखी जाए. साथ ही सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना इस संबंध में कोई कदम या कार्रवाई न की जाए.

शुक्रवार को सुनवाई के दौरान मस्जिद समिति का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कुएं के संबंध में नगर पालिका द्वारा लगाए गए पोस्टरों का हवाला दिया. अहमदी ने कुएं के ऐतिहासिक महत्व पर जोर दिया और कहा, "हम अनादि काल से कुएं से पानी निकालते आ रहे हैं." अहमदी ने इस स्थल को "हरि मंदिर" बताने वाले पोस्टरों और वहां धार्मिक गतिविधियां शुरू करने की योजना पर चिंता जताई.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि, अगर दूसरा पक्ष भी कुएं का इस्तेमाल करता है तो कोई नुकसान नहीं है. पीठ के समक्ष यह तर्क दिया गया कि कुएं का आधा हिस्सा अंदर और आधा बाहर है. वकील ने जोर देकर कहा कि राज्य सरकार पक्षपातपूर्ण रुख अपना रही है. प्रस्तुतियां सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने संभल शाही जामा मस्जिद समिति की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया और 21 फरवरी, 2025 तक जवाब मांगा.

बेंच ने कहा कि कुएं के संबंध में यथास्थिति बनाए रखी जानी चाहिए. पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि कुएं से संबंधित कोई भी सार्वजनिक नोटिस प्रभावी नहीं होगा. हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि कुआं मस्जिद के अधिकार क्षेत्र से बाहर है. उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से इस कुएं का इस्तेमाल पूजा के लिए किया जाता रहा है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने तर्क दिया कि इस स्थान के आसपास की स्थिति शांतिपूर्ण थी, लेकिन आवेदक ने मुद्दा बनाने की कोशिश की. पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के खिलाफ याचिकाओं के एक समूह पर अलग से कार्रवाई करते हुए सभी अदालतों को नए मुकदमों पर विचार करने और धार्मिक स्थलों को पुनः प्राप्त करने की मांग करने वाले लंबित मामलों में कोई भी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने से रोक दिया था.

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