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बिहार में भी गूंजने लगा बंगाल के ढाक का ताल, अलग-अलग तरीकों से हो रही मां दुर्गा की पूजा - नवरात्रि सप्तमी

किशनगंज में नवरात्रि के सातवें दिन से ढाकी बजाने की परंपरा है. इन सभी ढाकियों को खासतौर पर बंगाल से बुलाया जाता है. ये सभी लोग अलग-अलग दिन अलग-अलग थाप पर ढाकी बजाते हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

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Published : Oct 12, 2021, 7:13 AM IST

किशनगंज: आज नवरात्रि का सातवां (Seventh Day Of Navratri) दिन है. इस दिन मां कालरात्रि की पूजन का विधान है. मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं. वहीं बिहार के किशनगंज जिले में भी धूम-धाम से दुर्गापूजा का आयोजन किया जा रहा है. जिले में करीब 100 से अधिक दुर्गापूजा मंडप है. इन सभी पूजा मंडप में ढाकी खासतौर पर पश्चिम बंगाल (Dhaki of West Bengal) से बुलाये जाते हैं.

ऐसे में पश्चिम बंगाल के मालदा, रामपुर हाट, बालुरघाट, मालबाजार व कई जगह से प्रशिक्षण प्राप्त ढाकी किशनगंज पहुंचते हैं. 4 से 5 दिन के पूजा अनुष्ठान के दौरान ढाक बजाने के लिए ढाकियों को पूजा समितियां 10 हजार से 20 हजार रुपये देती है. नियमानुसार षष्ठी के शाम से ढाकियों के ढाक बजने लगते हैं. विभिन्न देवी-देवताओं की उपासना के लिए विभिन्न वाद्ययंत्र समर्पित हैं.

देखें रिपोर्ट.

इसे भी पढ़ें: Navratri 2021: छठे दिन होती है मां कात्यायनी की पूजा, जानें पूजन विधि, मंत्र और भोग

जिले में दुर्गोत्सव के दौरान मां दुर्गा की उपासना के लिए विशेष अनुष्ठान के दौरान ढाक बजाया जाता है. मां की आराधना में षष्ठी से विभिन्न चरणों में पूजा अनुष्ठान शुरू होते ही पारंपरिक वाद्ययंत्र ढाक का ताल इस उत्सव में श्रद्धा के रंग भर देता है. मां का आह्वान ढाक के विभिन्न ताल पर होता है और उनके प्रस्थान तक ये लगातार बजते रहेंगे.

ये भी पढ़ें: Navratri 2021: तीसरे दिन करें मां चंद्रघंटा की पूजा, इस विधि व नियम के बिना व्रत का नहीं मिलेगा फल

ढाक के ताल और हर दिन के पूजा अनुष्ठान ढाक के अलग-अलग ताल पर की जाती है. दुर्गापूजा की शुरुआत आगमनी पूजा अनुष्ठान से होती है. इसमें मां का स्वागत किया जाता है. इसके बाद विभिन्न दिनों में शारदीय, नवपत्रिका, वरण, बोधन, संधि पूजा, नवमी, उधाव और विसर्जन जैसे अनुष्ठान होते हैं.

ढाकी सुबोल घोष ने बताया कि इन सभी पूजा अनुष्ठान में ढाक के अलग-अलग ताल बजाये जाते है. ढाक के ताल उत्सव, भक्ति और एकजुट होने की प्रेरणा देता है. यही कारण है कि ढाकी पूजा से पहले मिलने वाले खाली समय में जमकर ढाक बजाने का अभ्यास करते हैं. ढाकियों ने बताया कि पूजा की तिथि के बहुत पहले से ढाक बजाने का अभ्यास शुरू होता है.

आपको बता दें कि ढाक एक तालवद्य यंत्र है. जो लकड़ी से बना एक विशाल दृपृष्ठीय ढोल होता है. इसके दोनों पृष्ठ में बनी चाट चमड़े की होती है. इस वाद्ययंत्रों को अधिकतर उत्सव और विशेष रूप से दुर्गापूजा में बजाया जाता है. पश्चिम बंगाल में इसे 'जय ढाक' के नाम से भी जाना जाता है. ढाक बजाते समय इसे कंधे से एक तरफ झुकी हुई अवस्था में लटकाया जाता है. इसके केवल एक ही पृष्ठ को दो मुड़ी हुई डंडियों से बजाया जाता है.

