मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) जिले के कई गांव में भगवान बुद्ध (Lord Buddha) के महापरिनिर्वाण स्थल होने का दावा किया जाता रहा है. भगवान बुद्ध से जुड़े अध्यात्म और बौद्ध धर्म के विकास में अहम पड़ाव रहा है. तमाम ऐतिहासिक साक्ष्य और बौद्ध धर्म ग्रंथो में लिखित ग्रंथो में इन जगहों का वर्णन होने के बाद भी अभी भी जिले के किसी एक गांवों को बौद्ध सर्किट से नहीं जोड़ा जा सका है.
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मामला मुजफ्फरपुर के कांटी प्रखंड मुख्यालय से सटे हुए हरिणी कुशी गांव (Harini Kushi Village) से जुड़ा हुआ है. जहां गांव से बाहर मिट्टी के दो प्राचीन भिंड को भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण स्थल बताया जा रहा है. इस बात की पुष्टि के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के जानकारों की टीम ने पूर्व में तीन बार खुदाई भी कर चुके हैं. इस खुदाई में इस भिंड ( टीले ) से भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़े कई प्राचीन अवशेष, कुछ मूर्तियां, मिट्टी के प्राचीन कलश समेत 170 से अधिक वस्तुएं उत्खनन में मिली है.
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इस स्थल को भगवान बुद्ध के जीवन का अंतिम पड़ाव से जुड़ा माना गया है. इसे लेकर कई इतिहासकारों ने भी अपना शोधपत्र लिखा है. जिसमें इस स्थल को भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण स्थल बताया गया है. जिसके कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और भौगोलिक तथ्य भी शामिल है. जिसे लेकर कोई इतिहासकार नकार नहीं सकता. लेकिन इसके बाद भी यह स्थल अभी भी अपने गर्भ में कई राज को समेटे सही दर्जा हासिल करने की पीड़ा से गुजर रहा है.
कांटी के कुशी रमणी गांव में भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थल होने के दावे की सत्यता को जानने के लिए कांटी के कुशी हरपुर रमणी में एकबार नहीं बल्कि तीन बार पुरातात्विक विभाग खुदाई कर चुका है. जिसकी सत्यता प्रमाणित होने के बाद भी इस जगह को राजनीतिक वजहों से भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थल का दर्जा नहीं दिया जा रहा है.
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि इस जगह को महापरिनिर्वाण का दर्जा मिलते ही उत्तर प्रदेश के कुशीनगर का अस्तित्व खत्म हो जाएगा. ऐसे में राजनीतिक वजहों से इस मामले को केंद्र सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल कर रख दिया है. इस जगह की सत्यता और ऐतिहासिक महत्व के मद्देनजर पीएम के निर्देश पर भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीक्षक डॉ. राजेन्द्र देहुरी के नेतृत्व में बड़ी टीम इस स्थल का 2019 में निरीक्षण भी कर चुकी है.
'दोनों भिंड ऐतिहासिक हैं. 1961-62 में ही चर्चा की गई थी कि यह भिंड ऐतिहासिक है. कलकत्ता के लाइब्रेरी में अध्ययन के बाद स्पष्ट पाया गया कि महात्मा बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली है. दिशा और दूरी के अनुसार यही वह जगह है जहां महात्मा बुद्ध ने महापरिनिर्वाण का निर्माण किया था.' -चंद्रभूषण सिंह चंद्र, पूर्व प्राचार्य एवं इतिहासकार
पुरातत्व विभाग के सदस्यों ने कुशी स्थित दो टीलों और प्राचीन कुएं का भी निरीक्षण किया. जिसके कई फोटोग्राफ भी लिए गए थे. वहीं इस स्थल के संरक्षण से जुड़े कई जानकारों का भी स्पष्ट मानना है की भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण स्थल कसिया नहीं मुजफ्फरपुर का कुशी है. जिसे लेकर इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के कुशी हरपुर रमणी को महापरिनिर्वाण स्थल होने का दावा किया है.
वैशाली से दूरी और दिशा के आधार पर कांटी के कुशीग्राम को ही वास्तविक महापरिनिर्वाण स्थल बताया गया है. ग्रामीणों का दावा है कि अगर इसके आसपास के स्थलों पर विस्तार से खुदाई हो तो सबकुछ साफ हो जाएगा. लेकिन राजनीतिक वजहों से इस महत्वपूर्ण तथ्य को जानते हुए इस जगह को बौद्ध सर्किट से जोड़ने की कवायद बंद कर दी गई है.
'अभी हमलोग जहां हैं उसके उत्तर से एक सड़क निकलती है. जो मुजफ्फरपुर को सीधे केसरिया से जोड़ती है. उसकी चौड़ाई, लंबाई और सीधी रेखा में बनना यह साबित करता है कि प्राचीन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थल रहा है. महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थल के घोषणा के संबंध में बहुत सारे लोगों ने प्रयास किया और प्रयास जारी भी है. लेकिन राजनीतिक की वजह से इस स्थल को दर्जा नहीं मिल पा रहा है.' -परमानंद ठाकुर, ग्रामीण