कैमूरः जिले के भगवानपुर प्रखंड के बसंतपुर गांव को बुनकरों के लिए जाना जाता है. यहां की आधी से अधिक आबादी कालीन बनाने का काम करती है. इनकी तैयार की हुई कालीनों का डिमांड देश ही नहीं बल्कि विदेशों में होता है. लेकिन चिंता की बात ये है कि इन कारीगरों की इस कारीगरी को बढ़ावा देने के लिए सरकारी तौर पर कोई मदद नहीं मिलती. ये लोग खुद अपने घरों में मशीन लगाकर कालीन बनाने का काम करते हैं.
70% लोग है इसी काम से जुड़े
कैमूर जिले के भगवानपुर प्रखंड के बसंतपुर गांव में कालीन बनाने का काम तकरीबन 70% लोग करते हैं. कालीन भी ऐसी बनती है जिसकी मांग देश नहीं विदेशों में होती है. लेकिन कारीगरों की इस कला को बिहार में पूछने वाला कोई नहीं है. कारीगर अपने घरों में खुद मशीन लगाकर कालीन बुनने का काम करते हैं. गांव के लोगों की कला को देखते हुए गांव में कालीन भवन तो बनाया गया. लेकिन भवन में कालीन बुनने का काम नहीं होता है. बल्कि इसे पैक्स का गोदाम बना दिया गया है.
नहीं मिलती उचित मजदूरी
ग्रामीणों ने बताया कि लगभग 30 सालों से कालीन बनाने का कार्य कर रहे है. कालीन बनाने की शुरुआत ग्रामीणों ने यूपी के भदोही जिले से शुरू किया. भदोही में कालीन का कारखाना है, जहां कारीगरों ने कालीन बनाने की कला को सीखा उसके बाद खुद अपने गांव में मशीन लगाकर काम शुरू कर दिया. ग्रामीणों ने बताया कि गांव के अधिकांश लोग कालीन बनाने का कार्य करते हैं लेकिन उन्हें उचित मजदूरी नहीं मिल पाती हैं.
यूपी में मिलता है कालीन को फाइनल टच
गांव के कारीगरों ने बताया कि बसंतपुर में कच्चे माल से आलीशान कालीन को हाथों से बुना जाता है. जिसके बाद उस कालीन को यूपी के भदोई में फाइनल टच दिया जाता है. जहां से कालीन देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सप्लाई होती हैं. कारीगरों ने सरकार से गुहार लगाई है. उनका कहना है कि अगर सरकार डूबते हुए कालीन व्यवसाय पर ध्यान दे. तो बिहार में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे. इस क्षेत्र से जुड़े कारीगरों को भी अलग पहचान मिलेगी.
जर्मनी में इसकी खूब डिमांड
गांव के वार्ड सदस्य सईद अंसारी बताते हैं कि उनका परिवार खुद इस कारोबार में जुड़ा हुआ हैं. आज से करीब 5 साल पहले उनलोगों को हैंडलूम विभाग की तरफ से पहचान पत्र बना था. साथ ही 20 हजार रुपये लोन उपलब्ध करवाया गया था. जिसके बाद सरकार ने कोई मदद नहीं की. इसलिए गांव का एक आदमी यूपी के भदोई से कच्चा माल लेकर गांव में आता है और गांव के कारीगरों से कालीन का काम करवाता है. गांव में कारीगरों को मीटर के अनुसार पैसे का भुगतान किया जाता है. यहां से निर्मित कालीन को यूपी के भदोई में फाइनल टच देकर विदेशों में खासकर ठंडे देशों में एक्सपोर्ट किया जाता है. उन्होंने बताया कि गांव में निर्मित कालीन का सबसे अधिक डिमांड जर्मनी में होता है.