आगमनी पूजा व बोधन (कहड़वा ताल) : कलश स्थापना की पूजा ही आगमनी पूजा के नाम से जाना जाता है. यह मां दुर्गा के स्वागत का अवसर है. इसलिए ढाकी ढाक पर 'कहड़वा ताल' से मां के आगमन का उत्सव मनाते हैं. इस ताल को बोधन पूजा के दौरान भी बजाया जाता है.
शारदीय (8 मात्रा) : 9 दिनों तक दुर्गोत्सव की नियमित पूजा शारदीय पूजा कहलाती है. सुबह-शाम होने वाली नियमित पूजा के दौरान ढाक के 8 मात्राएं बजायी जाती हैं.

वरण (8 मात्रा) : षष्ठी के दिन मां दुर्गा के मायके पहुंचने के उत्सव को ढाक की 8 मात्रा थाप पर किया जाता है. बेटी स्वरूप मां दुर्गा की पूजा बेल वृक्ष के नीचे षष्ठी स्वरूप में की जाती है.

नवपत्रिका (आद्या ताल) : सप्तमी के दिन कलश स्थापना की प्राण प्रतिष्ठा कर देवी दुर्गा का आह्वान किया जाता है. यह अवसर मां दुर्गा को भक्ति से याद करने का है. ढाकी आद्या ताल से अपनी भक्ति का परिचय देते हैं.

संधि पूजा व नवमी (3 ताल) : शारदीय नवरात्र में संधि पूजा अष्टमी और नवमी दो तिथि के मिलन पर किया जाता है. पूजा अष्टमी तिथि के आखिरी 24 मिनट और नवमी तिथि शुरू होने के 24 मिनट बाद तक की जाती है. ढाकी तीन ताल की थाप पर एक तिथि के खत्म होने और दूसरे के आगमन को पेश करते हैं.

उधाव (भीम ताल) : दशमी और शारदीय नवरात्रि के अंतिम दिन विधि-विधान के साथ कलश को उठाया जाता है. पूजा के इस अंतिम पहर को उधाव पूजन भी कहा गया है. इस समय भीम ताल से मां दुर्गा का आह्वान कर उनके वापस लौटने की कामना करते हैं.

विसर्जन (आद्या व भीम ताल) : 9 दिनों के दुर्गोत्सव का सबसे अंतिम कार्यक्रम विसर्जन है. श्रद्धालु मां दुर्गा की विदाई उत्सवी अंदाज में करते हैं. ढाकी भक्ति में लीन होकर आद्या व भीम ताल की थाप बचाते हैं जिसपर धुनुची नाच किया जाता है.

'ढाकी से हमलोगों का लगभग 10 हजार रुपये का कमाई हो जाता है. लगभग 100 की संख्या में हमलोग बंगाल आए हैं. पूरे शहरी क्षेत्र के पंडाल पर ढाकी बजाने का कार्य करेंगे. नवरात्रि के दिनों ढाकी बजाने के साथ-साथ खेती का काम करते हैं.' -सुबोल घोष, बंगाल से आए ढाकी

शारदीय नवरात्रि की तिथियां

7 अक्टूबर 2021गुरुवारप्रतिपदा घटस्थापनामां शैलपुत्री पूजा
8 अक्टूबर 2021शुक्रवारद्वितीयामां ब्रह्मचारिणी पूजा
9 अक्टूबर 2021शनिवारतृतीय, चतुर्थीमां चंद्रघंटा पूजा, मां कुष्मांडा पूजा
10 अक्टूबर 2021रविवारपंचमीमां स्कंदमाता पूजा
11 अक्टूबर 2021सोमवारषष्ठीमां कात्यायनी पूजा
12 अक्टूबर 2021मंगलवारसप्तमीमां कालरात्रि पूजा
13 अक्टूबर 2021बुधवारअष्टमीमां महागौरी दुर्गा पूजा
14 अक्टूबर 2021गुरुवारमहानवमीमां सिद्धिदात्री पूजा
15 अक्टूबर 2021शुक्रवारविजयादशमीविजयदशमी, दशहरा

