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एक ऐसा मुखिया जिसने शोहरत के अलावा कुछ नहीं कमाया, निधन हुआ तो गांव वालों ने चंदा कर किया अंतिम संस्कार - चंदा लगाकर किया मुखिया का अंतिम संस्कार

कैमूर के सिरबिट पंचायत के मुखिया की लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. उनका अंतिम संस्कार गांव वालों ने चंदा लगाकर किया. पढ़ें यह रिपोर्ट...

मौजूद भीड़
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Published : May 5, 2021, 1:23 PM IST

Updated : May 5, 2021, 1:44 PM IST

कैमूर: जिले के चैनपुर प्रखंड के सिरबिट पंचायत के मुखिया शिवमूरत मुसहर की लंबी बीमारी के बाद इलाज के दौरान मौत हो गयी. मुखिया होने के बावजूद उनका परिवार गरीबी से जूझ रहा है. परिवार के पास अंतिम संस्कार के लिए भी पैसे नहीं थे. ग्रामीणों ने मानवता दिखाते हुए चंदा इकठ्ठा करने के बाद उनका अंतिम संस्कार किया.

ये भी पढ़ें - बेतिया: बीडीओ ने टीकाकरण केंद्र का लिया जायजा, लोगों से वैक्सीन लगवाने की अपील

परोपकार की जिंदगी बिताने वाले थे शिवमूरत

ग्रामीणों का कहना है कि शिवमूरत मुसहर काफी मिलनसार थे. लोगों की मदद करते थे. उनकी जिंदगी परोपकार के लिए ही जैसे बनी थी. वह लोभ-लालच से काफी दूर रहा करते थे. तभी तो जहां एक ओर अन्य मुखिया पैसों से ऐशो-आराम करते हैं वहीं दूसरी ओर शिवमूरत के परिवार वाले पैसे के मोहताज हैं.

मौजूद भीड़
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प्रतिनिधि देखते थे कार्य
मुखिया के परिजनों और ग्रामीणों का कहना है कि उनका सारा कार्य प्रतिनिधि देखते थे. प्रतिनिधि क्या कर रहे हैं, नहीं कर रहे हैं. इसके विषय में मुखिया को कुछ भी जानकारी नहीं होती थी. मुखिया को मिलने वाली प्रत्येक माह की राशि भी मुखिया को नहीं मिलती थी.

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन के बाद सरकार का एक और बड़ा फैसला, सभी कार्ड धारकों को मुफ्त राशन

अनुसूचित जनजातियों के लिए बनाए गए कॉलोनी में वह अपना गुजर-बसर कर रहे थे. जीवन-यापन के लिए बीपीएल धारी होने के नाते उन्हें जन वितरण प्रणाली के माध्यम से प्रत्येक महीने राशन मिलता था. जिससे वह और उनका परिवार अपना गुजर-बसर करते थे.

कैमूर: जिले के चैनपुर प्रखंड के सिरबिट पंचायत के मुखिया शिवमूरत मुसहर की लंबी बीमारी के बाद इलाज के दौरान मौत हो गयी. मुखिया होने के बावजूद उनका परिवार गरीबी से जूझ रहा है. परिवार के पास अंतिम संस्कार के लिए भी पैसे नहीं थे. ग्रामीणों ने मानवता दिखाते हुए चंदा इकठ्ठा करने के बाद उनका अंतिम संस्कार किया.

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परोपकार की जिंदगी बिताने वाले थे शिवमूरत

ग्रामीणों का कहना है कि शिवमूरत मुसहर काफी मिलनसार थे. लोगों की मदद करते थे. उनकी जिंदगी परोपकार के लिए ही जैसे बनी थी. वह लोभ-लालच से काफी दूर रहा करते थे. तभी तो जहां एक ओर अन्य मुखिया पैसों से ऐशो-आराम करते हैं वहीं दूसरी ओर शिवमूरत के परिवार वाले पैसे के मोहताज हैं.

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प्रतिनिधि देखते थे कार्य
मुखिया के परिजनों और ग्रामीणों का कहना है कि उनका सारा कार्य प्रतिनिधि देखते थे. प्रतिनिधि क्या कर रहे हैं, नहीं कर रहे हैं. इसके विषय में मुखिया को कुछ भी जानकारी नहीं होती थी. मुखिया को मिलने वाली प्रत्येक माह की राशि भी मुखिया को नहीं मिलती थी.

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अनुसूचित जनजातियों के लिए बनाए गए कॉलोनी में वह अपना गुजर-बसर कर रहे थे. जीवन-यापन के लिए बीपीएल धारी होने के नाते उन्हें जन वितरण प्रणाली के माध्यम से प्रत्येक महीने राशन मिलता था. जिससे वह और उनका परिवार अपना गुजर-बसर करते थे.

Last Updated : May 5, 2021, 1:44 PM IST
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