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इस PHC को है इलाज की जरूरत, यहां मुहूर्त देखकर आते हैं डॉक्टर

नवादा जिला मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर दूर बिगहा गांव का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बद से बदतर हालत में है. यहां लोगों को इस स्वास्थ्य केंद्र से कोई लाभ नहीं मिल रहा है.

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Published : Feb 9, 2019, 12:35 PM IST

पीएचसी की बदहाल स्थिति

नवादा: जिले के जयसिन बिगहा गांव में ग्रामीण स्तर पर लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए बना प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. ये पीएचसी गौशाला बन गया है. वहीं, इसके गेट पर ताला लटका रहता है.

गांव का पीएचसी जर्जर हो चुका है. वहीं, छत से सीमेंट की परतें टूट-टूटकर गिर रही हैं.कुल मिलाकर सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए किए जा रहे बड़े-बड़े दावों को ये पीएचसी मुंह चिढ़ाता नजर आ रहा है. बता दें कि गांव बिगहा जिला मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर की दूरी पर बसा है.

कहां कराए प्राथमिक उपचार
इस गांव में पिछड़ी और अतिपिछड़ी जाति के हजारों लोग रहते हैं. लेकिन उन्हें इस अस्पताल से कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है. अस्पताल खुलता तो जरूर है लेकिन सिर्फ पल्स पोलियो की खुराक पिलाने के लिए. ऐसे में किसी ग्रामीण के बीमार हो जाने पर उसका प्राथमिक उपचार नहीं हो पाता.

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ग्रामीण तारू मंझी.
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डॉक्टरों का पता नहीं
ग्रामीणों का कहना है कि यह अस्पताल 8-10 साल से बंद है. यहां डॉक्टर भी नहीं आते हैं. पहले डॉक्टर यहीं रहते थे और आगे वाले मकान में इलाज होता था और दवाई मिलता थी. अब तो पता ही नहीं चलता है कि डॉक्टर कब आते हैं और कब चले जाते हैं. जब पोलियो पिलाने का समय आता है तब 5-6 दिन यहां रहते हैं और फिर उसके बाद इसमें ताला लग जाता है.

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पीएचसी की दिवारों के हालात
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शिकायत पर कोई नहीं सुनता
गांव वालों का कहना है कि उन्हें और गांव के लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. कुछ भी होने पर गांव वालों को नवादा सदर अस्पताल जाना पड़ता है. शिकायत करने पर भी कोई कुछ नहीं सुनता.

डीएम से मीटिंग का बहाना
वहीं, जब इन समस्याओं को लेकर सिविल सर्जन से बात करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने डीएम के साथ मीटिंग की बात कह फोन काट दिया. ज0बकि उस वक्त डीएम कहीं और विजिट पर गए हुए थे. इधर सर्जन अन्य लोगों के साथ रिफ्रेशमेंट ले रहे थे.

पीएचसी की बदहाल स्थिति
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किसी के पास कोई जवाब नहीं
यहां साफ होता है कि स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़े सवाल का जबाव इस वक्त न तो बिहार सरकार के पास है और न ही स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी के पास. इनके पास कुछ है तो महज बहाना या तो जांच की दिलासा देना. सवाल यही है कि कब ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था उपलब्ध करायी जाएगी?.

नवादा: जिले के जयसिन बिगहा गांव में ग्रामीण स्तर पर लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए बना प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. ये पीएचसी गौशाला बन गया है. वहीं, इसके गेट पर ताला लटका रहता है.

गांव का पीएचसी जर्जर हो चुका है. वहीं, छत से सीमेंट की परतें टूट-टूटकर गिर रही हैं.कुल मिलाकर सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए किए जा रहे बड़े-बड़े दावों को ये पीएचसी मुंह चिढ़ाता नजर आ रहा है. बता दें कि गांव बिगहा जिला मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर की दूरी पर बसा है.

कहां कराए प्राथमिक उपचार
इस गांव में पिछड़ी और अतिपिछड़ी जाति के हजारों लोग रहते हैं. लेकिन उन्हें इस अस्पताल से कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है. अस्पताल खुलता तो जरूर है लेकिन सिर्फ पल्स पोलियो की खुराक पिलाने के लिए. ऐसे में किसी ग्रामीण के बीमार हो जाने पर उसका प्राथमिक उपचार नहीं हो पाता.