किशनगंज: आज नवरात्रि का सातवां (Seventh Day Of Navratri) दिन है. इस दिन मां कालरात्रि की पूजन का विधान है. मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं. वहीं बिहार के किशनगंज जिले में भी धूम-धाम से दुर्गापूजा का आयोजन किया जा रहा है. जिले में करीब 100 से अधिक दुर्गापूजा मंडप है. इन सभी पूजा मंडप में ढाकी खासतौर पर पश्चिम बंगाल (Dhaki of West Bengal) से बुलाये जाते हैं.

ऐसे में पश्चिम बंगाल के मालदा, रामपुर हाट, बालुरघाट, मालबाजार व कई जगह से प्रशिक्षण प्राप्त ढाकी किशनगंज पहुंचते हैं. 4 से 5 दिन के पूजा अनुष्ठान के दौरान ढाक बजाने के लिए ढाकियों को पूजा समितियां 10 हजार से 20 हजार रुपये देती है. नियमानुसार षष्ठी के शाम से ढाकियों के ढाक बजने लगते हैं. विभिन्न देवी-देवताओं की उपासना के लिए विभिन्न वाद्ययंत्र समर्पित हैं.

देखें रिपोर्ट.

इसे भी पढ़ें: Navratri 2021: छठे दिन होती है मां कात्यायनी की पूजा, जानें पूजन विधि, मंत्र और भोग

जिले में दुर्गोत्सव के दौरान मां दुर्गा की उपासना के लिए विशेष अनुष्ठान के दौरान ढाक बजाया जाता है. मां की आराधना में षष्ठी से विभिन्न चरणों में पूजा अनुष्ठान शुरू होते ही पारंपरिक वाद्ययंत्र ढाक का ताल इस उत्सव में श्रद्धा के रंग भर देता है. मां का आह्वान ढाक के विभिन्न ताल पर होता है और उनके प्रस्थान तक ये लगातार बजते रहेंगे.

ये भी पढ़ें: Navratri 2021: तीसरे दिन करें मां चंद्रघंटा की पूजा, इस विधि व नियम के बिना व्रत का नहीं मिलेगा फल

ढाक के ताल और हर दिन के पूजा अनुष्ठान ढाक के अलग-अलग ताल पर की जाती है. दुर्गापूजा की शुरुआत आगमनी पूजा अनुष्ठान से होती है. इसमें मां का स्वागत किया जाता है. इसके बाद विभिन्न दिनों में शारदीय, नवपत्रिका, वरण, बोधन, संधि पूजा, नवमी, उधाव और विसर्जन जैसे अनुष्ठान होते हैं.

ढाकी सुबोल घोष ने बताया कि इन सभी पूजा अनुष्ठान में ढाक के अलग-अलग ताल बजाये जाते है. ढाक के ताल उत्सव, भक्ति और एकजुट होने की प्रेरणा देता है. यही कारण है कि ढाकी पूजा से पहले मिलने वाले खाली समय में जमकर ढाक बजाने का अभ्यास करते हैं. ढाकियों ने बताया कि पूजा की तिथि के बहुत पहले से ढाक बजाने का अभ्यास शुरू होता है.

आपको बता दें कि ढाक एक तालवद्य यंत्र है. जो लकड़ी से बना एक विशाल दृपृष्ठीय ढोल होता है. इसके दोनों पृष्ठ में बनी चाट चमड़े की होती है. इस वाद्ययंत्रों को अधिकतर उत्सव और विशेष रूप से दुर्गापूजा में बजाया जाता है. पश्चिम बंगाल में इसे 'जय ढाक' के नाम से भी जाना जाता है. ढाक बजाते समय इसे कंधे से एक तरफ झुकी हुई अवस्था में लटकाया जाता है. इसके केवल एक ही पृष्ठ को दो मुड़ी हुई डंडियों से बजाया जाता है.

