पटना: बिहार में बोरा पर घमासान छिड़ा हुआ है. दरअसल बिहार सरकार के शिक्षा विभाग की ओर से 14 अगस्त को फरमान जारी किया गया है कि विद्यालयों में अब प्रधानाचार्य मिड डे मील भोजन के लिए आपूर्ति किए गए खाद्यान्न के खाली होने पर बोरा को बेचेंगे. विभाग की ओर से स्पष्ट कहा गया है कि अब प्रधानाचार्य पूर्व से निश्चित प्रति बोरा ₹10 की बजाय प्रति बोरा ₹20 की न्यूनतम दर से बेचेंगे.
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शिक्षा विभाग के निर्देश से नाराजगी : शिक्षा विभाग के निर्देश के मुताबिक प्रधानाचार्य बोरा बचने के बाद जो रुपये प्राप्त करेंगे, उसे जिलों में संचालित राज्य योजना मद्य के तहत खोले गए बैंक खाते में जमा करेंगे. इसके बाद कितने बोरा को उन्होंने बेचा और कितनी राशि प्राप्त की, इसकी सूचना शिक्षा निदेशालय को सूचित करेंगे. इसी बात को लेकर तमाम शिक्षक समाज नाराज हैं.
'शिक्षकों के सम्मान के साथ खिलवाड़ बंद हो': बिहार सरकार के इस निर्देश का तमाम शिक्षक संघ विरोध कर रहे हैं. शिक्षक संघ का कहना है कि शिक्षा विभाग शिक्षकों के सम्मान के साथ खिलवाड़ कर रहा है. बिहार राज्य प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष मनोज कुमार ने बताया कि उन लोगों की लंबे समय से मांग रही है कि मिड डे मील कार्य से शिक्षकों को दूर किया जाए और सरकार इसके लिए अलग से प्रबंध करे. अलग से लोगों की बहाली करे, जो बच्चों के मिड डे मील की व्यवस्था देख सके. सरकार ने प्रधानाचार्य को बोरा बेचने का जो निर्देश जारी किया है, वह तुगलकी फरमान की तरह है.
"मिड डे मील के लिए जो खाद्यान्न आते हैं, उनके रखरखाव का उचित प्रबंध विद्यालयों में नहीं रहता है. ऐसे भी एक बार में 3 महीने का खाद्यान्न आता है. भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण जब तक उस बोरे से पूरा अनाज खत्म होता है, तब तक बोरा काफी खराब हो चुका होता है. कई बार बोरे को चूहे कुतर गए होते हैं और कई बोरा सड़ गया रहता है. पहले 10 रुपये बेचने का दर निर्धारित था, तब कोई खरीदने वाला नहीं मिलता था. अब 20 रुपये में बेचने का निर्देश जारी कर दिया गया है. सड़ा हुआ और फटा हुआ बोरा कोई भी 20 रुपये में नहीं खरीदेगा"- मनोज कुमार, प्रदेश अध्यक्ष, बिहार राज्य प्रारंभिक शिक्षक संघ
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'शिक्षकों को मानसिक रूप से प्रताड़ित ना करे सरकार': मनोज कुमार ने कहा कि इस प्रकार के निर्देश से शिक्षा विभाग शिक्षकों को मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार जब मिड डे मील के लिए चावल खरीदती है, तब उसमें बोरा का पैसा ऐड नहीं होता है और यह मुफ्त में रहता है. ऐसे में यह बोरा बेच कर सरकार कितना पैसा कमा लेगी, यह भी समझ से पड़े हैं. सरकार को यदि बोरा बेचकर ही पैसा कमाना है तो इसके लिए कोई एनजीओ हायर कर लें अथवा अलग से स्टाफ की बहाली करा ले.
प्राचार्य शैक्षणिक व्यवस्था देखेंगे या बोरा बेचेंगे?: बिहार राज्य प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि शिक्षकों को इस कार्य से दूर रखना चाहिए. वैसे भी जिन जगहों पर एनजीओ के माध्यम से चावल बन रहा है, वहां भी सरकार बताए कि बोरा बेचकर एनजीओ ने कितने पैसा सरकार को दिया है. प्रधानाचार्य विद्यालय में शैक्षणिक व्यवस्था पर नजर रखेंगे कि बोरा चुन-चुनकर रखेंगे और फिर घूम-घूमकर उसे बेचेंगे, यह एक गंभीर प्रश्न है. लिहाजा वह सरकार से मांग करते हैं कि तत्काल इस निर्देश को रद्द किया जाए, अथवा बोरा बेचने के लिए कोई एजेंसी हायर कर ले.
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