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इस तरह जान जोखिम में डाल बांस के पुल से नहर पार करते हैं लोग - बच्चे के सुनहरे जीवन का सपना

स्थानीय लोगों का कहना है कि हमलोगों के घर के पास एक तालाब है. लेकिन आज तक एक पुल नहीं बन पाया. जिस वजह से हमलोगों को दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है. अपनी जरुरतों के लिए हमलोग आपस में चंदा कर पुल बनाते हैं. लेकिन वह भी हर साल बरसात का पानी आते ही बह जाता है.

बांस के पुल पर चल रही लोगों की जिंदगी
बांस के पुल पर चल रही लोगों की जिंदगी
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Published : Jan 3, 2020, 2:17 PM IST

Updated : Jan 3, 2020, 3:04 PM IST

मधेपुरा: जिले के उदाकिशुनगंज अनुमंडल अंतर्गत खनहन गांव में सैकड़ों परिवार अपनी जान जोखिम में डालकर मौत के पुल को पार करने को मजबूर हैं. दरअसल, खनहन गांव के सैकड़ो परिवार की जीवन एक बांस के पुल के सहारे चल रही है. स्थानीय ग्रामीण बताते है कि हमलोगों तक सरकार का विकास कार्य नहीं पहुंच पाया. यहां हमलोगों की 3 पुश्तों की जिंदगी बांस के पुल के सहारे कट गई.

'आपस में चंदा कर बनाते हैं पुल'
स्थानीय अलीम और खुर्शीद अली बताते है कि हमलोगों के घर के पास एक तलाब है. लेकिन आज तक एक पुल नहीं बन पाया. जिस वजह से हमलोगों को दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है. अपनी जरुरतों के लिए हमलोग आपस में चंदा कर पुल बनाते है. लेकिन वह भी हर साल बरसात का पानी आते ही बह जाता है. इसी बांस के पुल के सहारे हमलोग अपने बच्चे के सुनहरे जीवन का सपना देखते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'चुनाव के समय मिलता है, वादों का झुनझुना'
इस बाबत स्थानीय लोगों का कहना है कि हमलोगों के 3 पुश्तों की जिंदगी इसी तरह से कट गई. हमारे छोटे बच्चे भी इसी कमजोर पुल से गुजरते है. हमेशा किसी अनहोनी का डर बना रहता है. किसी के बिमार हो जाने के बाद अस्पताल जाने के लिए काफी दूर घूमकर जाना पड़ता है, जिस वजह से लोगों को समय से इलाज नहीं मिल पाता है. लोगों का कहना है कि चुनाव के समय नेता हमलोगों को वादों का झुनझुना थमाकर आगे निकल जाते हैं.

मधेपुरा: जिले के उदाकिशुनगंज अनुमंडल अंतर्गत खनहन गांव में सैकड़ों परिवार अपनी जान जोखिम में डालकर मौत के पुल को पार करने को मजबूर हैं. दरअसल, खनहन गांव के सैकड़ो परिवार की जीवन एक बांस के पुल के सहारे चल रही है. स्थानीय ग्रामीण बताते है कि हमलोगों तक सरकार का विकास कार्य नहीं पहुंच पाया. यहां हमलोगों की 3 पुश्तों की जिंदगी बांस के पुल के सहारे कट गई.

'आपस में चंदा कर बनाते हैं पुल'
स्थानीय अलीम और खुर्शीद अली बताते है कि हमलोगों के घर के पास एक तलाब है. लेकिन आज तक एक पुल नहीं बन पाया. जिस वजह से हमलोगों को दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है. अपनी जरुरतों के लिए हमलोग आपस में चंदा कर पुल बनाते है. लेकिन वह भी हर साल बरसात का पानी आते ही बह जाता है. इसी बांस के पुल के सहारे हमलोग अपने बच्चे के सुनहरे जीवन का सपना देखते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'चुनाव के समय मिलता है, वादों का झुनझुना'
इस बाबत स्थानीय लोगों का कहना है कि हमलोगों के 3 पुश्तों की जिंदगी इसी तरह से कट गई. हमारे छोटे बच्चे भी इसी कमजोर पुल से गुजरते है. हमेशा किसी अनहोनी का डर बना रहता है. किसी के बिमार हो जाने के बाद अस्पताल जाने के लिए काफी दूर घूमकर जाना पड़ता है, जिस वजह से लोगों को समय से इलाज नहीं मिल पाता है. लोगों का कहना है कि चुनाव के समय नेता हमलोगों को वादों का झुनझुना थमाकर आगे निकल जाते हैं.

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मधेपुरा जिले के उदाकिशुनगंज अनुमंडल अंतर्गत खनहन गाँव के सैकड़ो परिवार अपनी जान ज़ोखिम में डालकर नदी पार करने को मजबूर है।


Body:subtitle
जर्जर पुलिया के सहारे जिंदगी, सैकड़ों परिवार है प्रभावित, कभी भी हो सकती है बड़ी दुर्घटना, वोट लेकर भूल जाते हैं नेताजी
वी.ओ
एक तरफ जहां राज्य सरकार सड़क और पुल-पुलिया के लिए करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाने के दावे करती है तो वही दूसरी तरफ मधेपुरा जिले के उदाकिशुनगंज अनुमंडल के वार्ड संख्या एक खनहन गाँव के सैकड़ो परिवार के लोग बाँस के पुल के सहारे नदी पार करने को मजबूर है।बड़े बुजुर्ग और छोटे बच्चों से लेकर महिलाएं तक सरकारी उदासीनता का शिकार हो रहे है।

वही इस गांव में रह रहे अलीम ने बताया कि हम लोग तकरीबन 100 परिवार है जो अपनी 3 पुश्तों से यहाँ इसी हाल में रह रहे है।छोटे बच्चें भी इसी कमजोर पुल के सहारे की नदी पार करते है,जिसकी वजह से किसी भी अप्रिय घटना का डर लगातार बना रहता है।रात को अगर कोई बीमार पड़ जाता है तो हमे अस्पताल तक पहुचने के लिए काफी दूर घूमकर जाना पड़ता है,जिसकी वजह से समय रहते इलाज नहीं मिल पाता है।

बाईट-1
अलीम-स्थानिय

इस गाँव मे रह रहे ख़ुर्शीद अली ने बताया कि हम लोग लंबे समय से युही समय काट रहे है।चुनाव के वक्त नेता लोग वोट लेकर हमें भूल जाते है।

बाईट-2
खुर्शीद अली- स्थानीय


Conclusion:बहरहाल यहाँ के लोग अपनी जिंदगी खतरे में डालकर जीने को मजबूर हैं। वहीं उन्हें आज भी सरकारी मदद का इंतजार है।
Last Updated : Jan 3, 2020, 3:04 PM IST
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