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ग्रामीण तारू मंझी.
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डॉक्टरों का पता नहीं
ग्रामीणों का कहना है कि यह अस्पताल 8-10 साल से बंद है. यहां डॉक्टर भी नहीं आते हैं. पहले डॉक्टर यहीं रहते थे और आगे वाले मकान में इलाज होता था और दवाई मिलता थी. अब तो पता ही नहीं चलता है कि डॉक्टर कब आते हैं और कब चले जाते हैं. जब पोलियो पिलाने का समय आता है तब 5-6 दिन यहां रहते हैं और फिर उसके बाद इसमें ताला लग जाता है.

phc
पीएचसी की दिवारों के हालात
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शिकायत पर कोई नहीं सुनता
गांव वालों का कहना है कि उन्हें और गांव के लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. कुछ भी होने पर गांव वालों को नवादा सदर अस्पताल जाना पड़ता है. शिकायत करने पर भी कोई कुछ नहीं सुनता.

डीएम से मीटिंग का बहाना
वहीं, जब इन समस्याओं को लेकर सिविल सर्जन से बात करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने डीएम के साथ मीटिंग की बात कह फोन काट दिया. ज0बकि उस वक्त डीएम कहीं और विजिट पर गए हुए थे. इधर सर्जन अन्य लोगों के साथ रिफ्रेशमेंट ले रहे थे.

पीएचसी की बदहाल स्थिति
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किसी के पास कोई जवाब नहीं
यहां साफ होता है कि स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़े सवाल का जबाव इस वक्त न तो बिहार सरकार के पास है और न ही स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी के पास. इनके पास कुछ है तो महज बहाना या तो जांच की दिलासा देना. सवाल यही है कि कब ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था उपलब्ध करायी जाएगी?.

Intro:नवादा। ग्रामीण स्तर पर लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए बनी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है। कहीं ईट जमा किया हुआ है, तो कहीं गाय खड़ी है। कहीं गेट में ताला जड़ा हुआ है तो कहीं अस्पताल के लीलटर झड़ रहे हैं। तो कहीं मकानों में गोबर के चिपड़ी चिपके हुए हैं। यानी घोर बदहाली से जूझ रहा है। भलेहि सूबे की सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर बड़े-बड़े दावे कर ले लेकिन ऊपर दिख रही यह तस्वीर उनके दावों के पोल-खोल ले लिए काफी है। जी हां, यह तस्वीर जिला मुख्यालय से करीब 6 किमी दूर जयसिन बिगहा गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की है। इस गांव में पिछले, अतिपिछड़े जाति के करीब हजार से अधिक लोग रहते है। लेकिन उन्हें इन अस्पताल से कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।


Body:अस्पताल खुलती तो है लेकिन ईलाज के लिए नहीं बल्कि पोलियो खुराक पिलाने के लिए। यानी मोठे तौर पर यह समझ लिया जाय कि अस्पताल कागज पर चल रहा है भलेहि न हो। ग्रामीण तारू मांझी का कहना है, यह अस्पताल 5-6 साल से बंद है। इसमें न डॉक्टर आते हैं न डॉक्टरनी। ये जो मकान आप देख रहे हैं इसमें डॉक्टर रहते थे और आगेवाले मकान में ईलाज होता था और दवाई मिलता था। अब तो पता ही नहीं चलता है कि डॉक्टर कब आते हैं और कब चले जाते हैं। जब पोलियो पिलाने का समय आता है तब 5-6 दिन यहां रहते हैं और फिर उसके बाद इसमें ताला लग जाता है।

वहीं गांव के ही युवक राजू और विप्लेस कहते हैं, हमलोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कुछ भी होने पर हमलोगों को नवादा सदर अस्पताल जाना पड़ता है। शिकायत करने पर भी कोई कुछ सुनता ही नहीं है।

वहीं जब इन समस्याओं को लेकर सिविल सर्जन से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने डीएम के साथ मीटिंग की बात कर फोन काट दिए जबकि उस वक्त डीएम कहीं और विजिट पर निकले हुए थे और वे लोग अंदर रेफ्रेसमेन्ट ले रहे थे। बात साफ़ स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़े सवाल का जबाव न इस वक्त बिहार सरकार के पास है , न स्वास्थ्य विभाग के पास है और न ही उनके अधिकारी के पास सबके सब अपनी जगह पर कुंडली मारकर बैठे हुए हैं।




Conclusion:लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या ऐसी व्यवस्था में ग्रामीणों की स्वास्थ्य में सुधार हो सकती है? कब तक ग्रामीण गांव में ही सारी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठा पाएंगे? यानी यहां पर भी एकबार फिर सूबे की सरकार की दावे खोखली साबित हुई है।
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