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Navratri 2023 : कैमूर में मां मुंडेश्वरी मंदिर के तर्ज पर बनाया गया पंडाल, श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़ - Navratri 2023

कैमूर में मां मुंडेश्वरी मंदिर के तर्ज पर दुर्गा पंडाल (Maa Mundeshwari temple in Kaimur) बनाया गया है. बताया जा रहा है कि 5 लाख की लागत से बने इस पंडाल को 12 कारीगरों द्वारा 20 दिन में बनाया गया है. बता दें कि मां मुंडेश्वरी मंदिर भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक है.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 21, 2023, 3:18 PM IST

कैमूर: बिहार में दुर्गा पूजा को लेकर लोगों में अलग तरह का उत्साह देखने को मिल रहा. राज्य के हर जिले में अलग-अलग तरह के पंडाल का निर्माण हो रहा है. ऐसे में कैमूर में भी एक अनोखा पंडाल बनाया गया है, जो इन दिनों आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. जिले के भभुआ शहर स्थित पटेल चौक पर मां मुंडेश्वरी मंदिर के तर्ज पर पंडाल बनाया गया है.

इसे भी पढ़े- Shardiya Navratri 2023: बिहार के इस मंदिर में दी जाती है 'अनूठी रक्तविहीन पशु बलि'.. देखिए माता मुडेश्वरी की महिमा

5 लाख रुपए की लागत से हुआ निर्माण: इस संबंध में भभुआ के चेतना संस्थान के कोषाध्यक्ष वाल्मीकि सिंह ने बताया कि इस पंडाल के निर्माण के लिए झारखंड राज्य के जामताड़ा से 12 कारीगरों को बुलाया गया है. जिनके द्वारा लगभग 20 दिनों में 5 लाख रुपए की लागत से मां मुण्डेश्वरी मंदिर के तर्ज पर भव्य पंडाल का निर्माण किया गया है. इस पंडाल को देखने के लिए जिले भर के लोग पहुंच रहे हैं. लाखों की संख्या में लोग पहुंचकर मां दुर्गा का दर्शन कर रहे हैं. साथ ही मनोकामना पूरी हो जाए इसलिए पूजा और दान भी कर रहे हैं.

"हमने मां मुंडेश्वरी मंदिर की तर्ज पर पंडाल बनाने के लिए झारखंड के जामताड़ा से 12 कारीगरों को बुलाया है. इस पंडाल के निर्माण में करीब 5 लाख की लागत लगी है. वहीं, इसे बनाने में 20 दिन लगे है. यब पंडाल इतना आकर्षक बना है कि हर दिन हजारों लोग यहां पहुंच रहे है. साथ ही पूजा अर्चना कर रहे है." - वाल्मीकि सिंह, कोषाध्यक्ष, चेतना संस्थान

भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक मां मुंडेश्वरी मंदिर: बता दें कि मां मुंडेश्वरी मंदिर को भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है. हालांकि, ये कितना प्राचीन है, इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है. जानकारी के अनुसार इतना प्रमाण अवश्य मिल रहा है कि इस मंदिर का निर्माण नहीं कराया गया है, बल्कि ये मंदिर खुदाई में मिली है. यह मंदिर कैमूर जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर भगवनपुर के पवरा पहाड़ी पर साढ़े 6 सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित है. जहां यहां की सबसे बड़ी खासियत यहां की बलि प्रथा है. यहां पर रक्तविहीन पशु बलि दी जाती है. यह एक अनूठी प्रक्रिया होती है. इस खास विधि से बलि देने यहां हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं.

कैमूर: बिहार में दुर्गा पूजा को लेकर लोगों में अलग तरह का उत्साह देखने को मिल रहा. राज्य के हर जिले में अलग-अलग तरह के पंडाल का निर्माण हो रहा है. ऐसे में कैमूर में भी एक अनोखा पंडाल बनाया गया है, जो इन दिनों आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. जिले के भभुआ शहर स्थित पटेल चौक पर मां मुंडेश्वरी मंदिर के तर्ज पर पंडाल बनाया गया है.

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5 लाख रुपए की लागत से हुआ निर्माण: इस संबंध में भभुआ के चेतना संस्थान के कोषाध्यक्ष वाल्मीकि सिंह ने बताया कि इस पंडाल के निर्माण के लिए झारखंड राज्य के जामताड़ा से 12 कारीगरों को बुलाया गया है. जिनके द्वारा लगभग 20 दिनों में 5 लाख रुपए की लागत से मां मुण्डेश्वरी मंदिर के तर्ज पर भव्य पंडाल का निर्माण किया गया है. इस पंडाल को देखने के लिए जिले भर के लोग पहुंच रहे हैं. लाखों की संख्या में लोग पहुंचकर मां दुर्गा का दर्शन कर रहे हैं. साथ ही मनोकामना पूरी हो जाए इसलिए पूजा और दान भी कर रहे हैं.

"हमने मां मुंडेश्वरी मंदिर की तर्ज पर पंडाल बनाने के लिए झारखंड के जामताड़ा से 12 कारीगरों को बुलाया है. इस पंडाल के निर्माण में करीब 5 लाख की लागत लगी है. वहीं, इसे बनाने में 20 दिन लगे है. यब पंडाल इतना आकर्षक बना है कि हर दिन हजारों लोग यहां पहुंच रहे है. साथ ही पूजा अर्चना कर रहे है." - वाल्मीकि सिंह, कोषाध्यक्ष, चेतना संस्थान

भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक मां मुंडेश्वरी मंदिर: बता दें कि मां मुंडेश्वरी मंदिर को भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है. हालांकि, ये कितना प्राचीन है, इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है. जानकारी के अनुसार इतना प्रमाण अवश्य मिल रहा है कि इस मंदिर का निर्माण नहीं कराया गया है, बल्कि ये मंदिर खुदाई में मिली है. यह मंदिर कैमूर जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर भगवनपुर के पवरा पहाड़ी पर साढ़े 6 सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित है. जहां यहां की सबसे बड़ी खासियत यहां की बलि प्रथा है. यहां पर रक्तविहीन पशु बलि दी जाती है. यह एक अनूठी प्रक्रिया होती है. इस खास विधि से बलि देने यहां हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं.

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