आगमनी पूजा व बोधन (कहड़वा ताल) : कलश स्थापना की पूजा ही आगमनी पूजा के नाम से जाना जाता है. यह मां दुर्गा के स्वागत का अवसर है. इसलिए ढाकी ढाक पर 'कहड़वा ताल' से मां के आगमन का उत्सव मनाते हैं. इस ताल को बोधन पूजा के दौरान भी बजाया जाता है.
शारदीय (8 मात्रा) : 9 दिनों तक दुर्गोत्सव की नियमित पूजा शारदीय पूजा कहलाती है. सुबह-शाम होने वाली नियमित पूजा के दौरान ढाक के 8 मात्राएं बजायी जाती हैं.

वरण (8 मात्रा) : षष्ठी के दिन मां दुर्गा के मायके पहुंचने के उत्सव को ढाक की 8 मात्रा थाप पर किया जाता है. बेटी स्वरूप मां दुर्गा की पूजा बेल वृक्ष के नीचे षष्ठी स्वरूप में की जाती है.

नवपत्रिका (आद्या ताल) : सप्तमी के दिन कलश स्थापना की प्राण प्रतिष्ठा कर देवी दुर्गा का आह्वान किया जाता है. यह अवसर मां दुर्गा को भक्ति से याद करने का है. ढाकी आद्या ताल से अपनी भक्ति का परिचय देते हैं.

संधि पूजा व नवमी (3 ताल) : शारदीय नवरात्र में संधि पूजा अष्टमी और नवमी दो तिथि के मिलन पर किया जाता है. पूजा अष्टमी तिथि के आखिरी 24 मिनट और नवमी तिथि शुरू होने के 24 मिनट बाद तक की जाती है. ढाकी तीन ताल की थाप पर एक तिथि के खत्म होने और दूसरे के आगमन को पेश करते हैं.

उधाव (भीम ताल) : दशमी और शारदीय नवरात्रि के अंतिम दिन विधि-विधान के साथ कलश को उठाया जाता है. पूजा के इस अंतिम पहर को उधाव पूजन भी कहा गया है. इस समय भीम ताल से मां दुर्गा का आह्वान कर उनके वापस लौटने की कामना करते हैं.

विसर्जन (आद्या व भीम ताल) : 9 दिनों के दुर्गोत्सव का सबसे अंतिम कार्यक्रम विसर्जन है. श्रद्धालु मां दुर्गा की विदाई उत्सवी अंदाज में करते हैं. ढाकी भक्ति में लीन होकर आद्या व भीम ताल की थाप बचाते हैं जिसपर धुनुची नाच किया जाता है.

'ढाकी से हमलोगों का लगभग 10 हजार रुपये का कमाई हो जाता है. लगभग 100 की संख्या में हमलोग बंगाल आए हैं. पूरे शहरी क्षेत्र के पंडाल पर ढाकी बजाने का कार्य करेंगे. नवरात्रि के दिनों ढाकी बजाने के साथ-साथ खेती का काम करते हैं.' -सुबोल घोष, बंगाल से आए ढाकी

शारदीय नवरात्रि की तिथियां

7 अक्टूबर 2021गुरुवारप्रतिपदा घटस्थापनामां शैलपुत्री पूजा
8 अक्टूबर 2021शुक्रवारद्वितीयामां ब्रह्मचारिणी पूजा
9 अक्टूबर 2021शनिवारतृतीय, चतुर्थीमां चंद्रघंटा पूजा, मां कुष्मांडा पूजा
10 अक्टूबर 2021रविवारपंचमीमां स्कंदमाता पूजा
11 अक्टूबर 2021सोमवारषष्ठीमां कात्यायनी पूजा
12 अक्टूबर 2021मंगलवारसप्तमीमां कालरात्रि पूजा
13 अक्टूबर 2021बुधवारअष्टमीमां महागौरी दुर्गा पूजा
14 अक्टूबर 2021गुरुवारमहानवमीमां सिद्धिदात्री पूजा
15 अक्टूबर 2021शुक्रवारविजयादशमीविजयदशमी, दशहरा
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